भारतीय संस्कृति (The Indian heritage) में पानी को बेहद महत्व प्रदान किया गया है। गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु ये सब भारत की नदियाँ तभी तक पवित्र और जीवनदायिनी (life giver) हैं, जब तक इनमें पानी मौजूद है। पानी न केवल एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन (natural resources) है, बल्कि यह हम मनुष्यों, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के जीवन का आधार भी है। धरती पर पहले जीव की उत्पत्ति करोड़ों साल पहले पानी में ही हुई थी, लेकिन आज दुनिया में पानी (Water) बहुत है लेकिन फिर संसार जल संकट (Water Crisis) का सामना कर रहा है! बहुत ही कम लोगों को यह समझ पाते हैं कि दुनिया में मौजूद कुछ ही तरह का पानी इंसानी उपयोग और पीने योग्य है। इस तरह के पानी की ना केवल मात्रा काफी कम है बल्कि हर जगह यह उपलब्ध भी नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र के संधारणीय विकास के लक्ष्यों में एक है कि साल 2030 तक सभी को पानी और स्वच्छता उपलब्ध हो सके. साफ और सुरक्षित पानी में भूमिगत जल के महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने इस बार विश्व जल दिवस (World Water Day 2022) पर इसे अपनी थीम में शामिल किया है।
आपको बता दें कि 21वीं सदी में प्रवेश करते ही विश्व के कई देशों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। बहुत से शहर जो नदियों के किनारे बसे हैं, वे पानी के बँटवारे को लेकर झगड़ा खड़ा कर रहे हैं। यूरोप की सबसे बड़ी नदी डेन्यूब के पानी को लेकर मध्य यूरोपीय देशों में वाद-विवाद है।
अमेरिका में भी ‘कोलोरोडो’ तथा अन्य नदियों का विवाद उभर कर आया। संयुक्त राष्ट्र के चीफ इंजीनियर ‘पियरे नजलिस’ के अनुसार पानी से संबंधित विवाद अब केवल राष्ट्रों के बीच ही नहीं, बल्कि एक ही देश के प्रांतों के बीच भी उभरने लगे हैं। अपने देश में कृष्णा, कावेरी और गंगा नदी के पानी के बँटवारे को लेकर तीन प्रमुख राज्यों में सदैव विवाद बना रहता है।
दुनिया में पानी हर जगह है पृथ्वी की सतह का दो तिहाई हिस्सा पान से ढका है, लेकिन दुनिया का एक प्रतिशत से भी कम पानी स्वच्छ और सुरक्षित जल की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसी लिए दुनिया जल सकंट का सामना करती है। दुनिया में बहुत से लोगों तक साफ पानी तक पहुंच नहीं है। इसी लिए 2.2 अरब से ज्यादा लोग पीने के लिए और अच्छे रहनसहन के लिए साफ पानी से वंचित हैं।
लगभग सभी स्वच्छ पानी भूमिगत जल के होने से आज के समय इसक महत्व लोगों तक पहुंचाने के लिए इस साल संयुक्त राष्ट्र ने 22 मार्च 2022 के लिए विश्व जल दिवस पर ‘ग्राउंड वाटर- मेक द इनविजिबल विजिबल’ यानि ‘भूमिगत जल- ना दिखने वाले को दिखाई देने वाला बनाएं” नामक थीम का चयन किया है।
पानी की स्वच्छता ही उसे इंसान और अन्य कई जीवों के लिए उपयोगी बनाती है. भूमिगत जल भूगर्भीय संरचनओं जैसे चट्टान, रेत आदि में पाया जाता है जो सतही प्रक्रियाओं से अछूता रहता है जिसकी वजह से यह सबसे शुद्ध जल स्रोतों में से एक माना जाता है, यहां तक बारिश का पानी की शुद्धता भी वायुमंडल के उस हिस्से की हवा की शुद्धता पर निर्भर करती है जहां बारिश हो रही होती है. इसी लिए कहा जाता है कि पहली बारिश का पानी तो साफ हो ही नहीं सकता है. लेकिन भूमिगत जल के साथ ऐसा बंधन नहीं है।
भूमिगत जल कई झरनों, नदियों, झीलों, आर्द्रभूमि, यहां तक कि महासागरों तक के लिए पानी का स्रोत होता है. भूमिगत जल का भंडारण बारिश और बर्फबारी के बाद जमीन में पानी रिसने से होता है. इंसान इस पानी को पम्प और कुओं के जरिए निकालता है. इस तरह के स्रोतों का अधिक उपयोग इनके अस्तित्व के ही लिए खतरा बन जाता है। ऐसा तब होता है जब बारिश और बर्फबारी से जमीन रीचार्ज होने की गति से ज्यादा तेजी से पानी निकाल लिया जाए।
भूमिगत जल को प्रदूषण से भी काफी खतरा है। जिसे पानी की कमी के साथ ही उसके शुद्धिकरण लागत बढ़ जाती है. यहां तक कि कई बार दो इस प्रदूषित पानी का उपयोग ही संभव नहीं होता है। इस समय दुनिया में जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के रहते है जीवन को बचाने के लिए भमिगत जल का संरक्षित करना प्रमुख लक्ष्य लक्ष्यों में शामिल करना होगा।
जलवायु परिवर्तन से बिगड़ते हालात के चलते भूमिगत जल का उपयोग और भी ज्यादा संवेदनशील होने लगा है। पानी का उपयोग मानवीय गतिविधियों के लिए बढ़ने लगा है। कृषि से लेकर उद्योगों में पानी की जरूरत बढ़ती जा रही है और इसकी वजह से भूमिगत पानी का भी उपयोग बेतरतीब तरीके से बढ़ता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने इसी लिए इस साल भूमिगत पानी के प्रंबंधन पर जोर देने का विचार किया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सभी देशों को अपने जल वितरण प्रणाली का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है, जिससे पानी की बर्बादी और बढ़ते प्रदूषण को रोका जा सके।