नई दिल्ली: भारत (India) में कैलेंडर के हिसाब से अगर कोई नेता साथी बदलता है तो वह शायद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ही हैं. 2015 में लालू के साथ थे, 2017 में फिर मोदी (Modi) के साथ आ गए, 2019 का लोकसभा (Lok Sabha) और 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar assembly elections) मोदी के साथ ही लड़ा, फिर 2022 में लालू के साथ वापस चले गए. वह 2023 तक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के करीब दिख रहे थे, लेकिन 2024 में ऐसा लग रहा है कि फिर मोदी के साथ चले जाएंगे. नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष में मिलकर एक ही एक्सपेरिमेंट किया वो है महागठबंधन बनाने का, जिसका नाम ‘INDIA’ है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जिस नेता ने इंडिया गठबंधन को जन्म दिया, वो ही उसे छोड़कर बीजेपी की तरफ क्यों भाग रहा है और नीतीश के बीजेपी के साथ जाने से इंडिया गठबंधन को क्या नुकसान उठाना पड़ेगा?
नीतीश कुमार ने ही इंडिया गठबंधन को बनाने की शुरुआत की थी और 24 जून को इसकी पहली बैठक पटना में हुई थी. हालांकि तब यह माना जाने लग गया था कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के एक बड़े चेहरे के रूप में आएंगे, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने नीतीश कुमार को इग्नोर किया, उसके बाद से लगातार नीतीश नाराज नजर आ रहे थे. उन्होंने कई बार यह नाराजगी खुलेआम मंच से जाहिर भी की थी. जब चार राज्यों के चुनाव हो रहे थे तो नीतीश ने उस दौरान साफ कह दिया था कि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है, वह चुनाव में व्यस्त है. उसके बाद जब न्याय यात्रा को लेकर राहुल गांधी निकले तो उस समय भी गठबंधन के तमाम दलों के साथ कोई भी बात नहीं हुई. अब उन वजहों को भी जान लेते हैं जिसको देखते हुए नीतीश कुमार पाला बदल सकते हैं.
सूत्रों ने बताया कि इंडिया गठबंधन को लेकर लालू यादव और नीतीश यादव के बीच एक डील भी हुई थी, जिसमें तय हुआ था कि लालू यादव कांग्रेस को मैनेज करेंगे और नीतीश कुमार को बड़े चेहरे के रूप में केंद्रीय राजनीति में स्थापित करेंगे. उसके पीछे वह तमाम दल भी थे, जिनको नीतीश कुमार एक साथ मंच पर लाए थे, लेकिन लालू यादव पहले नीतीश कुमार पर यह दबाव बनाते रहे कि तेजस्वी को चीफ मिनिस्टर बना दें और उसके बाद वह इंडिया गठबंधन में उनके लिए बात करेंगे. हालांकि बेंगलुरु में इंडिया गठबंधन की मीटिंग के दौरान नीतीश कुमार यह समझ गए थे कि उनके साथ खेल हो गया है और इसलिए वह बैठक से निकल गए थे.
नीतीश कुमार पर राजद की तरफ से मुख्यमंत्री का पद छोड़ने का दबाव लगातार बढ़ रहा था. नीतीश इंडिया गठबंधन के पीएम पद के कैंडिडेट होते तो शायद ऐसा कर भी देते, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. इसलिए वह किसी भी हाल में सीएम पद नहीं छोड़ना चाहते. बताया जा रहा है कि इसलिए अब नीतीश कुमार भाजपा के साथ फिर से जा रहे हैं ताकि उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी सही सलामत रहे. वहीं एक खबर यह भी है कि जब नीतीश कुमार लालू की बात नहीं मान रहे थे तो आरजेडी की तरफ से जेडीयू को तोड़ने की कोशिश की गई. इस बात की भनक नीतीश को लग गई थी और उन्होंने इसीलिए ललन सिंह को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाया और इसकी कमान अपने हाथ में ले ली.
बिहार में नीतीश का साथ छूटने का सबसे ज्यादा नुकसान उस इंडिया गठबंधन को होने जा रहा है, जिसके प्रणेता नीतीश कुमार खुद माने जाते हैं. नीतीश कुमार को न तो इस गठबंधन का संयोजक बनाया गया और न ही उन्हें कोई दूसरी जिम्मेदारी दी गई. वहीं बिहार में इंडिया गठबंधन के साथ सीट शेयरिंग भी नहीं हो पाई. राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ निकल रहे हैं और 30 जनवरी को यानी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर बिहार के पूर्णिया में उनकी रैली होने वाली है. इस रैली में नीतीश कुमार भी शामिल होने वाले थे, लेकिन अब वो नहीं जा रहे.
नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर की जयंती वाली रैली में एक बहुत बड़ा राजनीतिक बम फोड़ दिया. बात कर्पूरी ठाकुर की हो रही थी जो कि परिवारवाद तक पहुंच गई. बिहार की पॉलिटिक्स में उनके बयान का मतलब ऐसा निकाला गया कि नीतीश के निशाने पर लालू यादव थे, इसलिए उन्होंने परिवारवाद का नाम लिया. इसके बाद अगले ही दिन 24 जनवरी को बिहार में नीतीश के बयान पर बवाल हो गया.
लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने तीन ट्वीट कर दिए. हालांकि उसमें उन्होंने भी नीतीश का नाम तो नहीं लिया, लेकिन ट्वीट की भाषा और उसमें इस्तेमाल किए गए शब्दों को देखकर इशारा साफ था कि यह नीतीश कुमार के लिए ही कहा गया है. हालांकि बाद में ट्वीट डिलीट भी हो गए, लेकिन तब तक इतना ज्यादा डैमेज हो चुका था कि कंट्रोल करना मुश्किल था. इसके बाद जब बिहार सरकार की कैबिनेट बैठक हुई तो उसमें नीतीश और तेजस्वी की दूरी साफ-साफ देखी गई. कैबिनेट की बैठक सिर्फ 15 मिनट में ही खत्म कर दी गई. तेजस्वी यादव इंतजार करते रहे और नीतीश कुमार बिना कुछ बोले मीटिंग से चले गए. अक्सर कैबिनेट बैठक की मीडिया को ब्रीफिंग होती है, वह भी नहीं हुई.
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