नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट में आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर वकीलों में जोरदार बहस हुई. आबकारी केस से जुड़े सीबीआई और ईडी दोनों मामलों में जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान मनीष सिसोदिया की ओर से वकील दयान कृष्णन पेश हुए और उन्होंने अपनी दलीलें रखी.
वकील दयान कृष्णन ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की टिप्पणी के मुताबिक आरोपियों की ओर से मुकदमे में देरी करने के लिए एक संगठित प्रयास किया गया था. मैं पूछता हूं, इसका आधार क्या है?वहीं इडी के वकील जुहैब हुसैन ने बताया कि आम आदमी पार्टी को भी इस मामले में आरोपी बनाया जाएगा और पूरक आरोपपत्र दाखिल किया जाएगा.
मनीष सिसोदिया के वकील ने आगे कहा कि 6 दिसंबर 2023 को ईडी ने 540 पन्नों के दस्तावेज रिकॉर्ड में दर्ज करने के लिए आवेदन दायर किया गया. यह आवेदन पहली शिकायत के एक साल से ज़्यादा समय बाद और चौथी सप्लीमेंट्री चार्जशीट के चार महीने बाद दायर किया गया. अब छठी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई है. लेकिन जिस पर चर्चा हुई, वह सभी आरोपी व्यक्तियों के आवेदन थे. इस मुकदमे में कोई प्रगति नहीं हुई है.
वहीं मनीष सिसोदिया के वकील मोहित माथुर ने कहा कि आरोप पर बहस भी पूरी नहीं हुई है, मुकदमा अभी शुरू होना बाकी है. उन्होंने कहा कि मनीष सिसोदिया की पत्नी से मिलने का आवेदन मुकदमे में देरी का कारण कैसे है. हमें आवेदनों की संख्या बताई जा रही हैं, लेकिन कहीं भी यह नहीं दिखाया जाता है कि चेक या हलफनामे या वकालतनामे पर हस्ताक्षर करने, बीमार पत्नी से मिलने की अनुमति कैसे मांगी गई, इन सभी की अनुमति दी गई, तो देरी की कोशिश कैसे हुई?
दूसरी ओर ईडी की ओर से पेश विशेष वकील जोहेब हुसैन ने भी अपनी-अपनी दलीलें रखीं. ED के विशेष वकील ज़ोहेब हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट के मनीष सिसोदिया की जमानत खारिज करने के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नए सिरे से दायर की गई जमानत याचिका की जांच गुण-दोष के आधार पर की जानी चाहिए.
वकील हुसैन ने कहा कि मुकदमे में देरी करने के मक़सद से कई आरोपियों की ओर से कई आवेदन दायर किए जा रहे हैं.हुसैन ने सत्येंद्र जैन की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया. और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ट्रायल में देरी को जमानत देने के एकमात्र आधार के रूप में खारिज कर दिया. हुसैन ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध को आतंकवाद और अन्य गंभीर अपराधों जितना ही गंभीर अपराध माना गया है. इसलिए, कठोरता को बरकरार रखा गया. इसलिए इस तरह के अपराध में केवल देरी पर विचार नहीं किया जा सकता.
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