नई दिल्ली: पूरी दुनिया जब क्रिसमस और न्यू ईयर के जश्न (Christmas and New Year celebrations) में डूब रही होगी, तब देवभूमि उत्तराखंड में पहली बार ऐतिहासिक शीतकालीन यात्रा (Historic winter journey for the first time in Uttarakhand) की शुरुआत होगी. आमतौर पर चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) की शुरुआत उत्तराखंड में गर्मियों में होती है, लेकिन पहली बार शीतकालीन यात्रा पोस्ट मास (First time winter travel post month) में शुरू होने वाली है. यात्रा की शुरुआत जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद करेंगे. शंकराचार्य के प्रतिनिधियों ने रविवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की. सीएम धामी ने चारधाम यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी हैं. 7 दिन की शीतकालीन तीर्थ यात्रा की शुरुआत आगामी 27 दिसंबर से होगी. जबकि इसका समापन 2 जनवरी को हरिद्वार में होगा.
यात्रा के आमंत्रण के लिए ज्योतिर्मठ का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री धामी से मिला और यात्रा का आमंत्रण पत्र दिया. आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा ढाई हजार साल पहले स्थापित परंपराओं का निर्वहन करते हुए ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य शीतकालीन पूजा स्थलों की तीर्थ यात्रा कर रहे हैं. आदिगुरु शंकराचार्य परंपरा के इतिहास में यह पहला अवसर है कि जब ज्योतिष्पीठ के आचार्य द्वारा उत्तराखंड स्थित चार धामों के पूजा स्थलों की तीर्थयात्रा की जा रही है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शंकराचार्य की यात्रा को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि उनकी तीर्थ यात्रा से चारों धामों में शीतकालीन यात्रा को बढ़ावा मिलेगा. इस यात्रा का समापन आगामी 2 जनवरी को हरिद्वार में होगा.
शीतकालीन चारधाम तीर्थयात्रा एक ऐतिहासिक पहल है. इतिहास में पहली बार कोई शंकराचार्य ऐसी यात्रा कर रहे हैं. आम धारणा है कि शीतकाल के 6 महीने तक उत्तराखंड के चार धामों की बागडोर देवताओं को सौंप दी जाती है और उन स्थानों पर प्रतिष्ठित चल मूर्तियों को शीतकालीन पूजन स्थलों में विधि-विधान से विराजमान कर दिया जाता है. इन स्थानों पर 6 महीने तक पूजा पाठ पारंपरिक पुजारी ही करते हैं, लेकिन सामान्य लोगों में यह धारणा रहती है कि अब 6 महीने के लिए पट बंद हुए तो देवताओं के दर्शन भी दुर्लभ होंगे.
ज्योतिर्मठ के प्रभारी मुकुंदनंद ब्रह्मचारी ने बताया कि जन-सामान्य की इसी अवधारणा को हटाने और उत्तराखंड की शीतकालीन चारधाम तीर्थ यात्रा को आरम्भ कर देवताओं के इन शीतकालीन प्रवास स्थल पर दर्शन की परम्परा का शुभारम्भ करने के लिए ‘जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 27 दिसंबर से 2 जनवरी तक यात्रा करेंगे. देव-दर्शन से जहां एक ओर यात्रियों को धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ होगा. वहीं इस यात्रा से पहाड़ के स्थानीय लोगों का भौतिक लाभ होगा. उन्होंने बताया कि यह यात्रा अपने आप में ऐतिहासिक होगी, जब शीतकाल में कोई शंकराचार्य चारधाम की यात्रा करेंगे. इससे न सिर्फ सनातन संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उत्तराखंड जिसका राजस्व धार्मिक यात्राओं पर निर्भर करता है, उसे भी फायदा मिलेगा. संभवत जल्द ही शीतकालीन यात्रा के लिए भी उत्तराखंड के दरवाजे खुल जाएंगे.
ये है यात्रा का पूरा शेड्यूल
ज्योतिर्मठ के मीडिया प्रभारी डा. बृजेश सती ने बताया कि शंकराचार्य की यात्रा को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. 27 दिसंबर को सुबह 8 बजे हरिद्वार से शुरू होने वाली चारधाम यात्रा परंपरा के अनुसार सबसे पहले यमुनाजी की शीतकालीन पूजा के लिए खरसाली गांव में यमुना मंदिर पहुंचेगी. 28 दिसंबर को यमुनाजी की शीतकालीन पूजा स्थल से प्रस्थान करते हुए उत्तरकाशी के रास्ते 29 दिसंबर को यात्रा हर्षिल में गंगाजी की शीतकालीन पूजा स्थल मुखवा गांव पहुंचेगी.
30 दिसंबर को उत्तरकाशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजास्थल ओंकारेश्वर पहुंचेगी. जगतगुरु शंकराचार्य की यात्रा 31 दिसंबर को भगवान ओंकारेश्वर की पूजा के बाद बाबा बद्रीनाथ की शीतकालीन पूजास्थल जोशीमठ पहुंचेगी. चारधाम का यह पड़ाव पूरा करने के बाद 2 जनवरी को जगतगुरु शंकराचार्य अपने शिष्यों के साथ यात्रा का समापन करने हरिद्वार पहुंचेंगे.
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