महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में जिसने 40 साल पहले के नारायण राणे के उभार और मातोश्री में प्रवेश को देखा है, वह राणे के उसी अंदाज में सक्रिय होने को भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता मान रहे हैं। यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री की गिरफ्तारी के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपना बयान देने में जरा भी देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। भाजपा की केंद्रीय राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो जेपी नड्डा ने यह निर्णय केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सलाह पर लिया है। सचिन कानितकर कहते हैं कि भाजपा ने बूढ़े हो रहे राणे को खड़ा करके एक तीर से कई निशाना साध दिया है।
महाराष्ट्र की राजनीति के जानकारों को अब नारायण राणे भाजपा के जनबल के सहारे मराठा राजनीति में कई पुराने दिग्गजों की कमी पूरी करते नजर आ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद वह जन आशीर्वाद यात्रा के जरिए अपना प्रभुत्व दिखाना चाहते हैं और इस खतरे को शिवसेना तथा उद्धव ठाकरे के शुभचिंतक साफ महसूस कर रहे हैं। बीडी चतुर्वेदी करीब 50 साल से महाराष्ट्र में हैं। राजनीति में रूचि रखते हैं। उन्हें लग रहा है कि नारायण राणे भाजपा के लिए मनसे प्रमुख राज ठाकरे की कमी भी पूरी कर सकते हैं। क्योंकि उनके पास अपने समर्थकों के साथ-साथ भाजपा के भी समर्थक हैं।
भाजपा ने साधे एक तीर से कई निशाने
नारायण राणे की गिरफ्तारी के बाद इसका असर महाराष्ट्र की राजनीति पर पड़ने की पूरी संभावना है। नारायण राणे की टीम जन आशीर्वाद यात्रा को पूरा करने के साथ-साथ आगे के राजनीतिक अभियान के बारे में सोचने लगी है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नारायण राणे की गिरफ्तारी का खुलकर विरोध किया है। इससे भाजपा के ही कई नेताओं में बेचैनी है। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी कुछ नेता नारायण राणे की उम्र को लेकर तंज कस रहे थे। माना जा रहा है कि इसके जरिए पार्टी संगठन में शक्ति संतुलन को साधेगी। शिवसेना पर दबाव बढ़ेगा।
नारायण राणे के डीएनए में शिवसेना के शैली की राजनीति
कानितकर ने नारायण राणे के चेंबुर में कॉरपोरेटर रहने के दौरान उनकी शैली को देखा है। कानितकर के साथ-साथ नितिन कर्दम भी कहते हैं कि नारायण राणे बेहद आक्रामक राजनीति करते हैं। शिवसेना की भाषा में। वह कहते हैं कि राणे तो राज ठाकरे, स्मिता ठाकरे के युग वाले शिवसेना के नेता हैं। वह बाला साहब ठाकरे को प्रिय थे, लेकिन कभी उद्धव ठाकरे की चौकड़ी वाले मुख्य नेताओं में नहीं रहे। सचिन कानितकर कहते हैं कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने से पहले तक उद्धव ठाकरे और नारायण राणे का रिश्ता ठीक था, लेकिन बाद में सब टेढ़ा-मेढ़ा होता गया।
वह कहते हैं कि जन आशीर्वाद यात्रा के बहाने एक बयान को लेकर यह गिरफ्तारी भी क्या पता उसी 1990 के दशक की राजनीतिक कड़वाहट का नतीजा हो। अंधेरी पश्चिम में शिवसेना के साथ सक्रिय रहने वाले भगवती मिश्रा भी कहते हैं कि नारायण राणे के समीकरण जितने अच्छे राज ठाकरे के साथ थे, वह उद्धव के साथ कभी नहीं थे। हालांकि सभी का मानना है कि नारायण राणे शिवसेना के संस्थापक बालासाहब ठाकरे को प्रिय थे। 1999 में राज ठाकरे की सलाह और बहुसंख्यक मराठा में दबदबा बनाए रखने के लिए बाला साहब ने नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति दे दी थी। भाजपा से कांग्रेस में आए एक नेता का कहना है कि बाला साहब ने यह निर्णय गठबंधन सरकार में शिवसेना का डीएनए बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया था। यह उनकी चतुर चाल थी। क्योंकि तब राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा का उभार हो चुका था।
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