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    क्यों बदला-बदला सा है ईरान?

  • July 18, 2020

    – आर.के. सिन्हा

    भारत के प्राचीन विश्वसनीय मित्र ईरान ने हमें एक तगड़ा झटका दे दिया है। यह किसी ने नहीं सोचा होगा कि ईरान भारत को चाहबहार-जाहेदान रेलमार्ग परियोजना से अलग कर देगा। उसने इस प्रोजेक्ट में भारतीय साझेदारी खत्म करने का फैसला लिया है और यह तय किया है कि उसकी यह महत्वाकांक्षी परियोजना अब चीनी मदद से पूरी होगी। एक तरह से ईरान ने भारत के जख्मों पर नमक डाला है। सबको मालूम है कि वर्तमान समय में भारत के रिश्ते चीन के साथ बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं। दोनों के बीच सीमा पर झड़प भी हुई है। ऐसी स्थिति में भारत के मित्र ईरान का चीन से सांठगांठ चिंताजनक तो है ही।

    बहरहाल, भारत को ईरान के रवैये पर शीघ्र कदम उठाते हुए उससे तुरंत बात करनी ही होगी। हम ईरान से दूर नहीं जा सकते। न ईरान का हमसे दूरी बनाने में कोई भला है। असल में, 2016 में ही ईरान-भारत के बीच एक समझौता हुआ था जिसमें भारत ईरान में 60 हजार करोड़ रुपये निवेश करता। अभी चीन ने ईरान में अगले 20 साल में 30 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाई है। अब यह रेल परियोजना भी चीन की मदद से ही पूरी होगी।

    सवाल यह उठता है कि ईरान ने भारत से साझेदारी खत्म क्यों की? जाहिर है, यह सवाल कूटनीतिक हलकों में पूछा ही जाएगा। ईरान का कहना है कि भारत से फंडिंग में देरी हो रही थी इसलिए उसे यह कदम उठाना पड़ा। अभी भारत को इस संबंध में जवाब देना होगा। पर माना जा रहा है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के भारत में प्रस्तावित 3 लाख करोड़ के निवेश के कारण ईरान भारत से दूर हुआ। ईरान का जानी दुशमन है, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरत। हालांकि, ये सब इस्लामिक मुल्क ही हैं। पर सबके स्वार्थ अलग-ही-अलग होते हैं। ईरान और भारत के बीच चार साल पहले चाहबहार पोर्ट से अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर ज़ाहेदान तक रेल लाइन बिछाने को लेकर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ था। अब ईरान ने खुद इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का फ़ैसला लिया है और बताया जाता है कि इस 628 किमी लंबे रेलमार्ग को बिछाने का काम शुरू भी हो गया है। यानी ईरान भारत से खासा नाराज लग रहा है। वर्ना वह इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकता था।

    ईरान इस प्रोजेक्ट को 2022 तक पूरा करना चाहता है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण परियोजना खास रही है क्योंकि भारत इस परियोजना के माध्यम से ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के साथ मिलकर एक अंतरराष्ट्रीय यातायात मार्ग स्थापित करने का इच्छुक रहा है। भारत के इस इरादे से पाकिस्तान गंभीर रूप से चिंतित रहा है। निश्चित रूप से भारत को अब इस मोर्चे पर सक्रिय होना होगा। ये भारत की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला है।

    भारत के लिए ईरान बहुत महत्वपूर्ण मित्र देश रहा है। ईरान न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है बल्कि पूरे एशिया, रूस तथा पूर्वी यूरोप में आने-जाने का अहम मार्ग भी है। भारत इन सब तथ्यों से भलीभाँति अवगत रहा है। लेकिन ढुलमुल और कमज़ोर विदेश नीति की वजह से पिछले दशकों में इस दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हो पायी। ईरान से संबंधों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं पूरी तरह से गंभीर रहे हैं। मोदी ईरान यात्रा पर जा भी चुके है। उनकी यात्रा से दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय संपर्क एवं ढाँचागत विकास, ऊर्जा साझेदारी द्विपक्षीय कारोबार के क्षेत्र में विशिष्ट सहयोग को गति भी मिली थी।

    कहना न होगा कि भारत ऊर्जा से लबरेज ईरान के साथ अपने संबंधों में नई इबारत लिखना चाहता रहा है। मोदी की यात्रा से ईरान को यह संदेश भी मिला था कि भारत उसके साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूती देना चाहता है। पर ये अचानक से क्या हो गया कि ईरान ने भारत को एक बड़ा कूटनीतिक झटका दे दिया। ईरान तो हर कठिन मौके पर भारत के साथ खड़ा रहा है। अब भारत को ईरान के साथ अपने संबंधों को लेकर बहुत समझदारी से कदम उठाने होंगे। भारत को किसी भी हालत में ईरान की अनदेखी नहीं करनी चाहिये।

    यह भी सच है कि पहले भी भारत और ईरान के बीच कई प्रकार के मतभेद और गलतफमियां होती रही हैं। हालांकि मोदी की हालिया यात्रा के बाद पुराने गिले-शिकवे काफी हद तक दूर हो गए थे। मोदी अपनी ईरान यात्रा के समय वहां के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खुमैनी से भी मिले थे। खुमैनी मोदी से गर्मजोशी से मिले थे। तब तो ऐसा लग रहा था कि भारत-ईरान के संबंध पहले से भी बेहतर, नई बुलंदियों को छूते रहेंगे।

    भारत और अमेरिका के बीच 2008 में हुए असैन्य परमाणु करार के बाद ईरान के साथ बहुत सारी परियोजनाओं को हमारी तत्कालीन मनमोहन सरकार ने या तो रद्द कर दिया गया था या फिर कई महत्वपूर्ण योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। ईरान पर लगे प्रतिबंध के कारण भारतीय कम्पनियों ने ईरान में निवेश करने से भी परहेज करना चालू कर दिया था। लेकिन प्रतिबन्ध हटने के बाद अब भारतीय कंपनियां वहां निवेश भी करने लगी हैं। भारत को सोचना होगा कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरत से घनिष्ठता बढ़ाते हुए भी ईरान को किसी तरह से नजरअंदाज नहीं करे।

    शिया मुल्क ईरान को यह भी पता है कि भारत में शिया मुसलमानों के साथ भेदभाव या कत्लेआम कतई नहीं होता। भारत में शिया मुसलमानों को उनकी योग्यता और रोशन ख्याल होने के चलते बहुत आदर के साथ देखा जाता है। ईरान इस बात से भी वाकिफ है कि पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के साथ बहुत अत्याचार होते हैं। ईरान भी शायद इसी वजह से भारत को महत्व देता रहा है। ईरान तो राजधानी दिल्ली में ईरानी स्कूल भी चलाता है। ईरान की भारत में आने वाली हस्तियां ईरानी स्कूल में आती ही रहती हैं। लुटियन दिल्ली के सर्वाधिक पॉश इलाके गोल्फ लिंक से ईरानी स्कूल गुजरे लगभग 60 सालों से चल रहा है। ईरानी स्कूल कुछ ही देशों में चलते हैं। ईरानी स्कूल को अंदर से जाकर देखेंगे तो आपको दीवारों पर फारसी में ही सूक्तियां लिखी मिलेंगे। इसमें राजधानी में रहने वाले ईरानी दूतावास के कर्मियों के बच्चे दाखिला ले सकते हैं। राजधानी दिल्ली में करीब 600 ईरानी परिवार रहते हैं। इनमें राजनयिक, गैर-राजनयिक, परिवार और विद्यार्थी वगैरह शामिल हैं। दिल्ली में एक ईरानी सांस्कृतिक केन्द्र भी है। यह तो बहुत साफ है कि ईरान ने भारत के साथ अपने रिश्तों को अबतक अहमियत दी है। तो अब ईरान बदला-बदला सा नजर क्यों आ रहा है? इसकी वजह ढूंढ़कर तुरंत कारगर समाधान निकालने की जरूरत है।

    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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