डेस्क: जब सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रान्ति का त्योहार मनाया जाता है. ज्यादातर ये त्योहार 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है. इस बार मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी. मकर संक्रान्ति को पवित्र नदियों के स्नान और दान पुण्य का विशेष दिन माना जाता है.
इस दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है. घर में भी भोजन के दौरान उड़द की दाल की खिचड़ी बनाकर खायी जाती है. तमाम लोग खिचड़ी के स्टॉल लगाकर उसका वितरण करके पुण्य कमाते हैं. इस कारण तमाम जगहों पर इस त्योहार को भी खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि इससे सूर्यदेव और शनिदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है.
ये कथा है प्रचलित
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी. बताया जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे. उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी. ये झटपट तैयार हो जाती थी. इससे योगियों का पेट भी भर जाता था और ये काफी पौष्टिक भी होती थी.
बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रान्ति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और उस दिन खिचड़ी का वितरण किया. तब से मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा की शुरुआत हो गई. मकर संक्रान्ति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है. इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और लोगों में इसे प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है.
धार्मिक महत्व भी समझें
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं. ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबन्धित माना गया है. ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है. वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबन्ध मंगल से जुड़ता है. इस तरह मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होती है.
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