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    क्यों प्रमोटर और सीईओ का फर्क समझे सबसे धनी महिला कारोबारी

  • December 01, 2021

    – आर.के. सिन्हा

    आपने पिछले कुछ दिन पहले मीडिया में ब्यूटी ई-कॉमर्स कंपनी नायका की प्रमोटर फाल्गुनी नायर के बारे में अवश्य देखा-पढ़ा-सुना होगा। फाल्गुनी नायर अपनी कंपनी के आईपीओ की जबरदस्त सफलता के चलते देश की सबसे धनी सेल्फ मेड महिला बन गई हैं। अमीरी के मामले में फाल्गुनी नायर बायोकॉन की महिला संस्थापक किरण मजूमदार शॉ से भी आगे निकल गई हैं। फाल्गुनी नायर की कुल संपत्ति 56 हजार करोड़ से अधिक हो गई है। अगर बात इन आंकड़ों से जरा हटकर करें तो अब उम्मीद है कि वह अपनी कंपनी को पेशेवर तरीके से चलाएंगी। अब उन्हें अपनी कंपनी के शेयरधारकों के हितों का भी खासा ख्याल रहेगा। अब फाल्गुनी अपनी कंपनी को घर की दुकान की तरह से तो नहीं ही चलाएँगी।

    आप उनकी कंपनी “नायका” के बोर्ड को एक नजर देखिए। उसे देखकर आप निराश ही होंगे। उनके अलावा, बोर्ड में फाल्गुनी के पति संजय नैयर, पुत्र और पुत्री भी हैं। आठ सदस्यों के बोर्ड में चार सदस्य एक ही परिवार के हैं। इसे आप परिवार वाद नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे। क्या परिवार वाद के लिए सिर्फ सियासी नेताओं को दोष दिया जाता रहेगा? फाल्गुनी नायर को समझना होगा कोई भी कंपनी तभी सफल होती है जब वह पेशेवर तरीके से चलाई जाती है। तब ही उसकी साख बढ़ती है और सम्मान बढ़ता है। अन्यथा नहीं। सफल आईपीओ का कतई यह अर्थ नहीं है कि आपने सबकुछ हासिल कर लिया है। किसी कंपनी या समूह को सफल बनाने के लिए लंबी साधना और संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ता है। इसके लिए श्रेष्ठतम पेशेवरों को अहम पदों पर नियुक्त करना पड़ता है।

    दरअसल फाल्गुनी नायर जैसे किसी कंपनी के प्रमोटरों को अपने यहां तत्काल पेशेवर मैनेजिग डायरेक्टर/ मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति करने के संबंध में गंभीरता से विचार करना होगा। पेशेवर अधिकारियों को ही प्रमोटर और कंपनी के बोर्ड के विजन को अमली जामा पहनाना होता है। यह भारत तो छोड़िए, दुनिया की सबसे बेहतरीन कंपनियों में हो रहा है। गूगल में सुंदर पिचाई, माइक्रो साफ्ट में सत्या नडेला, पेप्सी को में इंडिरा नूई सीईओ बनते हैं। ये कुछ चंद उदाहरण हैं जिनसे साबित होता है कि दुनिया की श्रेष्ठतम कंपनियों को भी अब प्रमोटर और सीईओ का अंतर समझ आ गया है।

    अगर बात भारत की करें तो यहां टाटा ( एन.चंद्रशेखरन), महिन्द्रा एंड महिन्द्रा (डॉ. अनीष शाह), इंफोसिस (सलिल पारेख), भारती एयरटेल (गोपाल विट्टल), गोदरेज (विवेक गंभीर) वगैरह में भी प्रमोटर और सीईओ अलग-अलग इंसान हैं। इस तरह के दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते हैं। अगर आप उन कंपनियों/ समूहों को देखें जिनमें प्रमोटर और सीईओ के बीच के अंतर को समझ लिया गया है तो साफ हो जाएगा कि इन कंपनियों के प्रमोटर विजनरी हैं। वे कुछ हटकर करना चाहते हैं।

    माइक्रो साफ्ट के फाउंडर चेयरमेन बिल गेट्स का लक्ष्य सिर्फ धन कमाना ही नहीं रहा है। यही बात रतन टाटा के संबंध में भी कह सकते हैं। ये अपने मैनेजरों और सीईओ को मार्गदर्शन भर देते हैं। उन्हें कंपनी को चलाने के गुण बताते-सिखाते हैं। ये अपने सीईओ के सिर पर चौबीसों घंटे बैठे नहीं रहते। यही बात हमारे अपने एन. नारायणमूर्ति, आनंद महिन्द्रा, शिव नाडार, दीपक नायर (एचडीएफसी बैंक) के बारे में भी लागू होती है। ये सब अपने परिवार को अपनी कंपनियों/ समूहों से दूर रखते हैं। किसी के भी परिवार का कोई सदस्य सीईओ के पद पर नहीं है। ये जानते हैं कि कंपनी को पेशेवर तरीके से ही चलाया जा सकता है। इसलिए ये सबका सम्मान पाते हैं। दीपक नायर ने आदित्य पुरी को एचडीएफसी का सीईओ बनाया। आदित्य ने एचडीएफसी को देश का चोटी का बैंक बना दिया। प्रमोटर का काम बेहतर पेशेवरों को खोजना होता है। फाल्गुनी नायर को कॉरपोरेट जगत के इन दिग्गजों से सीखना होगा। हैरानी की बात है कि जिस फाल्गुनी नायर का बैंकिंग और कॉरपोरेट की दुनिया का लंबा अनुभव है, वह अपनी कंपनी को अभी तक एक पंसारी दुकान के अंदाज से ही चला रही हैं।

    हां, अब भी हमारे यहां बजाज आटो, हीरो ग्रुप, डॉ रेड्डीज, सन फार्मा जैसे समूहों को प्रोमोटर ही देखते हैं। पर ये सब भी बेहतर कर रहे हैं, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है। इधर बदलाव आने में वक्त लग सकता है क्योंकि पुरानी व्यवस्था लंबे समय से जारी है। लेकिन फाल्गुनी नायर का वैंचर तो बिल्कुल नया है। उनका तो स्टार्ट-अप है। उन्हें तो एक उदाहरण पेश करना चाहिए था। लेकिन, उन्होंने अपने बोर्ड में भरा हुआ है अपने पति और बच्चों को। हालांकि उनके पति या बच्चों की काबिलियत पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहा है। लेकिन, इससे एक बेहतर संदेश तो बाहर नहीं जाता।

    सबको पता है कि आर्थिक उदारीकरण के बाद देश में उद्यमियों की नई जमात खड़ी हो रही है। और उस अवसर को लपकने में आधी दुनिया भी कहां पीछे रहने वाली थी। फाल्गुनी नायर की तरह कल्पना सरोज की भी कहानी बेजोड़ है। वो दलित हैं। कमानी ट्यूब्स की अध्यक्ष हैं। उन्हें पहले दलित बिजनेस चैंबर ने सम्मानित किया। वर्ण-व्यवस्था के सबसे निचले स्तर से आने के बाद भी उन्होंने बिजनेस की दुनिया में अपने लिए जगह बनाई। पर अभी भी कॉरपोरेट जगत में सेल्फ मेड या कहें कि अपने बलबूते आगे बढ़ने वाली औरतें बहुत ही कम है। कॉरपोरेट बोर्ड रूम में आमतौर पर कंपनियों के प्रमोटर अपनी पत्नियों, बेटियों, बहुओं वगैरह को रख लेते हैं।

    तो बात यह है कि भारत में फाल्गुनी नायर, किरण मजूमदार शॉ या कल्पना सरोज जैसा औरतें बहुत कम हैं। ये आधी दुनिया के लिए एक तरह से देखा जाए तो आदर्श का भी काम करती हैं। इनके सफल होने से ना जाने कितनी और युवतियां कुछ अपना काम-धंधा खोलने के संबंध में सोचती होंगी। इसलिए ही फाल्गुनी नायर के देश की सबसे धनी महिला होने को मीडिया ने इतनी प्रमुखता दी थी। उनकी ब्यूटी ई-कॉमर्स कंपनी नायका आगे बढ़ेगी ही, अगर उसे सशक्त और पेशेवर नेतृत्व मिलेगा। अब यह फाल्गुनी नायर पर निर्भर करता है कि वह अपनी कंपनी को कितना पेशेवर बनाती हैं। उन्हें याद रखना होगा कि उनकी कामयाबी से प्रेरित होकर बहुत सारे नौजवान, खासतौर पर युवतियां, उद्यमी बनने के रास्ते पर बढ़ेंगे। उनके हरेक कदम पर देश की नजर भी रहेगी।

    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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