नई दिल्ली (New Delhi)। स्कूली पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा गठित सामाजिक विज्ञान (social science) की एक उच्च स्तरीय समिति (high level committee) ने सिफारिश की है कि सभी कक्षाओं की स्कूली पाठ्यपुस्तकों में ‘इंडिया’ को ‘भारत’ से बदल दिया जाना चाहिए। हालांकि, एनसीईआरटी ने बुधवार को एक बयान जारी कर उसकी पाठ्यपुस्तकों में इंडिया को भारत के रूप में उल्लेखित करने की सिफारिश पर मीडिया में जारी गहमा-गहमी का जवाब दिया है।
किताबों में देश का नाम ‘India’ की जगह ‘भारत’ लिखने की चर्चा के बीच राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कहा है कि फिलहाल ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। आपको बता दें कि स्कूली सिलेबस में परिवर्तन लाने के लिए एनसीईआरटी द्वारा गठित सामाजिक विज्ञान की एक समिति ने ऐसे सुझाव दिए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि सिलेबस में हिंदू योद्धाओं की जीत की कहानियां भी शामिल किया जाए, हालांकि, एनसीईआरटी ने साफ कर दिया है कि अभी तक इन सुझावों पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। अभी इनपर किसी भी तरह के निर्णय नहीं लिए गए हैं।
एनसीईआरटी के अध्यक्ष दिनेश सकलानी ने कहा कि अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। पिछले कई दशकों से संघ परिवार के संगठनों से जुड़े रहे इसाक ने भारत शब्द के उपयोग का समर्थन करते हुए कहा, ”भारत एक सदियों पुराना नाम है। भारत नाम का प्रयोग विष्णु पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में किया गया है, जो 7,000 वर्ष पुराना है।”
आपको बता दें कि जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान “भारत” शब्द आधिकारिक तौर पर सामने आया जब सरकार ने “प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया” के बजाय “भारत के राष्ट्रपति” के नाम पर गणमान्य व्यक्तियों को रात्रिभोज का निमंत्रण पत्र भेजा। शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की नेमप्लेट पर भी इंडिया की जगह भारत लिखा हुआ था।
पैनल की सिफारिशों पर कुछ विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, ”वे बहुत सी चीजें सुझा रहे हैं। आप देख सकते हैं कि कैसे वे पाठ्यपुस्तकों तथा अन्य चीजों के माध्यम से भारत के इतिहास को विकृत कर रहे हैं। हमारे लिए इंडिया और भारत समान है।”
वहीं, आप की प्रियंका कक्कड़ ने कहा, ”यह दिखाता है कि पीएम को इंडिया गठबंधन से कितना डर है। उनके गठबंधन के साथी उनका साथ छोड़ रहे हैं। नाम बदलने के बजाय बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।”
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