नई दिल्ली: अमेरिका (America) में राष्ट्रपति चुनाव (presidential election) के उम्मीदवार विवेक रामास्वामी (Vivek Ramaswami) ने कहा है कि वह H1-B वीजा (H1-B visa) को खत्म कर देंगे. इसका तीन चौथाई हिस्सा भारत को मिलते हैं. चूंकि, रामास्वामी भारतीय मूल के हैं, ऐसे में उनकी यह बात अहम हो जाती है. रामास्वामी खुद लगातार एच1-बी वीजा का इस्तेमाल करते हैं.
वीजा जारी करने के लिए आमतौर पर पुराने तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है. आप पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन करते हैं और फिर एक रैंडम प्रोसेस के तहत आपका सेलेक्शन होता है. आमतौर पर इसे लॉटरी सिस्टम कहते हैं. 2018 से 2023 के बीच पांच साल की अवधि में रामास्वामी के पूर्व बायोटेक फर्म रोइवंत साइंस को अमेरिकी सीआईएस यानी सिटिजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विस ने 29 एच1-बी वीजा जारी किए.
अमेरिकी मीडिया ने इस बारे में जब उनसे पूछा तो रामास्वामी ने कहा, “हमने तो नियमों के तहत हासिल किए हैं… लेकिन हां अगर सत्ता में आए तो प्रोग्राम में कुछ बदलाव करेंगे. उन्होंन इस वीजा प्रोग्राम में रैंडल सेलेक्शन की प्रक्रिया की आलोचना की है. पोर्टल पर जो भी चाहे वीजा के लिए अप्लाई कर सकता है. स्वामी कहते हैं कि सैकड़ों-हजारों लोग अप्लाई करते हैं. अमेरिका हर साल 65 हजार एच1बी वीजा जारी करता है. इनमें 20 हजार वीजा उन लोगों के लिए होते हैं, जिनके पास अमेरिकी संस्थान की उच्च डिग्री है. इनके अलावा भारत और चीन के नागरिकों का सबसे ज्यादा यह वीजा मिलता है.
स्वामी ने कहा कि अगर सत्ता में आए तो इस सिस्टम की जगह ‘मैरिटोक्रेटिक एडमिशन’ लागू करेंगे. इसका मतलब कि मेरिट के आधार पर ही वीजा जारी किए जाएंगे. इसमें सिर्फ टेक स्किल्स वाले नहीं होंगे… इसमें अन्य स्किल वाले लोगों को भी वीजा मिल सकेगा. राष्ट्रपति चुनाव के कैंडिडेट खुद एक अप्रवासी हैं. वह इमीग्रेशन पॉलिसी को और भी कठोर करने की बात कर रहे हैं. वह दक्षिणी सीमा पर सेना के इस्तेमाल की वकालत करते हैं. कहते हैं जो अवैध रूप से आए अप्रावासियों के बच्चे हैं, उन्हें वापस भेजा जाए, जबकि अमेरिकी संविधान का अनुच्छे 14 अमेरिका में जन्मे बच्चों को नागरिकता का अधिकार देता है.
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