भोपाल: ग्वालियर के सिंधिया परिवार (Scindia family of Gwalior) की समृद्धि किसी से छिपी नहीं है। संपत्ति के लिए सिंधिया परिवार में चल रहा विवाद भी वर्षों पुराना है। इसकी शुरुआत राजमाता विजयाराजे सिंधिया (Rajmata Vijayaraje Scindia) के जीते जी ही हो गई थी। राजमाता और उनके बेटे माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) के बीच संपत्ति को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि उन्होंने कथित रूप से अपनी वसीयत से बेटे को बेदखल कर दिया था। दोनों के बीच रिश्ते इतने तल्ख हो गए थे कि एक बार तो राजमाता जयविलास पैलेस में अपने बेटे के खिलाफ ही आमरण अनशन पर बैठ गई थीं।
1980 में हुआ संपत्ति का बंटवारा
राजमाता और माधवराव के बीच संपत्ति के बंटवारे की शुरुआत 12 अक्टूबर, 1980 को हुई थी। यह राजमाता का 60वां जन्मदिन था और माधवराव ने इस मौके पर मुंबई के समुद्र महल में पार्टी रखी थी। राजमाता अपने सहयोगी सरदार आंग्रे के साथ पार्टी में देर से पहुंचीं और थोड़ी देर में ही निकल गई। जाते-जाते वे माधवराव को भी अपने साथ कार में बिठाकर ले गईं। वे सीधे वहां से डीएम हरीश के ऑफिस पहुंची जो सिंधिया परिवार के टैक्स कंसल्टेंट थे। उन्होंने हरीश से तत्काल ही संपत्ति का औपचारिक बंटवारा करने को कहा। इसके कुछ दिन बाद ही यह वाकया हुआ था जब राजमाता अपने बेटे के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गई थीं। इसकी वजह सिंधिया परिवार का पुश्तैनी शिवलिंग था।
युद्ध में शिवलिंग को पगड़ी में बांधकर रखते थे महादजी सिंधिया
यह शिवलिंग पन्ना का बना था। अंडे की आकार का यह शिवलिंग कई पुश्तों से सिंधिया परिवार के पास है। कहा जाता है कि सिंधिया परिवार के लिए यह शिवलिंग सौभाग्य और विजय का प्रतीक है। ग्वालियर की सेना जब भी किसी युद्ध में जाती थी तो महादजी सिंधिया इसे अपनी पगड़ी के अंदर पहनकर जाते थे। सिंधिया महाराज और महारानी हर साल जो पूजा करते थे, शिवलिंग उसका अभिन्न हिस्सा होता था। इसकी कीमत का वास्तविक आकलन सामने नहीं आया, लेकिन सिंधिया परिवार की समृद्धि के प्रतीक के रूप में यह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था।
राजमाता ने बेटे से मांगा शिवलिंग
संपत्ति के बंटवारे के ठीक बाद राजमाता सिंधिया ने शिवलिंग अपने पास रखने की इच्छा जताई। उन्होंने माधवराव से इसकी मांग की। इसको लेकर दोनों के बीच अनबन होने लगी। मामला तब बिगड़ गया जब माधवराव की पत्नी माधवीराजे इस विवाद में कूद पड़ीं। माधवीराजे आम तौर पर चुप ही रहती थीं। सास और पति के बीच विवाद में वे कुछ नहीं बोलती थीं। शिवलिंग को लेकर जब विवाद शुरू हुआ तो माधवीराजे ने कह दिया कि ग्वालियर की महारानी के रूप में शिवलिंग की पूजा करना उनकी जिम्मेदारी है। इतना ही नहीं, माधवीराजे ने यह भी कहा कि शिवलिंग की पूजा तभी सही मानी जाती है जब कोई सौभाग्यवती महिला पूजा में बैठे।
काफी पहले अपने पति को खो चुकी विजयाराजे यह सुनकर बेहद आहत हो गईं। नाराज होकर वे जयविलास पैलेस में अनशन पर बैठ गईं। उन्होंने कह दिया कि शिवलिंग उन्हें वापस नहीं मिला तो वे भूखी-प्यासी रहकर अपनी जान दे देंगी। राजमाता के इस ऐलान से माधवराव बुरी तरह डर गए। वे कुछ कर नहीं पा रहे थे क्योंकि एक तरफ मां थी तो दूसरी तरफ पत्नी। वे राजमाता के जिद्दी स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थे। वे डर रहे थे कि राजमाता को सचमुच कुछ हो न जाए। माधवराव अपनी पत्नी को मनाने में लग गए। काफी मशक्कत के बाद माधवीराजे शिवलिंग देने को राजी हुईं। राजमाता को शिवलिंग वापस मिला, तब जाकर उन्होंने अपना अनशन तोड़ा। इधर, इस घटना से माधवराव को भी चोट पहुंची। उन्होंने राजमाता की मौत के बाद भी शिवलिंग अपने पास रखने से इनकार कर दिया। तब से यह शिवलिंग राजमाता की सबसे बड़ी बेटी उषाराजे के पास नेपाल में है।
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