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    सांप के काटने पर गंगा में क्यों बहा दिया जाता है शव, जानिए बिहुला-विषहरी की कहानी

  • August 09, 2024

    नई दिल्‍ली (New Delhi)। गंगा के किनारे बसे इलाकों में एक परंपरा प्रचलित है. इसके अनुसार सांप (Snake) काटने से होने वाली मृत्यु पर शव गंगा नदी (The River Ganges) में बहा दिया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य कुछ महीने या साल बाद जीवित होकर वापस आ जाता है. हालांकि, ऐसी किसी घटना का प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन इस मान्यता के बीज छुपे हैं माता मनसा विषहरी से जुड़ी एक लोककथा में.

    सावन और भादो के महीने में पुराने जमाने के अंग जनपद (बिहार के भागलपुर, बांका, मुंगेर, बेगूसराय, खगड़िया और लखीसराय) में धूमधाम से माता मनसा विषहरी की पूजा होती है. इस दौरान करीब एक सप्ताह तक जगह-जगह विषहरी माता के मंदिरों के पास मेले लगते हैं. भागलपुर के विषहरी मंदिर केंद्रीय पूजा समिति के प्रवक्ता हेमंत कश्यप के अनुसार इस बार विषहरी पूजा 17 और 18 अगस्त को है. मेले में माता मनसा विषहरी और सती बिहुला से जुड़ी लोककथा झांकियों के माध्यम से दर्शायी जाती है.



    भागलपुर है बिहुला-विषहरी की कहानी का केंद्र
    बिहुला-विषहरी की कहानी का केंद्र उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे बसा बिहार का एक शहर भागलपुर है. इसे पुराने समय में चंपानगरी कहा जाता था. पुराने अंग प्रदेश (अंग जनपद) का केंद्र भी यही भागलपुर था. बिहुला-विषहरी की कथा में माता मनसा विषहरी को भगवान शिव की पुत्री बताया गया है. कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पुत्री को पृथ्वी पर खुद को स्थापित करने के लिए अपने के एक अनन्य भक्त की परीक्षा लेने को कहा था. वह भक्त चंपानगरी (वर्तमान में भागलपुर) का एक नामी व्यापारी था. उसका नाम चंद्रधर था. लोग उसे चंदो सौदागर या चंद्रधर सौदागर के नाम से भी पुकारते थे. वह भगवान शिव को अराध्य मानता था और उन्हीं की पूजा करता था.

    चंदो सौदागार का व्यापार सिंहल द्वीप (लंका) और उससे भी आगे तक फैला हुआ था. वह रेशम का बड़ा व्यापारी था. भागलपुर के नामी रेशम को वह अपने जहाज पर लादकर गंगा नदी से होते हुए समुद्री मार्ग पकड़कर दूसरे देशों तक ले जाता था और वहां उसका व्यापार करता था. इस तरह भागलपुरी सिल्क आज नहीं बल्कि हजारों साल पहले भी काफी ज्यादा ख्यातिप्राप्त था और विदेशों तक इसकी मांग थी.

    एक बार ऐसे ही व्यापारिक अभियान पर निकलने से पहले चंदो सौदागर भगवान शिव की पूजा की तैयारी कर रहे थे. उसी दौरान एक रात उन्हें सपना आया. स्वपन में उन्होंने देखा कि वे स्नान करने के लिए गंगा नदी में उतरे हुए हैं. तभी उन्हें एक नारी छाया दिखाई दी. उस छाया से आवाज आई कि चंद्रधर तुम मेरी पूजा करो. मैं भगवान शिव की बेटी हूं. इसलिए एक बार तुम मेरी भी पूजा करो.

    भगवान शिव की जटा से उत्पन्न हुई हैं माता मनसा विषहरी
    उस छाया ने अपना परिचय दिया कि वे स्नान करते हुए महादेव की टूटी जटा से उत्पन्न हुई भगवान शिव की बेटियां हैं. जया विषहरी, दोतिला भवानी , पद्मा कुमारी, आदिकसुमिन और मैना विषहरी. भगवान ने कहा है कि चंपानगरी का चंदो सौदागर अगर तुम्हें पूजा दे देगा, तो तुम पूरे पृथ्वी लोक में पूज्य हो जाओगी. इस पर चंदो ने बस यही कहा कि वह महादेव को छोड़कर अन्य किसी की पूजा नहीं कर सकता. क्योंकि उसने भगवान शिव को अपना ईष्ट माना है.

    माता विषहरी की लोककथा के अनुसार जब चंद्रधर ने उनकी पूजा करने से मना कर दिया, तो माता ने अंजाम बुरा होने की बात कही. इसके बाद चंद्रधर सौदागर अपने व्यापारिक अभियान पर निकल गए. उसके साथ उसके छह बेटे भी थे. चंद्रधर जब दूसरे देश व्यापार करने के लिए जाते थे, तो अपने साथ दर्जनों जहाज पर माल भरकर ले जाते थे. इसमें मुख्य रूप से रेशम रहता था. साथ ही सैकड़ों नाविक और मजदूर भी होते थे.

    माता विषहरी ने डूबो दिये थे चंद्रधर सौदागर के सभी जहाज
    कहा जाता है कि जब चंदो सौदागर अपने सभी नाव और बेटों के साथ गंगा नदी में आगे बढ़ते हुए त्रिवेणी पहुंचे. तभी माता विषहरी फिर से उनसे पूजा मांगने लगीं. इस बार भी चंदो सौदागर ने उनकी पूजा करने से इनकार कर दिया. इसके बाद विषहरी ने एक के बाद एक सभी जहाजों को समुद्र में डूबो दिया. चंदो के छह बेटे भी सभी नाविकों और रेशम के साथ समुद्र में समा गए. सिर्फ चंदो बच गए. इसके बाद चंद्रधर ने किसी भी हाल में विषहरी की अब पूजा नहीं करने की ठान ली थी.

    फिर बाला लखिंदर का हुआ जन्म
    चंदो सौदागर के छह बेटों की मौत के बाद उन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन वह भगवान शिव की भक्ति से नहीं डिगे. उन्हें महादेव की पूजा किसी हाल में नहीं छोड़ी. कई साल बीत गए, लेकिन चंदो सौदागर इस दुख से उबर नहीं पाए थे. उनका सबकुछ खत्म हो गया था. कुछ सालों बाद उनके घर उम्मीद का एक दीया जला और चंद्रधर की पत्नी ने एक बेटे जन्म दिया.

    उसका नाम बाला लखिंदर रखा गया. देखते-देखते समय बीतता गया और बाला 15 साल का हो गया. अब चंदो सौदागर भी पहले की तरह अपने व्यापार पर ध्यान देने लगे और पहले से भी ज्यादा शिवभक्ति में डूब गए. इसी बीच एक दिन कोई सिद्ध पुरुष चंद्रधर सौदागर के घर पधारे और उन्होंने कहा कि बाला के शादी वाले दिन ही इस पर विपत्ति आएगी. अगर उस दिन वह विपत्ति से बच गया, तो फिर उसे कभी कुछ नहीं होगा.

    16 साल में बाला की बिहुला से हुई शादी
    बाला लखिंदर जब 16 साल का हुआ तो उसकी शादी बिहुला नाम की एक कन्या के साथ तय कर दिया गया. इधर, शादी की तैयारी शुरू हो गई और चंद्रधर की चिंता बढ़ गई. शादी वाली रात बाला को सुरक्षित रखने के लिए उसने उपाय शुरू कर दिये. कहा जाता है कि चंद्रधर सौदागर ने विश्वकर्मा शिल्पी से बेटे की शादी की पहली रात के लिए लोहा का घर बनवाया, जो पूरी तरह सुरक्षित था. वहीं माता विषहरी ने विश्वकर्मा को डराकर उस घर के अंदर प्रवेश करने के लिए एक सूत भर जगह छोड़ देने को कह दिया था.

    शादी की रात नाग बाला की हो गई थी मृत्यु
    कथा के अनुसार जब बाला लखिंदर और बिहुला शादी के बाद रात में लोहा का घर पहुंचे, तो उस एक सूत भर के जगह से नाग मनियार भी अंदर चला गया. उसे माता विषहरी ने भेजा था. इसके बाद रात के समय ही नाग मनियार ने बाला को डस लिया और उसकी मृत्यु हो गई.

    पति को जीवित करने का बिहुला ने लिया था संकल्प
    इसके बाद बाला की विधवा बिहुला ने अपने पति को जीवित करने की ठानी. उसे खुद के सतीत्व और लगन पर पूरा विश्वास था. उसका यह मानना था कि जब उसने कोई गलती नहीं कि तो दूसरों (चंद्रधर सौदागर) की गलती का दंड उसे क्यों मिला. बस इसी बात को लेकर वह अपने पति के शव के साथ एक मंजूषा (नावनुमा एक बक्सा जो नदी में तैरता हो) पर बैठकर बहती चली गईं.

    महीनों तक गंगा नदी में मंजूषा के सहारे प्रवाहित होते हुए वह अंतिम छोर तक पहुंच गई. कहानी के अनुसार गंगा नदी के अंतिम छोर पर उसने मंजूषा को छोड़ दिया और अपने पति के शव के अवशेष को साथ लेकर एक योगिनी के साथ जंगल के अंदर चली गई. लोककथा के अनुसार योगिनी बिहुला को कामख्या मंदिर ले गई. वहां से उसने सशरीर देवलोग के लिए प्रस्थान किया और फिर माता विषहरी से मिली. बिहुला विषहरी पर लिखी किताब ‘मनसा महात्म्य’ में भी यह जिक्र किया गया.

    माता विषहरी के वरदान से बाला को किया जीवित
    माता मनसा विषहरी से भी उसने फिर वही सवाल किया कि आखिर क्यों उसे ऐसा दंड मिला. बिहुला की निष्ठा और लगन देखकर मनसा देवी ने उसे तीन वरदान दिया. कहा जाता है कि बिहुला ने वरदान के माध्यम से माता मनसा विषहरी से अपने पति और उनके छह भाइयों की जिंदगी मांगी. ये सभी चंद्रधर सौदागर के बेटे थे. साथ ही चंद्रधर सौदागर के सारे धन और डूबे हुए जहाज भी वापस करने को कहा. इसके बाद गंगा नदी के रास्ते बिहुला अपने जीवित पति और उनके भाईयों को लेकर वापस चंपानगर लौटीं.

    चंद्रधर सौदागार ने की माता विषहरी की पूजा
    इसके बाद बिहुला ने अपने ससुर यानी चंद्रधर सौदागर को माता विषहरी की पूजा करने के लिए भी राजी कर लिया. इस तरह से चंद्रधर ने माता विषहरी की पूजा की. लोककथा के अनुसार पृथ्वीलोक पर पहली बार माता मनसा विषहरी की पूजा हुई, जो चंद्रधर सौदागर ने की. वहीं सांप के काटने के बाद मौत होने पर बिहुला अपने पति का शव गंगा नदी में मंजूषा पर लेकर गई थी और छह महीने बाद बाला वापस जिंदा लौट आया. कहा जाता है तभी से यह मान्यता प्रचलन में आ गई कि सांप के डसने के बाद शव को जलाना नहीं चाहिए बल्कि उसे गंगा नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए. ताकि माता गंगा और मनसा विषहरी की कृपा से व्यक्ति का विष खत्म हो जाता है और वह जिंदा लौट कर चला आता है.

    बिहुला विषहरी की कहानी
    लेखिका मीरा झा ने अपनी किताब ‘बिहुला-विषहरी’ में लिखा है कि, जिस लोककथा पर आधारित विषहरी पूजा पूरे अंग प्रदेश में मनाई जाती है, उसका उल्लेख असमी लेखक धरणीकांत देव शर्मा की ‘कामरूप कामख्या’ पुस्तक में भी मिलता है. प्राचीन कवि दुर्गावर और मनकर की हस्तलिखित पद्मपुराण के अनुसार बेहुला-लखिंदर गाथा प्राचीन सुर में गायी जाती है. कामख्या के पंचरत्न मंदिर में मरेईपूजा अर्थात नागमाता मनसा का घट और नागफन स्थापित कर भद्रपद मास में प्रतिपदा या द्वितीय को यह पूजा अत्यंत धूमधाम से मनाई जाती है. वहीं बंगाल में भी नागमाता मनसा की पूजा का विधान है. कामख्या के पंचरत्न मंदिर में होने वाली मरेई पूजा ही अंग जनपद की मेढ़पूजा है. इसका अर्थ है कि माता मनसा विषहरी और बिहुला की कहानी सैकड़ों साल पुरानी है और गंगा नदी की लोकसंस्कृति का अहम हिस्सा है.

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