वॉशिंगटन। चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश भारत को नाटो प्लस में शामिल करना चाहते हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर बनी अमेरिकी कांग्रेस की एक सेलेक्ट कमिटी की हाल में ही जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को शामिल करने के लिए नाटो प्लस व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए। अमेरिका चाहता है कि भारत पश्चिमी देशों की सैन्य शक्ति वाले गठबंधन नाटो प्लस का हिस्सा बने। चीन का मुकाबला करने और ताइवान के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नाटो प्लस में भारत को शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या नाटो में शामिल होने से भारत को फायदा होगा या वास्तव में पश्चिमी देश इसे अपने लाभ के लिए करना चाहते हैं।
नाटो या उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन 31 देशों का एक सैन्य गठबंधन है। इसमें मुख्य रू से अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश शामिल हैं। वहीं, नाटो प्लस में अमेरिका के सहयोगी माने जाने वाले पांच और सदस्य देश शामिल हैं। ये देश आधिकारिक तौर पर नाटो के सदस्य नहीं हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर हथियार, इंटेलीजेंट और दूसरे तरीकों से मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और इजराइल का नाम शामिल है। अब अमेरिका भारत को इस बड़े समूह का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित कर रहा है जो चीन और रूस जैसे अपने धुर विरोधियों के खिलाफ एक साथ खड़ा है।
नाटो का आदर्श वाक्य है “One for all and all for one.” मूल रूप से इसका मतलब है कि अगर आप एक सदस्य पर हमला करते हैं तो आपको उन सभी से सम्मिलित क्रोध का सामना करना पड़ेगा। एक आदर्श दुनिया में, इसका मतलब यह होगा कि अगर भारत नाटो प्लस में शामिल होता है तो उसे अधिक सैन्य समर्थन मिलेगा। भारत को संभवत सैन्य तकनीक पाने और नाटो देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने की पहुंच भी मिलेगी। वर्तमान में नाटो दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य संगठन है। नाटो को मुख्य रूप से रूस के खिलाफ शीत युद्ध के दौरान बनाया गया था।
भारत अगर अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो प्लस में शामिल होता है तो उसे रूस के साथ संबंधों को तोड़ना होगा। नाटो गठबंधन रूस के साथ मौजूदा युद्ध में यूक्रेन का समर्थन कर रहा है। ऐसे में अगर भारत नाटो में शामिल होता है तो इसका सीधा असर रूस के साथ पहले से मजबूत, स्थापित और गहरे संबंधों पर पड़ेगा। यह वही चीज है, जिसे हासिल करने के लिए अमेरिका लगातार प्रयास कर रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत किसी भी कीमत पर रूस के साथ अपने संबंधों को तोड़ दे। इससे रूस से साथ होने वाले रक्षा सौदे अमेरिका को मिलेंगे। इसके अलावा रूस का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत जैसे मजबूत देश के साथ संबंध खत्म हो जाएगा। अमेरिका भारत को नाटो प्लस में शामिल कर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाना चाहता है।
नाटो प्लस में शामिल होने से भारत की सामरिक स्वायत्तता पर भी खतरा बढ़ सकता है। भारत को अपनी हर सामरिक नीति को नाटो के अनुसार डिजाइन करना पड़ेगा। इसके अलावा भारत चाहकर भी अपनी इच्छा के अनुसार, कोई सामरिक कदम नहीं उठा सकता अगर वह किसी नाटो सदस्य के खिलाफ हो। वर्तमान में नाटो सदस्य देश तुर्की, भारत के साथ दुश्मनी निभा रहा है। ऐसे में भारत चाहकर भी तुर्की के खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकता है।
अभी तक भारत अपनी जमीन पर किसी भी विदेशी सैन्य अड्डे की मेजबानी नहीं करता है। लेकिन, नाटो प्लस में शामिल होने का मतलब होगा कि भारत में अमेरिका का एक सैन्य अड्डा होगा। बाकी के नाटो प्लस सदस्य देशों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और इजरायल में अमेरिकी सैन्य अड्डे मौजूद हैं। नाटो का हिस्सा बनने का मतलब अनिवार्य रूप से यह होगा कि भारत को अमेरिका के संघर्षों में घसीटा जाएगा। ऐसे में भारत देश के विकास से भटककर दुनियाभर के संघर्षों में फंस सकता है।
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