भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का कमल थाम कर कमल नाथ सरकार को गिरा दिया था। उनके भाजपा में आने के बाद से ही उनके गढ़ शिवपुरी में लोगों को उम्मीद थी कि अब शहर के दो महाराज (यशोधरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यहां इसी नाम से संबोधित करते हैं) को एक की पार्टी के बैनर तले एक साथ मंच पर देखेंगे। शिवपुरी जिले की दो विधानसभा सीट पोहरी और करैरा के उपचुनाव में यह उम्मीदें और बढ़ गई थीं। चुनावी सभाओं का दौर खत्म होने को है और शिवपुरी विधायक व खेल मंत्री यशोधरा राजे और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ-भतीजे की यह जोड़ी का अब इस उपचुनाव में मंच पर एक साथ आना असंभव ही दिख रहा है। भाजपा के नेता ही दबी जुबान यह स्वीकार रहे हैं कि उनका इतनी जल्दी एक मंच पर आना संभव नहीं है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के स्टार प्रचारक हैं। यदि यशोधरा राजे एक मंच पर उनके साथ आती हैं तो उनकी छवि सिंधिया के आगे दब जाएगी। अब तो शहर की जनता भी कहने लगी है कि दल भले ही मिल गए हैं, लेकिन दिल नहीं मिल पा रहे हैं। 11 सितंबर को पोहरी में हुए शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के मेगा लोकार्पण और भूमिपूजन कार्यक्रम में भी यशोधरा नदारद थीं।
दोनों प्रत्याशी ज्योतिरादित्य समर्थक
पोहरी और करैरा में भाजपा के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य के कट्टर समर्थक हैं। पोहरी में सुरेश राठखेडा के मैदान में होने से पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे प्रहलाद भारती फिलहाल विधायकी की दौड़ से लंबे समय के लिए दूर हो गए हैं। यशोधरा राजे के उपचुनाव में ज्यादा सक्रिय न होने का यह भी कारण माना जा रहा है।
एक ही दल में राजनीति के दो ध्रुव
शिवपुरी में भाजपा में भी स्थानीय राजनीति के अलग-अलग ध्रुव हैं। यहां अभी वरिष्ठ पदों पर बैठे नेता नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक माने जाते हैं। वहीं यशोधरा राजे सिंधिया के सर्मथक नेता नई कार्यकारिणी में पद मिलने की उम्मीद में हैं। पोहरी में पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे प्रहलाद भारती यशोधरा राजे समर्थक हैं और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ उनके रिश्ते उतने मधुर नहीं हैं। जब नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर से सांसद का चुनाव लड़ा था, तब पोहरी विधानसभा क्षेत्र से उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिला था। उस समय पोहरी विधायक प्रहलाद भारती ही थे।
शिवपुरी की राजनीति कभी एक-दूसरे के आडे नहीं आए
भतीजे ज्योतिरादित्य और बुआ यशोधरा, दोनों का गढ़ शिवपुरी है, लेकिन कभी दोनों एक-दूसरे के रास्ते में नहीं आए। जब यशोधरा राजे शिवपुरी से विधायक का चुनाव लडती हैं तो सिंधिया उनके विरोध में खुलकर नहीं आते हैं। वहीं ज्योतिरादित्य यहां से जब सांसद का चुनाव लड़ते हैं तो यशोधरा उनके रास्ते में नहीं आती हैं। दोनों के दल एक होने के बाद भी अभी भी उनमें संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद चल रहा है। ऐसे में दोनों का चंद महीनों में एक साथ मिल जाना दूर की कौड़ी साबित हो रहा है।
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