नई दिल्ली । पांच में से चार राज्यों में (In Four out of Five States) चुनावी जीत के जश्न के साथ (With the Celebration of Victory) भाजपा (BJP) सरकार गठन की तैयारी (Preparation for Government Formation) के साथ हार की समीक्षा भी कर रही है (Is also Reviewing the Defeat) । राज्यों की राजधानी से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक बैठकों का दौरा जारी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , गृह मंत्री अमित शाह , पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष लगातार सरकार गठन और मुख्यमंत्री के चयन के लिए बैठक कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड , गोवा और मणिपुर , इन चारों राज्यों के कार्यवाहक मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश संगठन महासचिव के साथ दिल्ली का दौरा कर रहे हैं। निश्चित तौर पर ये जीत, पार्टी के लिए एक बड़ी जीत है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक तरफ जहां भाजपा इस जीत का जश्न मना रही हैं, वहीं इसके साथ ही हार की समीक्षा भी कर रही है। हार की यह समीक्षा , उन चारों राज्यों में भी हो रही है जहां भाजपा को बंपर जीत हासिल हुई है और अगले कुछ दिनों में जहां भाजपा की सरकार शपथ लेने जा रही है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि चुनाव परिणामों की समीक्षा करना हमेशा से भाजपा की स्वाभाविक रणनीति रही है । हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि 2024 के लोक सभा चुनाव में अब बहुत ज्यादा वक्त नहीं रह गया है और इसलिए इस बार चुनावी नतीजों की समीक्षा लोक सभा चुनाव की रणनीति को ध्यान में रखते हुए की जा रही है ताकि पार्टी चुनावी तैयारियों में सबसे आगे रहे।
लोकसभा में सबसे ज्यादा 80 सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा दोबारा से सरकार बनाने जा रही है। सही मायनों में देखा जाए तो भाजपा की यह ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है लेकिन भाजपा आलाकमान हमेशा भविष्य के कई सालों को ध्यान में रख कर कार्य करता है इसलिए उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों के चुनावी परिणामों को भी भाजपा एक सीख और सबक के तौर पर ही ले रही है। उत्तर प्रदेश में भले ही सहयोगी दलों के साथ मिलकर भाजपा ने 273 सीटें हासिल की हो लेकिन 2017 की 325 सीटों की तुलना में इस बार भाजपा को 52 सीटों का नुकसान हुआ है। उत्तराखंड में 2017 में भाजपा को 57 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जो भारी बहुमत मिलने के बावजूद इस बार घटकर 47 रह गया है।
गोवा और मणिपुर में 2017 के मुकाबले इस बार भाजपा की सीटें बढ़ी है लेकिन इस बड़ी कामयाबी के बावजूद भाजपा ने जो लक्ष्य निर्धारित कर रखा था उसे वो हासिल नहीं कर पाई। सबसे अधिक निराशाजनक प्रदर्शन तो पंजाब का रहा जहां पहली बार बड़े भाई की भूमिका में चुनाव लड़ने और पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा 2017 के 3 सीटों की तुलना में इस बार महज 2 सीटों पर ही चुनाव जीत पाई।
ऐसे में भाजपा ने विरोधी दलों के मुकाबले में दूर की सोचते हुए हर एंगल से हार की समीक्षा शुरू कर दी है। कई-कई घंटो तक चलने वाले बैठकों के दौर में हारी हुई सीटों की विवेचना की जाती है। हार के कारणों का विश्लेषण किया जाता है और उसी अनुसार भविष्य की रणनीति बनाने पर भी चर्चा की जाती है।
सबसे दिलचस्प तथ्य तो यह है कि जिन सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है उन सीटों पर भी बूथवार समीक्षा करते हुए उन बूथों को छांटा जा रहा है जहां भाजपा को कम वोट मिले हैं। जाहिर सी बात है कि सरकार गठन के बाद मंत्रियों और संगठन के नेताओं को इन बूथों पर ध्यान देने की विशेष जिम्मेदारी दी जाएगी।
भाजपा आलाकमान राज्यों के मुख्यमंत्रियों , वरिष्ठ मंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों, प्रदेश संगठन महासचिवों और प्रदेश स्तर के दिग्गज नेताओं के साथ-साथ, प्रभारी,चुनाव प्रभारी और सांसद सहित विभिन्न स्तरों पर नेताओं से हारी हुई सीटों को लेकर फीडबैक ले रहा है । 15 मार्च को नई दिल्ली के अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं पार्टी के सभी सांसदों को अपने-अपने इलाके में हारे हुए 100-100 बूथों का आकलन कर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा है ताकि हार के कारणों का पता लगाया जा सके।
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