कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए।
वैभव वर्धन दुबे आखिरकार कैंसर से जंग हार गए। गुजिश्ता 22 बरसों से दिल्ली में अमर उजाला, ज़ी-न्यूज़, आजतक और इंडिया न्यूज का ये लाजवाब लाइव प्रोड्यूसर महज 48 बरस की उमर में चल बसा। कोई डेढ़ बरस से पेट के कैंसर से जूझ रहे वैभव ने पीजीआई चंडीगढ़ में आखरी सांस ली। वैभव वर्धन दुबे उस सहाफी का नाम था जिसने भोपाल के माखनलाल पत्रकारिता यूनिवर्सिटी से 1995 में बीजे करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एमए किया। वैभव की सहाफ़त (पत्रकारिता) की इब्तिदा 1999 में दैनिक नईदुनिया से हुई थी। साल 2000 में वो दिल्ली चले गए और वहां अपने हुनर के लपक झंडे गाड़े।
सवा छह फुट लंबे वैभव की कदकाठी जित्ती दिखलोट थी उससे कहीं ज़्यादा मस्त उनका किरदार था। वो अपने काम मे जित्ते काबिल और प्रोफेशनल थे उतने ही मस्तमौला, यारबाज़ और दिलफैंक इंसान थे। पढ़ाई के दिनों में वैभव भोपाल में पत्रकार प्रवीण दुबे और कृष्णमोहन मिश्रा के साथ एक ही रूम में रहते थे। अफसोस में डूबे प्रवीण बताते हैं कि वैभव के दिल मे किसी दरवेश या फकीर का दिल धड़कता था। वो भीतर और बाहर से निहायत मासूम और सच्चा इंसान था। वैभव वर्धन दुबे को बेहद हंसोड़, खिलंदड़ और आनंद के साथ जीने वाले सहाफी के तौर पे जाना जाता था। उनके साथ पढ़े भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल केते हैं कि वैभव वर्तमान में जीनेवाला और जि़न्दगी के हर लम्हे का लुत्फ लेने वाला बन्दा था। उन्हें न किसी से गिला रहा न शिकवा। माखनलाल यूनिवर्सिटी में नामवर सहाफी दिलीप तिवारी और पंकज मुकाती भी उनके करीबी साथी रहे। केम्पस में वैभव जहां भी खड़े हो जाते वो महफि़ल जवां हो जाती। उन्हें पत्रकारिता पढ़ा चुके संजीव शर्मा बताते हैं कि वैभव मौज मस्ती के अलावा पढ़ाई में हमेशा संजिदा स्टूडेंट रहा। वैभव ने आजतक चेनल में लाइव प्रोड्यूसर की लंबी पारी खेली। उन्हें आजतक में सौ तालों की एक चाबी माना जाता था। उनके फ्लोर पे होने भर से शिफ्ट इंचार्ज सुकून में आ जाते। हंसते गाते काम निपटाने और अडिय़ल एंकरों से भी प्यार से डील करना उने खूब आता था। अपनी सहाफत के आखरी दौर में वे इंडिया न्यूज में रहे। पेट के कैंसर से जूझ रहे वैभव को सीनियर सहाफी श्यामलाल यादव की कोशिशों से पीजीआइ चंडीगढ़ भर्ती कराया गया तब केंसर लास्ट स्टेज में पहुंच चुका था। डेढ़ महीने पहले प्रवीण दुबे और कृष्णमोहन मिश्रा अपने कालेज के दिनों के इस दोस्त से मिलने जब चंडीगढ़ पहुंचे तब भी वैभव ने अपनी आदत के मुताबिक खूब ठहाके लगाए। अपने पीछे पत्नी और एक बिटिया को छोड़ गए वैभव को कल हरिद्वार में गंगा किनारे सुपुर्दे आतिश कर दिया गया। यकीनन वैभव अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा धड़कते रहेंगे।