नई दिल्ली। कुछ राज्यों (some states) में हिंदुओं (Hindus) को अल्पसंख्यक का दर्जा (minority status) दिया जा सकता है। इस संदर्भ में केंद्र की मोदी सरकार (Modi government) ने बातचीत शुरू करने की योजना बनाई है। केंद्र सरकार राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ एक “व्यापक परामर्श” (“Comprehensive Consulting”) शुरू करेगी ताकि एक याचिका की जांच की जा सके कि क्या हिंदुओं को उन राज्यों में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है जहां उनकी संख्या अन्य समुदायों की तुलना में कम है।
केंद्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और इस संबंध में कोई भी निर्णय राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 सी के तहत छह समुदायों को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया है।
“भविष्य में देश के लिए अनपेक्षित जटिलताओं” को दूर करने के लिए, सरकार ने कहा कि वह 27 मार्च को दायर अपने पिछले हलफनामे के स्थान पर एक नया हलफनामा प्रस्तुत कर रही है। तब केंद्र ने रिट याचिकाओं के एक समूह को खारिज करने की मांग की थी और 1992 राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) अधिनियम और 2004 राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) अधिनियम का बचाव किया था।
एनसीएम अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार ने केवल छह समुदायों, ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध, पारसी और जैन को राष्ट्रीय स्तर के रूप में अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया है। एनसीएमईआई अधिनियम के तहत अधिसूचित छह समुदायों को उनकी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार देता है।
उस समय, केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) पर यह फैसला करने की जिम्मेदारी डाली कि जहां उनकी संख्या कम है वहां हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए या नहीं। इसने यह भी कहा कि केंद्र और राज्यों दोनों के पास अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर कानून बनाने की विधायी क्षमता है।
हलफनामे में कहा गया, ‘‘रिट याचिका में शामिल प्रश्न के पूरे देश में दूरगामी प्रभाव हैं और इसलिए हितधारकों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बिना लिया गया कोई भी कदम देश के लिए एक अनपेक्षित जटिलता पैदा कर सकता है।’’
हलफनामे के मुताबिक, ‘‘अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है, लेकिन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले रुख को राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा।’’
मंत्रालय ने कहा कि यह सुनिश्चित करेगा कि केंद्र सरकार इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे के संबंध में भविष्य में किसी भी अनपेक्षित जटिलताओं को दूर करने के लिए कई सामाजिक, तार्किक और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष एक सुविचारित दृष्टिकोण रखने में सक्षम हो।
शीर्ष अदालत मामले पर 10 मई को सुनवाई करेगी और उसने केंद्र सरकार को अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर अपना रुख रिकॉर्ड पर रखने को कहा है।
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