नई दिल्ली. शराब घोटाले (Alcohol scandals) से जुड़े केस में फंसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) जब जमानत (Bail) पर बाहर आए तो माना जा रहा था कि वे अपने गृह राज्य हरियाणा (Haryana) के चुनाव (Election) पर फोकस करेंगे. लेकिन जेल में रहते हुए भी पद नहीं छोड़ने वाले केजरीवाल ने बाहर आने के दो दिन के भीतर ही मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे का ऐलान कर सबको चौंका दिया है. फिलहाल दिल्ली के नए सीएम के नाम पर आम आदमी पार्टी में माथापच्ची जारी है. केजरीवाल ने इस्तीफे के ऐलान के वक्त कहा तो है कि वो नया जनादेश मिलने तक सीएम पर कुर्सी पर नहीं बैठेंगे लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगले साल की शुरुआत में चुनाव में जीत मिलने के बाद भी अगर केजरीवाल सीएम पद से दूर ही रहें तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी.
गौरतलब है कि साल 2013 में 49 दिन की सरकार के बाद करीब एक साल का समय हटा दें तो दिल्ली की सत्ता पर लगातार आम आदमी पार्टी काबिज रही और सीएम अरविंद केजरीवाल ही रहे. केजरीवाल के इस्तीफे वाले दांव को एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर को जीरो करने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. दिल्ली में हुए काम का क्रेडिट तो आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को मिलेगा लेकिन बतौर सीएम अब नया दिल्ली में नया चेहरा होगा. चुनाव से पहले सीएम बदलने का दांव बीजेपी कई राज्यों में चल चुकी है और कई जगह उसे उसका फायदा भी मिला है.
हालांकि राजनीति के जानकार केजरीवाल के इस इस्तीफे के पीछे उनका नेशनल ड्रीम भी देख रहे हैं. उनके मुताबिक ये इस्तीफा साल 2025 के दिल्ली नहीं बल्कि 2029 के आम चुनावों को ध्यान में रखकर दिया गया हो, ये भी हो सकता है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में केजरीवाल के सपोर्टर उन्हें पीएम कैंडिडेट बताते रहे हैं. केजरीवाल का नेशनल ड्रीम किसी से छुपा हुआ भी नहीं है. आज भी जब मोदी और राहुल से इतर पीएम कैंडिडेट पर बात होती है तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम ही लिया जाता है.
सर्वे में केजरीवाल देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बाद दूसरे नंबर पर रहे थे. लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में भी लोकसभा चुनाव नतीजों से पहले अलग-अलग ओपिनियन पोल में अरविंद केजरीवाल को पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बाद फेवरेट बताया गया था. सीएसडीएस-लोक नीति के सर्वे में केजरीवाल को पीएम मोदी और राहुल गांधी के बाद सबसे ज्यादा 11 फीसदी लोगों ने नेशनल लेवल का चैलेंजर बताया था. गारंटी से लेकर महिलाओं के लिए डायरेक्ट कैश बेनिफिट और फ्री बिजली तक, केजरीवाल के कई प्रयोग बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों के चुनाव अभियान की धुरी बन चुके हैं.
यही वजह है कि केजरीवाल के इस इस्तीफे को राजनीतिक जानकार आपदा में अवसर की तरह उनके नेशनल ड्रीम से जोड़ रहे हैं. केजरीवाल भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री हों लेकिन दिल्ली के सीएम की धमक उतनी नहीं होती जितनी यूपी-बिहार-मध्य प्रदेश या किसी दूसरे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री की होती है. ऐसे में दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी का विकल्प बन पाना उनके लिए खासा मुश्किल है. लेकिन अगर वे दिल्ली में किसी और नेता को मुख्यमंत्री बना देते हैं तो वे दिल्ली के सीएम नहीं बल्कि एक ऐसी पार्टी के अध्यक्ष के रूप ही जाने जाएंगे जिसकी दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में बहुमत से सरकारें चल रही हैं. ऐसे में मोदी और राहुल को टक्कर देने के मामले में उनका कद नीतीश, ममता जैसे मुख्यमंत्रियों या अखिलेश-मायावती जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों की तुलना में काफी बड़ा माना जाएगा.
बीजेपी-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों को छोड़ दें तो दिल्ली या किसी भी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री की स्वीकार्यता अन्य राज्यों में ज्यादा नहीं होती. केजरीवाल दिल्ली के सीएम पद को छोड़कर देश का नेता बनने के अपने मिशन पर आगे बढ़ सकते हैं. उनके लिए आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष के रूप में दूसरे राज्यों के वोटरों से कनेक्ट करना तुलनात्मक रूप से ज्यादा आसान हो जाएगा. वे अपने नेशनल ड्रीम के लिए ज्यादा समय देकर देशभर में घूम सकते हैं और कैंपेन कर सकते हैं, उनपर दिल्ली में रहने और यहां की जनता की समस्याएं सुलझाने की बाध्यता नहीं रहेगी. विपक्षी बीजेपी या कांग्रेस उन्हें इसके लिए घेर नहीं सकेंगी, जैसा कि वो अभी करती रही हैं.
विपक्षी इंडिया ब्लॉक में भी अरविंद केजरीवाल की ताकत बढ़ेगी. सीटों के लिहाज से संसद में अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भले ही आम आदमी पार्टी से आगे नजर आएं लेकिन इन दलों का प्रभाव एक राज्य तक ही सीमित है. केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के बाद इकलौती ऐसी पार्टी है जिसकी दो राज्यों में सरकार है और तीन राज्यों की विधानसभा में उसके विधायक हैं. गौरतलब है कि गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी को पांच सीटों पर जीत मिली थी.
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि देश में 2014 तक एक मजबूत तीसरा धड़ा रहा है. विपक्ष में कांग्रेस के हो रहे रिवाइवल के बाद केजरीवाल की रणनीति थर्ड फ्रंट वाले वैक्यूम को भरने की हो सकती है लेकिन चुनौती ये है कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया ब्लॉक में शामिल है. दिल्ली और पंजाब हो या गोवा-गुजरात, आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का वोट बैंक ही है जो कांग्रेस के डाउनट्रेंड को देखते हुए उनके साथ चला गया था. दूसरा पहलू ये है कि दिल्ली-पंजाब में केजरीवाल की इमेज को बहुत ज्यादा नुकसान भले ही न हुआ हो लेकिन बाकी के राज्यों में उनकी इमेज डेंट हुई है. मजबूत होती कांग्रेस, इमेज को हुए नुकसान के बाद केजरीवाल के लिए नेशनल लेवल पर पार्टी का विस्तार चुनौतीपूर्ण होगा.
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