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प्रयागराज का महाकुंभ हरिद्वार-उज्जैन के कुंभ से ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों

January 13, 2025

डेस्क: प्रयागराज में महाकुंभ का आगाज हो चुका है. बड़ी संख्या में देश-दुनिया के आस्थावान त्रिवेणी में डुबकी लगाने पहुंच चुके हैं. यह सिलसिला अब लगातार जारी रहेगा. हर 12 साल के अंतराल पर लगने वाला कुंभ हरिद्वार में गंगा, नासिक में गोदावरी, उज्जैन में शिप्रा और प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर आयोजित किया जाता है. मान्यता है कि प्रयागराज का कुंभ ज्यादा महत्वपूर्ण है. ऐसा क्यों है आइए जान लेते हैं?

हिंदू धर्म में मान्यता है कि बृहस्पति के कुंभ राशि और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. प्रयाग का कुंभ मेला वास्तव में सभी कुंभ मेलों में अधिक महत्व रखता है. कुंभ का अर्थ ही है कलश और ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का चिह्न भी यही है. इस मेले की पौराणिक मान्यता सागर मंथन से जुड़ी है.

कहा जाता है कि देवों और दानवों ने सागर मंथन से निकले रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया था. इस दौरान सबसे मूल्यवान अमृत निकला था, जिसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों में लड़ाई होने लगी. राक्षसों से बचाने के विष्णु भगवान ने अमृत का पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया तो राक्षसों ने उसे छीनने का प्रयास किया. उसी दौरान पात्र में से अमृत की बूंदें छलकीं और प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं. इसीलिए इसका आयोजन किया जाता है.

वैसे तो महाकुंभ की ऐतिहासिकता के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है पर कुछ ग्रंथों में जानकारी दी गई है कि कुंभ मेला 850 साल से भी अधिक पुराना है. आदि शंकराचार्य ने महाकुंभ की शुरुआत की थी. वहीं, कुछ कथाओं में उल्लेख मिलता है कि महाकुंभ मेले का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से ही होता आ रहा है. वहीं, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि गुप्त काल के शासन के दौरान इसकी शुरुआत हुई थी. हालांकि, सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल से इसके प्रमाण मिलते हैं. इसी के बाद शंकराचार्य और उनके शिष्यों ने संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम के तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की थी.


प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का अधिक महत्व इसलिए माना गया है, क्योंकि यहां पर तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है. इसलिए यह स्थान अन्य स्थानों की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण है. भले ही आज सरस्वती नदी विलुप्त हो चुकी है, फिर भी वह धरातल में आज भी बहती है. ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति इन तीनों नदियों के संगम में शाही स्नान करता है, उसे मोक्ष मिलता है.

संगम तीरे महाकुंभ के दौरान शाही स्नान के लिए खासतौर पर जाना जाता है. यहां मेले के दौरान आध्यात्मिक ज्ञान के साथ ही साथ सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का भी आदान-प्रदान होता है. प्रयागराज में आयोजन के दौरान संतों, ऋषियों और योगियों के ध्यान और साधना का विशेष समय होता है. कुंभ पुराण में जानकारी मिलती है कि हर छह साल में अर्ध कुंभ और 12 साल में पूर्ण कुंभ लगता है.

12 पूर्ण कुंभ जब पूरा होता है तो महाकुंभ का आयोजन होता है. ऐसे में 144 साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है. इस बार प्रयागराज में लगा महाकुंभ मेला 144 साल बाद ही आयोजित हो रहा है. इससे पहले साल 2019 में अर्ध कुंभ और 2013 में पूर्ण कुंभ मेला लगा था.

प्रयागराज में इस बार महाकुंभ मेले का खास महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यहां केवल संगम में ही 10 से 12 करोड़ लोग स्नान करेंगे. एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि धरती पर महाकुंभ के दौरान देवलोक के द्वार खुलते हैं और देवता भी पृथ्वी पर आकर पवित्र संगम में स्नान करते हैं. शिव पुराण के अनुसार माघ पूर्णिमा पर भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती और दूसरे कैलाशवासियों संग वेश बदलकर कुंभ में घूमने आते हैं. फिर इस बार प्रयागराज में महाकुंभ का अपना वैज्ञानिक महत्व भी है.

ज्योतिषियों का कहना है कि इस समय सूर्य, शनि, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की ठीक वैसी ही स्थिति बन रही है जो सागर मंथन के समय बनी थी. इससे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र में बढ़ता है और मनुष्य के शरीर पर इसका सकारात्मक असर होता है. इसलिए महाकुंभ मेला आध्यात्मिक के साथ ही भौतिक दृष्टि से भी लाभकारी है.

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