नई दिल्ली (New Dehli)। कर्नाटक हाई कोर्ट (karnataka high court)ने कहा है कि तलाक के मामले (divorce cases)में किसी भी नौकरीशुदा शख्स(employed person) की पत्नी का गुजारा भत्ता टेक होम सैलरी (Alimony Take Home Salary)पर तय नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि तलाक चाहने वाले पति द्वारा पत्नी को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भुगतान की जाने वाली भरन-पोषण राशि का आकलन करते समय कुल वेतन से होने वाली कटौतियों यानी भविष्य निधि अंशदान (PF Deduction), त्योहार अग्रिम (Festival Advance), एलआईसी प्रीमियम (LIC Premium), मकान किराया वसूली (House Rent Recovert) और ऋण (Loan) जैसी कटौतियों को शामिल नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस एच संजीवकुमार की सिंगल बेंच ने इस तर्क के साथ याचिकाकर्ता पति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उसकी पत्नी को 15,000 रुपये और उसकी बेटी को 10,000 रुपये का मासिक भरण-पोषण देने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी और दावा किया गया था कि उसकी टेक होम सैलरी कम है, जबकि भरन-पोषण राशि उसके अनुपात में ज्यादा है।
दायर इस याचिका को योग्यताहीन करार दिया
जस्टिस संजीवकुमार ने भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारी द्वारा दायर इस याचिका को योग्यताहीन करार दिया और कहा कि कर्मचारी की सैलरी से होने वाली कटौतियां केवल याचिकाकर्ता के लाभ के लिए हैं। याचिकाकर्ता बैंक मैनेजर है। उसने अदालत में अपनी सैलरी स्लिप पेश की थी और विभिन्न कटौतियों के आधार पर दावा किया था कि उसकी टेक होम सैलरी कम है, इसलिए उस पर भरण-पोषण का राशि का कम भार दिया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए तर्क दिया था कि उसका कुल मासिक वेतन 1,01,628 रुपये है लेकिन विभिन्न तरह की कटौतियों के बाद उसकी टेक होम सैलरी सिर्फ 77, 816 रुपये ही है। इसलिए वह पत्नी और बच्चे के लिए पारिवारिक न्यायालय द्वारा तय की गई भरण-पोषण की राशि देने में सक्षम नहीं है। उसकी पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में कहा था कि उसके पास जीवनयापन का कोई और आधार नहीं है।
फिर तो हर कोई मनमाना डिडक्शन करवाने लगेगा
इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी भी कर्मचारी की अनिवार्य कटौती इनकम टैक्स और प्रोफेशनल टैक्स हैं, जबकि इस मामले में याचिकाकर्ता ने केवल अपनी पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर कई मदों में कटौती करवाई है। न्यायाधीश ने कहा कि आखिरकार इन कटौतियों का लाभ याचिकाकर्ता को ही होना है, इसलिए उन कटौतियों के आधार पर कम मात्रा में भरण-पोषण की राशि तय करने का यह आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा किया तो यह प्रवृति बन जाएगी और तलाक एवं गुजारा भत्ता तय करने के मामले में हर कोई इसी तरह का मनमाना डिडक्शन करवाने लगेगा।
याचिकाकर्ता भारतीय स्टेट बैंक में ब्रांच मैनेजर
बता दें कि याचिकाकर्ता भारतीय स्टेट बैंक में ब्रांच मैनेजर है। उसने अपनी पत्नी से तलाक मांगा था, जिसने मैसूर की एक पारिवारिक अदालत के समक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करते हुए एक अलग याचिका दायर की है। महिला ने अंतरिम भरण-पोषण के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन भी दायर किया था, जिस पर सुनवाई करते हुए परिवार न्यायालय ने पिछले साल 16 अगस्त को पत्नी को आजीवन या दोबारा शादी करने तक हर महीने 15000 रुपये और चार साल की बेटी को 10,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इसके अलावा 10,000 रुपये मुकदमे का खर्च देने का भी आदेश दिया था।
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