नई दिल्ली। विपक्ष (Opposition) जितनी भी खुशियां मना ले, लेकिन हकीकत यही है कि नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की लगातार तीसरी जीत (Third victory) ने उनकी ग्लोबल इमेज (Global Image) को और निखारा है। अब वह एक गठबंधन सरकार (coalition government) के नेता के रूप में अपनी बात रखेंगे, जिसमें कई राजनीतिक दल (Political parties) हैं। इससे भारत की भू-राजनीतिक स्थिति मजबूत ही होगी।
लोकतंत्र की जीत: इस आम चुनाव ने विपक्षी दलों को वापसी का मौका दिया, जिसे पश्चिम और पड़ोसी देशों में भारतीय लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा जा रहा है। देश की लोकतांत्रिक साख एक महत्वपूर्ण कारण है कि मोदी सरकार पिछली सरकारों के गुटनिरपेक्ष दर्शन से व्यावहारिक multi-aligned policy में आसानी से बदलाव करने में सक्षम रही है।
पहले वाली टीम : देश की विदेश नीति में बड़े बदलाव की गुंजाइश नहीं दिखती। इसकी वजह है कि जो चार शख्सियतें इसे प्रभावित करती हैं, वे बदली नहीं हैं। वे लोग हैं – पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। केवल एक अपवाद सुनने को मिला है NSA अजित डोभाल का। उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और अब आगे जिम्मेदारी लेने के प्रति अनिच्छा जताई है।
सुधार की दरकार: विदेश नीति में कुछ सुधार हो सकते हैं। विश्व मंच पर मोदी की मौजूदगी के बावजूद उनकी सरकार को आम तौर पर हिंदू राइट विंग और बहुसंख्यकों की सरकार के तौर पर देखा जाता रहा है। पश्चिम का मीडिया इसी तरह से मोदी सरकार की व्याख्या करता है। इसकी वजह से खाड़ी देशों के साथ भारत की बढ़ती रणनीतिक करीबी के बाद भी समय-समय पर मुस्लिम वर्ल्ड के साथ भारत के रिश्ते पर असर पड़ा है।
भारत विरोधी अभियान: हाल ही में मालदीव में ‘इंडिया आउट’ अभियान चला। इसकी वजह से कई दूसरी चीजों के साथ चीन की तरफ झुकाव रखने वाले मोहम्मद मुइज्जू को भी जीत मिल गई। नवंबर 2023 में वह मालदीव के राष्ट्रपति बन गए। रोचक बात यह है कि मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में जो विदेशी मेहमान आए, उनमें मुइज्जू भी थे।
पड़ोसियों की चिंता: इस साल की शुरुआत में बांग्लादेश में कुछ विपक्षी राजनीतिक धड़ों ने भी ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाने का प्रयास किया। हालांकि उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली। मालदीव और बांग्लादेश, दोनों ही मुस्लिम बहुल देश हैं। उनके यहां एक तबका भारत में दक्षिणपंथी सरकार से चिंतित है।
छवि में बदलाव : मोदी सरकार में TDP और JDU जैसे राजनीतिक दल शामिल हैं। ऐसे में इस सरकार की दक्षिणपंथी छवि को बदलना चाहिए। इन दलों को धर्मनिरपेक्ष और अल्पसंख्यक हितैषी माना जाता है। लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार के सीएम और JDU प्रमुख नीतीश कुमार ने मुस्लिम मतदाताओं से कहा था, ‘आपको सांप्रदायिक विवादों के बारे में पहले से पता होना चाहिए। कब्रिस्तान उपेक्षित रहे। मैंने फेंसिंग कराई। यह कभी मत भूलना।’ TDP ने साफ कर दिया है कि वह OBC सूची के तहत मुसलमानों को 4% आरक्षण देने की नीति जारी रखेगी। यह BJP के रुख के विपरीत है, जो मुसलमानों के लिए ‘हिंदू’ OBC कोटा के तहत आरक्षण खत्म करने के पक्ष में है। BJP नेताओं का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देश के मुस्लिमों के खिलाफ बोलना मौजूदा राजनीतिक हालात में सही नहीं होगा।
इमेज पर काम : मोदी सरकार ने पहले ही अपनी इमेज बदलनी शुरू कर दी है। 7 जून को पहली बार NDA के सदस्यों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ‘सर्व पंथ समभाव’ पर यकीन करती है। कूटनीतिक स्तर पर दोस्ताना और मिलनसार सरकार की छवि कई सारे दोस्त बनाने में मदद करेगी, खासतौर पर तेल उत्पादक अरब वर्ल्ड में। साथ ही, भारत के खिलाफ पाकिस्तान के लगातार चलने वाले अभियान को कमजोर करेगी।
पेइचिंग का भड़कना : मोदी ने शपथ ग्रहण से पहले ही बदलाव के प्रयास को भांपना शुरू कर दिया था, जब उन्होंने ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते के साथ पहली बार मेसेज के जरिये बात की। लेकिन, उन्होंने लाई को कॉल नहीं किया। चीन ने पिछले महीने हुए चुनाव में लाई की जीत को मान्यता नहीं दी है। वह ताइवान पर हक जताता है। ऐसे में मोदी और लाई की बातचीत उसे भड़काने के लिए काफी थी। उसने भारत को ‘वन चाइना पॉलिसी’ की याद दिलाते हुए कहा कि वह ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देता।
ताइवान कार्ड: मोदी सरकार से उम्मीद है कि वह ताइवान की सेमीकंडक्टर कंपनियों से अपने यहां निवेश करने के लिए कहेगी। चीन ऐसी किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध करेगा। बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत भी चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए ताइवान कार्ड का इस्तेमाल करेगा। जब भी कोई देश सीधे ताइवान के साथ सीधे रिश्ते बनाता है, तो चीन नर्वस हो जाता है।
PoK का क्या होगा: एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या नई सरकार BJP की इच्छा पर आगे बढ़ेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक अधिकृत कश्मीर के मुद्दे को फिर से उठाएगी। अमित शाह लगातार कहते रहे हैं कि PoK हमारा है और हम इसे वापस लेंगे। उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इसके लिए उठाया जाने वाला कदम डिप्लोमैटिक होगा या फिर मिलिट्री एक्शन। नई NDA सरकार पुरानी BJP सरकार की तरह दिखेगी जिसमें सही चेक और बैलेंस होंगे। विश्व मंच पर भारत के लिए यह अच्छी खबर है।
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