नई दिल्ली । तमिलनाडु(तमिलनाडु ) के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (Chief Minister MK Stalin)परिसीमन के मुद्दे(Delimitation issues) को लेकर काफी गंभीर(quite serious) दिखाई दे रहे हैं और वह बीजेपी सरकार को दक्षिण विरोधी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उनका कहना है कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया तो लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए ही दक्षिण को भारी नुकसान होने वाला है। इसी मुद्दे को लेकर शविवार को उन्होंने चेन्नई में विपक्षी दलों की एक बड़ी बैठक बुलाई थी। ओडिशा और पंजाब के अलावा दक्षिणी राज्यों के कांग्रेस नेताओं ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया। हालांकि हिंदी बेल्ट और महाराष्ट्र के दलों ने पहली ही बैठक में किनारा कस लिया। वहीं टीएमसी भी इस बैठक में शामिल नहीं हुई। ऐसे में इस बैठक से यह भी पता चल गया है कि परिसीमन के मुद्दे को लेकर पूरा विपक्ष एकजुट नहीं है।
दक्षिण के राज्यों का कहना है कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो उनकी सीटें कम हो जाएंगी। 2026 की जनगणना के बाद लोकसभा सीटों का परिसीमन होना है। डीएमके ने इस बैठक में उत्तर की विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित ही नहीं किया था। इसें सपा और आरजेडी के अलावा भी कई दल शामिल थे। इसके अलावा महाराष्ट्र से शिवसेना और एनसीपी को भी शामिल नहीं किया गया। टीएमसी को मीटिंग में बुलाया गया था लेकिन टीएमसी ने बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
1977 में लोकसभा चुनाव की बात करें तो औसतन 10.11 लाख लोगों पर एक सांसद था। अब अगर डीलिमिटेशन होता है तो उत्तर के राज्यों और पश्चिम बंगालल में सीटें बढ़ेंगी। पश्चिम बंगाल में लोकसभा सीटें 42 से बढ़कर 66 हो सकती हैं। ऐसा तब होगा जब 15 लाख की जनसंख्या को आधार माना जाएगा। वहीं अगर 20 लाख की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है तो भी पश्चिम बंगाल में 50 सीटें हो जाएंगी। ऐसे में इस मामले को लेकर टीएमसी ने अपना रुख अभी स्पष्ट ही नहीं किया है।
वहीं रिपोर्ट्स की मानें तो समाजवादी पार्टी भी इस मामले पर अभी कोई चर्चा नहीं करना चाहती। समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश की पार्टी है और जनसंख्या के आधार पर निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटें बढ़ेंगी।
परिसीमन के बाद तमिलनाडु में भी सीटें बढ़ेंगी हालांकि इनकी संख्या दोगुनी नहीं हो पाएगी। केरल में 20 से सीटें बढ़कर 36 हो सकती है। अगर 20 लाख की जनसंख्या को आधार मानकर परिसीमन होता है तो लोकसभा की सीटें 543 से बढ़कर 707 हो जाएंगी। ऐसे में दक्षिण के राज्यों को सीटों का नुकसान होना तय है। इस फार्मुले से तमिलनाडु की सीटें केवल 39 ही हो पाएंगी। वहीं केरल को दो सीटों का नुकसान होगा। यूपी, बिहार और झारखंड को इसका फायदा मिलेगा। अगर 15 लाख की जनसंख्या के हिसाब से परिसीमन होता है तो कुल सीटें 942 हो जाएंगी। उत्तर के राज्यों की तुलना में दक्षिण के राज्यों को कम सीटें मिलेंगे।
संयुक्त कार्रवाई समिति (JAC) ने शनिवार को परिसीमन के मुद्दे पर प्रस्ताव पास किया। इसमें केंद्र सरकार से पारदर्शिता की कमी को लेकर चिंता जताई गई है। जेएसी ने केंद्र सरकार से मांग रखी कि किसी भी परिसीमन प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए। साथ ही, 1971 की जनगणना के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों पर लगाई गई रोक को अगले 25 वर्षों तक बढ़ा दिया जाए। प्रस्ताव में कहा गया, ‘लोकतंत्र के चरित्र को सुधारने के लिए केंद्र सरकार की ओर से परिसीमन प्रक्रिया में स्पष्पता होनी चाहिए, ताकि सभी राज्यों के राजनीतिक दल, राज्य सरकारें और दूसरे हितधारक इस पर विचार-विमर्श, चर्चा और योगदान कर सकें।’
प्रस्ताव में आगे कहा गया, ’42वें, 84वें और 87वें संवैधानिक संशोधनों का उद्देश्य उन राज्यों को प्रोत्साहित करना था, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को प्रभावी ढंग से लागू किया है। साथ ही, राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य अभी तक हासिल नहीं हुआ है। इसलिए 1971 की जनगणना के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों पर लगाई गई रोक को अगले 25 वर्षों तक बढ़ाया जाए।’ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली जेएसी ने केंद्र सरकार से उन राज्यों को दंडित न करने की रखी, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू किया है।
प्रस्ताव में क्या रखी गई मांग
जेएसी ने प्रस्ताव में कहा, ‘जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू किया है और जिनकी जनसंख्या हिस्सेदारी कम हो गई है। अब उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को आवश्यक संवैधानिक संशोधन करने होंगे।’ एमके स्टालिन ने कहा कि मौजूदा जनसंख्या के आधार पर प्रस्तावित परिसीमन भाजपा नीत केंद्र सरकार की अपनी गुप्त मंशा को लागू करने की चाल है और इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों, एक उपमुख्यमंत्री और 20 से अधिक राजनीतिक दलों के नेताओं की मौजूदगी में पहली JAC की बैठक हुई। इस दौरान स्टालिन ने कहा कि भाजपा हमेशा से ऐसी पार्टी रही है, जो राज्यों को उनके अधिकारों से वंचित करती है।
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