नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने नागरिक संशोधन कानून लागू कर दिया है. हालांकि, यह कानून पूर्वोत्तर राज्य के अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों में नहीं लागू किया जाएगा, लेकिन सोमवार को नोटिफिकेशन जारी होने के साथ नॉर्थ ईस्ट में इसका विरोध शुरू हो गया है. असम में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और 30 स्वदेशी संगठनों ने सोमवार को CAA की प्रतियां जलाईं. वहीं, यूनाइटेड अपोजिशन फोरम ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने की घोषणा की.
संगठन का कहना है कि हम इस कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण, अहिंसक और लोकतांत्रिक आंदोलन जारी रखेंगे. AASU के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, सीएए के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी. असम और पूर्वोत्तर के मूल निवासी इसे कभी नहीं स्वीकार करेंगे. सीएए के नोटिफिकेशन से पहले भी यहां इस कानून को लेकर विरोध जताया जा चुका है. जानिए नागरिक संशोधन कानून को लेकर सबसे ज्यादा विरोध पूर्वोत्तर के राज्यों में क्यों होता है.
क्या हैं विरोध की 5 बड़ी वजह
- बाहरी का दखल मंजूर नहीं: नॉर्थ ईस्ट के 7 राज्यों को सेवन सिस्टर्स भी कहते हैं. ये सभी राज्य किसी न किसी मायने में अपनी अलग पहचान रखते है. यहां के मूल निवासी 238 सजातीय समूहों से हैं. इनकी परंपराएं, पहचान, संस्कृति और रहन-सहन तक अलग-अलग है. CAA कानून के तहत 2014 से पहले भारत में शरण ले चुके बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफनिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी. यहां के लोग नहीं चाहते कि किसी ऐसी बाहरी शख्स को नागरिकता मिले जो उनके समुदाय के कल्चर को न समझता हो.
- अवैध कब्जे का दावा: नागरिकता संशोधन कानून का सबसे ज्यादा विरोध पूर्वोत्तर के राज्यों में होने की एक वजह यह भी है कि ये राज्य बांग्लादेश से करीब हैं. कथिततौर पर यहां बांग्लादेश के हिन्दू और मुस्लिम बड़ी संख्या में अवैध तरीके से बसते जा रहे हैं. पूर्वोत्तर के लोगों का मानना है कि इस कानून की मदद से इन्हें आसानी से नागरिकता मिल जाएगी. उनका मानना है इस तरह उनका अवैध कब्जा बढ़ेगा.
- संस्कृति-भाषा के लिए खतरा: पूर्वोत्तर के लोगों का कहना है कि उनके राज्यों में बड़ी संख्या में विदेशी अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रह रहे हैं. सीएए के जरिए नागरिकता मिलने के बाद वो स्थायी नागरिक बन जाएंगे, इससे हमारी अस्मिता, संस्कृति और भाषा खत्म हो जाएगी. यह सीएए का विरोध नहीं, अस्तित्व की लड़ाई है.
- मतदाताओं की संख्या बढ़ने का कनेक्शन भी: पूर्वोत्तर के लोगों का दावा है कि सरकार हिन्दू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए ऐसा कर रही है. वो प्रवासी हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देकर उन्हें यहां बसाना चाहती है. यही वजह है कि पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में युवा संगठन असम जतियाबाड़ी युवा छात्र परिषद, कृषक मुक्ति संग्राम समिति और वामपंथी राजनीतिक गठबंधन समूह वाम-डेमोक्रेटिक मंच इस कानून का विरोध कर रहे हैं.
- गैर-आदिवासियों को जमीन खरीदने की छूट की आशंका: अब त्रिपुरा और मेघालय का कनेक्शन भी समझ लेते हैं. त्रिपुरा में बोरोक समुदाय खुद को वहां का मूल निवासी बताते हैं, लेकिन यहां पर बंगालियों की संख्या अधिक है. जो धीरे-धीरे यहां बसते चले गए. राज्य की नौकरशाही में इनका कब्जा बढ़ा. नतीजा यहां के आदिवासी समुदाय के लोग हाशिए पर चले गए. शिलॉन्ग में भी बंगाली बोलने वाले हिन्दुओं की संख्या अधिक है. यहां पर जैन्तिया और गारो समुदाय खुद को मूल निवासी बताते हैं. इनका मानना है कि गैर-आदिवासियों को जमीन खरीदने की छूट मिल सकती है. इससे इनका हस्तक्षेप बढ़ेगा.