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जातिगत जनगणना को लेकर क्या BJP फिर अपनाएगी आडवाणी वाला फॉर्मूला?

नई दिल्‍ली (New Delhi)। बिहार सरकार द्वारा जातीय जनगणना (Caste census by Bihar government) के आंकड़े जारी किए जाने के बाद यूपी में भी इस मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई है। विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष में शामिल भाजपा (BJP) के सहयोगी दल भी जातीय जनगणना की मांग को फिर से उठाने लगे हैं।

विदित हो कि हाल ही में बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इस गणना के मुताबिक बिहार में हिंदुओं की सर्वाधिक आबादी है। ये आबादी 81.9986 फीसदी है। वहीं अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी, पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 प्रतिशत, SC-19.65 फीसदी, ST- 1.6 प्रतिशत और मुसहर की आबादी 3 फीसदी बताई गई है। इस रिपोर्ट का सियासी गलियारे के साथ आम लोगों को भी बेसब्री से इंतजार था। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इस रिपोर्ट को नीतीश सरकार का सबसे बड़ा दांव माना जा रहा है। बिहार सरकार की जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की कुल आबादी तेरह करोड़ से ज्यादा यानी 13,07,25,310 है।



सर्वेक्षण के विस्तृत विवरण से पता चलता है कि पिछड़ा वर्ग आबादी का 27 प्रतिशत है, जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) 36 प्रतिशत है। साथ में, वे संख्यात्मक रूप से शक्तिशाली अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का गठन करते हैं, जो मंडल लहर के बाद से बिहार की राजनीति पर हावी रहे हैं।

जहां भूमिहारों की आबादी 2.86 प्रतिशत है, वहीं ब्राह्मणों की संख्या 3.66 प्रतिशत है। कुर्मी – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समुदाय से हैं – जिनकी आबादी 2.87 प्रतिशत है। मुसहर 3 प्रतिशत हैं, और यादव – उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का समुदाय – 14 प्रतिशत आबादी है।

वहीं विपक्ष को नीतीश सरकार के इस दांव में 2024 चुनाव के लिए विनिंग फॉर्मूला दिख रहा है तो बात भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की भी हो रही है. बीजेपी इस दांव की काट कैसे करेगी? फिर वही मंडल, वही कमंडल की बात हो रही है लेकिन तब के नायक यानी लालकृष्ण आडवाणी अब नेपथ्य में है।

लालकृष्ण आडवाणी का एक दिन पहले ही जन्मदिन भी था। ऐसे में ये सवाल और भी मौजूं हो जाता है कि क्या बीजेपी इस बार भी वही आडवाणी वाला फॉर्मूला आजमाएगी जिसके बूते पार्टी ने केंद्र की सत्ता तक का, लोकसभा में दो से 300 से अधिक सीटों तक का सफर तय कर लिया? या नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की ‘त्रिमूर्ति’ कोई नया दांव चलेगी? इसकी तह में जाने से पहले मंडल की राजनीति क्या है और क्या है इसकी काट में आडवाणी का फॉर्मूला? इसकी चर्चा भी जरूरी है।

एनडीए के घटक दल अपना दल (एस) और सुभासपा ने भी जातीय जनगणना कराने की मांग उठाकर भाजपा पर दबाव बढ़ा दिया है। जबकि निषाद पार्टी ने जातीय जनगणना को भरमाने का प्रयास बताया है। अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल का कहना है कि उनकी पार्टी हमेशा से जातीय जनगणना कराने की पक्षधर रही है और इस मुद्दे को सड़क से लेकर संसद तक भी उठाती रही है। रायबरेली में सोमवार को कार्यकर्ता सम्मेलन में उन्होंने जातीय जनगणना को समय की मांग बताया। वहीं, सुभासपा के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता अरुण राजभर का कहना है कि उनकी पार्टी का गठन ही इस मुद्दे की लड़ाई को लेकर हुआ है। पार्टी विधानसभा में इस मुद्दे को कई बार उठा चुकी है। हर वर्ग के हिस्सेदारी की लड़ाई सत्ता के भीतर और बाहर रहकर भी लड़ती रही है। सुभासपा रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की भी मांग कर चुकी है।

वर्ष 1961 की सेंसस के आधार पर हो गणना
निषाद पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री डॉ. संजय निषाद का कहना है कि नीतिश सरकार जातीय जनगणना के नाम पर जातियों को भरमाना चाहती है। इनके वोट को बांटकर ओबीसी और एससी, एसटी की संख्या को छोटा करना चाहते हैं। हम चाहते हैं संवैधानिक रूप से गिनती होनी चाहिए। यदि जातीय जनगणना कराना है तो वर्ष 1961 की सेंसस के आधार पर जातीय जनगणना होनी चाहिए।

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