भोपाल। सियासत में राज पाठ कब कौन सा नया अध्याय जोड़ दे यह कोई नहीं जानता। सियासी समीकरण में बदलाव के कारण नए अध्याय जुड़ते हैं। किरदार भी बदल दिए जाते हैं। भोपाल में नगरीय निकाय के लिए होने वाले चुनाव से पहले कुछ ऐसे ही हाल हैं। वार्ड आरक्षण के बाद सियासी समीकरण बदला है तो वहीं आम जनता के बीच पहुंचने वाले सियासतदार भी बदल गए हैं। राजधानी के 85 वार्ड में से 42 महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं। इसमें से सामान्य महिला के 24, ओबीसी महिला के 11, एसटी महिला का 1, एससी महिला के 6 वार्ड हैं। इस तरह कुल 42 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं।
भाभी जी अब घर पर नहीं हैं
भाभी जी अब घर पर नहीं हैं क्योंकि सत्ता का संग्राम होने वाला है और मैदान में उन्हें ही उतरना है। जबलपुर नगर सरकार की दौड़ में अब धर्मपत्नी आगे आ गई हैं।उन्हें आगे लाने में उनके पतियों ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। इसकी वजह ये है कि शहर के 85 में से 42 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। इस वजह से ज़बरदस्त सियासी उठापटक देखने को मिल रही है क्योंकि महिलाएं ही अब इन 42 वार्डो से चुनाव लड़ेंगी। इस लिहाज से पुरुष दावेदारों ने अपनी पत्नियों को आगे कर दिया है कि हम नहीं तो तुम ही सही। और अब उनकी पत्नियां ही पार्षद पद की दौड़ में शामिल हो गयी हैं। पार्षद पद के लिए अपनी दावेदारी सुनिश्चित करने के लिए पत्नियां बैठकों से लेकर पोस्टर्स तक में छायी हुई हैं।
महिला सशक्तिकरण
लाजमी है पत्नियों को आगे करने में ना केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस भी आगे है।दोनों ही दलों के सामने यह मजबूरी आ खड़ी हुई है। कांग्रेस का कहना है कि 42 वार्डो से महिलाओं का नेतृत्व महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा अच्छा कदम है।और पार्टी अब निकाय चुनाव में जीत दिलाने वाली दावेदारों को ही मौका देगी। अब उसमें कोई गुरेज नहीं है कि अगर वे संभावित पार्षद दावेदार की पत्नियां ही ना हों। वहीं बीजेपी की ओर से दावेदारों का कहना है अगर श्रीमती जी योग्य हैं तो चुनाव लडऩे में कोई दिक्कत नहीं। अगर जनता उन्हें सहज ही स्वीकार करती है तो उसमें किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।
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