केंद्रपाड़ा। ओडिशा (Odisha) के केंद्रपाड़ा (Kendrapara) जिले में एक बहुत ही अनोखे बच्चे का जन्म हुआ है। रविवार को शहर के एक निजी अस्पताल में एक महिला ने ऐसी जुड़वां बच्चियों को जन्म दिया है, जिनके दो सिर और तीन हाथ हैं लेकिन शरीर एक है। डॉक्टरों ने जानकारी देते हुए कहा कि ये एक रेयर यानी दुर्लभ चिकित्सकीय स्थिति है। बच्चियों का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ है और महिला दूसरी बार मां बनी हैं। बच्चियों के सिर पूरी तरह से विकसित हैं।
दोनों मुंह से फीडिंग कर रहे हैं बच्चे
केंद्रपाड़ा जिला अस्पताल के शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर देबाशीष साहू ने बताया कि नवजात दोनों मुंह से आहार सेवन कर रहे हैं और उनकी दो नाक है। जुड़वा बहनें एक-दूसरे से जुड़ी हैं और उनका शरीर एक है। उनके तीन हाथ हैं और दो पैर हैं। नवजात का जन्म ऑपरेशन के जरिये एक निजी अस्पताल में हुआ था बाद में उसे केंद्रपाड़ा के जिला मुख्यालय अस्पताल में भर्ती कर दिया गया था।
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
इससे पहले मध्य प्रदेश के विदिशा और देवास में भी ऐसे बच्चे जन्म ले चुके हैं। वहीं दुनिया के कई शहरों में ऐसे दुर्लभ केस सामने आ चुके हैं। पिडियाट्रिक सर्जरी जर्नल में छपे एक शोध पत्र की माने तो इनमें से केवल 11% ही ऐसे होते हैं जिनका धड़ तो एक होता है लेकिन सिर दो। इस तरह के बच्चों में दो से लेकर चार हाथ तक पाए जाते हैं। एक धड़ पर दो सिर वाले बच्चों को डिसेफल पैरापैगस कहा जाता है। इनमें छाती के नीचे का हिस्सा तो एक होता लेकिन उसके ऊपर दो सिर बन जाते हैं। ऐसे मामलों में तीन हाथ होना सामान्य बात है जैसा कि केंद्रपाड़ा में पैदा हुई बच्चियों के साथ हुआ है।
क्यों पैदा होते हैं एक धड़ पर दो सिर वाले बच्चे?
दरअसल गर्भ धारण के कुछ हफ्तों बाद जब जुड़वा बच्चे बनने की प्रक्रिया बीच में ही रुक जाए उसी स्थिति में इस तरह के बच्चे पैदा होते हैं। फर्टिलाइज्ड एग प्रेगनेंसी के कुछ सप्ताह बाद जुड़वा बच्चे बनाने के लिए विभाजन शुरू करता है। लेकिन पूरी होने से पहले ही जब यह प्रक्रिया बीच में रुक जाए तभी शरीर से जुड़े बच्चे पैदा होने के केस सामने आते हैं।
डॉक्टरों का मानना है कि ऐसा 50 हजार से एक लाख केसों में एक ही बार होता है। वहीं ऐसे बच्चों को अलग करने के ऑपरेशन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आखिर इनका कौन से अंग जुड़ा हुआ है। कई बार दो सिर और एक धड़ होने पर शरीर के सारे अंग दोनों के लिए एक साथ काम करते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर के मुताबिक ऐसी सर्जरी में 75% केस में दो में से किसी एक बच्चे को बचाने में कामयाबी मिलती है।
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