भोपाल: कांग्रेस के नेता रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में क्यों नहीं जा रहे हैं इस सवाल का जवाब पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह ने दिया है. उनका कहना है कि कांग्रेस पार्टी के लिए भगवान राम एक आस्था के रूप में हैं और ईश्वर के अवतार हैं इसलिए उनके मंदिर में जाने के लिए कोई एतराज नहीं है. उनके खुद के निवास में राम मंदिर है. भगवान राम किसी विशेष वर्ग के नहीं हो गए हैं. वह सभी के हैं.
दिग्विजय सिंह ने कहा कि 22 जनवरी को राम मंदिर के होने वाले आयोजन को एक राजनीतिक स्वरूप दे दिया गया है. जोशीमठ के शंकराचार्य जी कर रहे हैं कि प्राण प्रतिष्ठा की एक वैदिक परंपरा है. मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद ही प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए. प्रश्न उठता है कि इतनी जल्दी क्या थी? भगवान राम का जन्मदिन अप्रैल के आस-पास आता है. तभी कर लेते. ये आनन-फानन में करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? उसका सिर्फ एक ही उत्तर है कि ये पूरा आयोजन धार्मिक कम है राजनीतिक ज्यादा है. इसलिए लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक मुद्दा बनाने का उनका प्रयास है.
दिग्विजय सिंह ने कहा कि शंकराचार्य मुक्तेश्वरानंद महाराज ने एक मौलिक प्रश्न पूछा है और उसके उत्तर में चंपत राय ने बता दिया के रामानंदी संप्रदाय का है. अगर उनका है तो चंपत राय क्या कर रहे हैं. अयोध्या में लंबे समय से निर्मोही अखाड़ा पूजा का काम देखता था. उन्हीं के जरिए से सब किया जाता था. उनको अलग कर दिया गया और उनके स्थान पर विश्व हिंदू परिषद ने अपने पुजारी बैठा दिए. ये सब बातें इतनी विवादित हो गईं कि जिसकी वजह से कांग्रेस को आपत्ति है क्योंकि भाजपाईकरण हो गया.
उन्होंने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों ने शामिल होने से मना कर दिया. सभी ने अपना-अपना निर्णय लिया है. शिवसेना बाबरी मस्जिद गिराने में सबसे आगे रही है. उद्धव ठाकरे ने जाने से मना कर दिया है. हमें अयोध्या जाने से कोई परहेज नहीं है. मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद दर्शन करने जाएंगे. हमने मंदिर बनाने के लिए चंदा भी दिया है. तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक लाख चंदा दिया था और मैंने एक लाख 11 हजार रुपए दिए थे, लेकिन हमें आपत्ति इस बात से है कि चंदा देने के बाद उस रुपए का दुरुपयोग हुआ है. जमीन खरीद में घोटाला हुआ है. चंपत राय ने घोटाला कर दिया, जिसका वीएचपी ने क्यों उत्तर नहीं दिया है.
दिग्विजय सिंह ने कहा कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद अविवादित भूमि का अधिग्रहण नरसिम्हा राव सरकार ने किया, जिसके बाद रामालय ट्रस्ट का गठन किया गया. नरसिम्हा राव चाहते थे कि इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए और इसलिए उन्होंने चारों शंकराचार्य जी को रामालय न्यास में सदस्य बनाया गया. मुझे भी उसमें शामिल किया गया था. रामालय न्यास आज भी जीवित है. उसी के द्वारा मंदिर का निर्माण कराया जाना चाहिए था, जिसकी हमने मांग भी की थी. अलग से ट्रस्ट बनाकर उसमें बीजेपी के नेता, विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को रखा गया.
मंदिर बनाने के लिए वीएचपी की ओर से चंदा एकत्रित करने के सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा कि हमने ट्रस्ट को चंदा दिया है न कि वीएचपी को दिया. ये वीएचपी का ट्रस्ट नहीं है. वह आंदोलन के समय कहां थी? राम मंदिर विवाद 1980 से चला रहा है. 1985 में बीजेपी ने चुनाव हारने के बाद वीएचपी आई है. राम मंदिर आंदोलन में उसका कोई रोल नहीं है. कोर्ट में केस स्वरूपानंद सरस्वती जी लड़े, वीएचपी ने नहीं लड़ा है. वीएचपी ने चंदा उगाकर उसमें भ्रष्टाचार करने के अलावा किया ही क्या है. ये आंदोलन राम जी के भक्तों का था.
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