नई दिल्ली (New Delhi) हम अंग्रेजों (british) के जमाने के जेलर हैं फिल्म शोले का यह एक चर्चित डायलॉग था, किन्तु आजादी (independence) के बाद अंग्रेजों के समय की चीजें अप्रासंगिक (Irrelevant) हो गई हैं और ऐसे में उन्हें हटाया जाने लगा। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से इस दिशा में कार्रवाई तेजी से हुई। सरकार के मुताबिक करीब 1500 कानूनों को खत्म या निष्प्रभावी किया गया। अब राजद्रोह कानून को भी खत्म करने की मांग की तैयारी हो चुकी है।
जानकारी के लिए बता दें कि 1 मई को राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई अगस्त तक के लिए टाल दी गई है। केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजद्रोह को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124ए की समीक्षा पर अंतिम चरण की चर्चा जारी है। सुनवाई इसलिए टाली गई ताकि अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी का पक्ष भी जाना जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2022 के 11 मई को राजद्रोह कानून पर रोक लगाई गई थी, जिसे 31 अक्टूबर 2022 को बढ़ा दिया गया था. उस वक्त के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि राजद्रोह कानून (Sediton Law) के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया जाए और पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून यानी 124ए के तहत कोई नया मामला दर्ज न किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून के गलत इस्तेमाल पर जताई थी चिंता
तत्कालीन सीजेआई रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि इस धारा की कठोरता वर्तमान के समाज के लिए सही नहीं है। जब तक धारा 12A के प्रावधानों की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती, तब तक इस कानून के प्रावधानों का उपयोग करना ठीक नहीं है1 सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह राजद्रोह की सीमा को परिभाषित करें।
भारत में राजद्रोह या देशद्रोह कानून क्या है?
भारत में भी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124-ए राजद्रोह या देशद्रोह से संबंधित है. इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो बोलकर, लिखकर, इशारों या चिन्हों के जरिये या किसी और माध्यम से नफरत फैलाता है, अवमानना करता है, लोगों को उत्तेजित करता है या असंतोष भड़काने की कोशिश करता है। वह व्यक्ति राजद्रोह का दोषी माना जाएगा। ज्यादातर लोगों को लगता है कि राजद्रोह और देशद्रोह एक ही है। लेकिन दोनों में अंतर है। आसान भाषा में समझे तो राजद्रोह का केस सरकार की मानहानि या अवमानना के मामले में बनता है और देशद्रोह का केस देश की मानहानि या अवमानना के मामले में बनता है. हालांकि, भारत में राजद्रोह या देशद्रोह दोनों ही मामलों में केस आईपीसी की धारा 124-ए के तहत ही दर्ज किया जाता है।
राजद्रोह कानून को 1870 में लागू किया गया था उस वक्त देश में अंग्रेजों का शासनकाल था और ब्रिटिश सरकार इस कानून का उपयोग उनका विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ किया जाता था। मैकाले ने इस कानून का ड्राफ्ट तैयार किया था। ब्रिटिश शासन काल में सरकार के विद्रोही स्वरूप अपनाने वालों के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत ही मुकदमा चलाया जाता था सबसे पहले 1897 में बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ इसे इस्तेमाल किया गया था।
नहीं कर सकते सरकारी नौकरी के लिए आवेदन
बता दें कि अगर किसी भी व्यक्ति पर राजद्रोह का मामला एक बार दर्ज हो गया तो वह सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है। आईपीसी की धारा 124-ए एक गैर जमानती अपराध है। इस कानून के तहत तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
क्या राजद्रोह को खत्म कर देगी सरकार
इस कानून को लगभग 150 साल पहले यानी 1870 में अस्तित्व में लाया गया था. राजद्रोह कानून के तहत क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि, डॉ. कफील खान से लेकर शफूरा जरगर जैसे कई लोगों की गिरफ्तार की जा चुकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये राजद्रोह कानून देश में अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रहा है?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुलाई 2021 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने अपनी एक टिप्पणी में कहा था कि आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत क्यों है? उन्होंने कहा था कि अंग्रेज इस कानून को लाए थे, जिसे स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए लाया गया था. उस समय अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने राजद्रोह कानून को खत्म करने के बजाय इसके लिए दिशा-निर्देश बनाने पर जोर दिया था। वहीं साल 2022 में जब एक बार फिर राजद्रोह कानून का मुद्दा गरमाया था तब कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि सरकार मौजूदा समय की प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए इस कानून को संशोधित करेगी।
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