नई दिल्ली। मेडिकल साइंस (medical science) ने एक कीर्तिमान स्थापित किया है। अमेरिका में डॉक्टरों ने इंसान के शरीर (human body) में सूअर की किडनी (pig kidney) का सफल प्रत्यारोपण (successful transplant) किया है। ऐसा मेडिकल साइंस (medical science) के इतिहास में पहली बार हुआ है। इस सफल प्रत्यारोपण (successful transplant) के बाद देश और दुनिया में किडनी की बीमारी से ग्रसित लोगों में उम्मीद की एक किरण दिखी है। दरअसल, देश और दुनिया में लाखों लोग ऐसे हैं, जो किडनी प्रत्यारोण (kidney transplant) का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें उपयुक्त डोनर नहीं मिलते हैं। ऐसे लोगों को डॉक्टरों की इस उपलब्धि से अपनी जिंदगी बेहतर होने की उम्मीद है।
कैसे हुआ प्रत्यारोपण
वेबसाइट साइंस अलर्ट डॉट कॉम के मुताबिक यह प्रत्यारोपण एक मानसिक रूप से मृत यानी ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर में किया गया। दरअसल, ब्रेन डेड में इंसान का दिमाग काम करना बंद कर देता है लेकिन शरीर के अन्य अहम अंग जैसे लीवर, किडनी आदि सामान्य रूप से काम करते हैं। डॉक्टरों ने उक्त व्यक्ति के शरीर में सूअर की किडनी लगाने के बाद 54 घंटों उसका परीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि सूअर की किडनी पूरी तरह सामान्य किडनी की तरह काम कर रही है।
एक्सनोट्रांस्प्लांटेशन (xenotransplantation)
मेडिकल की भाषा में इस पूरी प्रक्रिया को एक्सनोट्रांस्प्लांटेशन (xenotransplantation) कहा जाता है। इसका मतलब यह कि किसी टिशू या अंग को एक जीव से दूसरे जीव में प्रत्यारोपित करना। इस प्रत्यारोपण की सफलता के बाद सूअर इंसान के लिए काफी अहम हो जाएंगे। एक अध्ययन के मुताबिक केवल अमेरिका में हर रोज किडनी ट्रांसप्लांट के इंतजार में 17 लोगों की जान चली जाती है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक जॉन हॉप्किन्स स्कूल ऑफ मेडिसीन में ट्रांसप्लांट सर्जरी के प्रोफेसर डॉरी सीगेव का कहना है कि यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
रिपोर्ट के मुताबिक वैसे अभी इसे मेडिकल साइंस का हिस्सा बनाने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। इसके लिए रेग्युलेटरी मंजूरी लेनी पड़ेगी. लेकिन इस तरह एक जानवर के अंग का इंसान के शरीर में इस्तेमाल से दुनिया में लाखों लोगों को राहत मिलेगी।
सूअर की ही किडनी क्यों
दरअलस, लंबे समय से यह माना जा रहा था कि इंसान की किडनी को प्रत्यारोपित करने के लिए सूअर की किडनी काफी उपयुक्त है. लेकिन सूअर के सेल्स जिसमें एक शूगर सेल था, जिसे अल्फा-गल कहा जाता है. उसको इंसान के शरीर द्वारा खारिज किए जाने का खतरा था. ऐसे में इस समस्या के समाधान के लिए सूअर को जेनेटिक रूप से बदला गया ताकि वह इस खास सेल को प्रोड्यूस न करे।
कैसे हुआ ट्रांसप्लांट
ऑपरेशन के दौरान सूअर की किडनी को इंसान के शरीर से अलग रखा गया. तभी यह देखा गया कि यह ठीक तरीके से काम कर रहा है. यह शरीर में रक्त से अपशिष्ट तत्वों को फिल्टर कर पेशाब बना रहा था. न्यूयॉर्क के एनवाईयू लैंगोन हेल्थ में इस ट्रांसप्लांट को अंजाम देने वाले सर्जन रॉबर्ट मोंट्गोमेरी का कहना है कि यह उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन था।
किडनी के मरीजों पर कब होगा परीक्षण
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस परीक्षण के बाद किडनी की बीमारी से ग्रसित लोगों पर इसका परीक्षण अगले दो साल के भीतर हो सकता है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस बीमारी से ग्रसित लोगों के परिवार वाले ऐसे परीक्षण की इजाजत देंगे।
सूअर तो फिर बंदर के अंग क्यों नहीं
जानकार यह भी पूछ रहे हैं कि सूअर के अंग ही क्यों? क्या हम बंदरों के अंग का परीक्षण नहीं कर सकते हैं. इस बारे में डॉक्टरों का कहना है कि सूअर की किडनी काफी हद तक इंसानों जैसी होती है. उसके कई गुण इंसानों से मिलते हैं।
इलाज में पहले से हो रहा जानवरों के अंग का इस्तेमाल
रिपोर्ट के मुताबिक इंसान के जलने के इलाज में पहले से ही सूअर की चमड़ी का उपयोग हो रहा है. सूअर के हार्ट वाल्व का भी इंसान के दिल की बीमारी के इलाज में किया जाता है। इसके साथ ही सूअर के दिल को लंगूर में लगाया जा चुका है. लंगूर को इंसान का पूर्वज माना जाता है। ऐसे में आने वाले समय में सूअर के अन्य अंगों के इंसान के शरीर में इस्तेमाल की रिपोर्ट आती है तो उसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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