इंदौर, राजेश ज्वेल। हुकुमचंद मिल (Hukumchand Mill) के मजदूरों (Worker) ने वाकई कमाल किया और 32 सालों तक वे अपनी जमा पूंजी हासिल करने के लिए संघर्षरत रहे। हर रविवार को मिल परिसर में बैठक आयोजित करते, तो लेबर कोर्ट से लेकरहाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक अदालती लड़ाई भी लड़ते रहे और आज जो ये चमकदार जीत का सम्मान मजदूरों को मिल रहा है उसके हकदार वे खुद हैं, जिन्होंने वाकई इतिहास रच दिया। देश के इतिहास में मजदूरों के इतने लम्बे संघर्ष काशायद ही कोई अन्य उदाहरण हो। नेताओं-अफसरों से लेकर व्यवस्थाओं से भी लगातार ये मजदूर जुझते रहे। अग्रिबाण अवश्य बीते 25 सालों से मजदूरों की इस लड़ाई में उनका मददगार बना रहा। उपयोगी सलाह के साथ-साथ लगातार प्रकाशित खबरों से भी मजदूरों का हौंसला तो बढ़ा ही, वहीं उन्हें रास्ता भी मिलता रहा।
शासन से लेकर नगर निगम ने भी हुकुमचंद मिल की 42 एकड़ जमीन को लेकर कई पेंतरे दिखाए और नित न तिकड़में भी की जाती रही। यहां तक कि कांग्रेस-भाजपा के नेताओं द्वारा भी लगातार मजदूरों से सम्पर्क किया जाता रहा और हर चुनाव से पहले उन्हें जमा पूंजी मिलने का आश्वासन दिया गया। 5 हजार 895 मजदूरों के लिए हाउसिंग बोर्ड ने हाईकोर्ट आदेश पर 179 करोड़ रुपए की राशि जमा करवा दी है, जो अब मजदूरों के खातों में कुछ समय बाद ट्रांसफर होगी। प्रत्येक मजदूर को 3 से 4 लाख रुपए और किसी को 5-6 लाख, तो जो अधिकारी रहे उन्हें 15-16 लाख तक की राशि प्राप्त होगी। हुकुमचंद मिल मजदूरों की ओर से उनके नेता नरेन्द्र श्रीवंश लगातार संघर्षरत रहे। उनके साथ हरनामसिंह धारीवाल और किशनलाल बोकरे जैसे कुछ नाम शामिल हैं, जो अदालती लड़ाई में भी सक्रिय रहे। वरिष्ठ अभिभाषक श्री पटवर्धन और श्री पंवार ने मजदूरों का पूरा साथ दिया। वहीं हर रविवार को मिल परिसर में ये मजदूर बैठकें करते रहे और उसकी खबर और फोटो भी जारी किए। कल रविवार को उनकी 1652वीं बैठक हुई। वहीं अग्रिबाण भी इन मजदूरों के साथ लगातार जुड़ा रहा और जब-जब शासन, निगम या अन्य विभागों ने तिकड़म की, उसे बेबाकी से उजागर किया। यहां तक कि मुंबई डीआरटी द्वारा जमीन की नीलामी में जो खेल किए जा रहे थे उसे भी उजागर किया गया और यहां तक कि भू-उपयोग परिवर्तन की सलाह भी अग्रिबाण ने दी और बाद में हाईकोर्ट आदेश पर यह भू-उपयोग परिवर्तन शासन को करना पड़ा। उसके बाद ही हाउसिंग बोर्ड ने 400 करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा कर इस जमीन पर प्रोजेक्ट लाने की सहमति दी। यहां तक कि हाईकोर्ट में शासन के खिलाफ लड़कर जीते नगर निगम ने भी पलटी मारी। वहीं सुप्रीम कोर्ट में शासन के पक्ष में निगम सरेंडर हो गया। यह मुद्दा भी अग्रिबाण ने जोर-शोर से उठाया। बाद में हालांकि महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने इस मामले को टेकअप किया और फिर वे लगातार मजदूरों को न्याय दिलाने में जुटे। उनकी महेमत भी सफल ताबित हुई।
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