– आर.के. सिन्हा
बीते कुछ दिनों में दो खबरें आईं, जिससे भारत के फार्मा सेक्टर की छवि पर गहरा असर पड़ा है। पहले तो अफ्रीकी देश गाम्बिया में एक भारतीय फार्मा कंपनी का सिरप पीने के कारण 60 से अधिक शिशुओं का निधन हो गया। कहना न होगा कि उस घटना से देश के फार्मा सेक्टर की भारी बदनामी हुई है। हालांकि, सिरप बनाने वाली कंपनी का दावा है कि उसकी सिरप में कोई गड़बड़ नहीं थी। अब उज्बेकिस्तान ने भी आरोप लगाया कि भारत में बना कफ सिरप देने की वजह से उनके देश में भी 18 बच्चों की जान चली गई। इस मामले में हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने जांच में सहयोग करने की बात कही।
वहीं, भारत सरकार ने भी उज्बेकिस्तान सरकार के आरोपों की जांच का फैसला किया है। उज्बेकिस्तान ने कहा नोएडा की एक फार्मा कंपनी में बना कफ सिरप पीने से उनके यहां बच्चों की जान चली गई है। उज्बेकिस्तान का दावा है कि कफ सिरप में एथिलीन ग्लाइकॉल है, जो कि विषैला पदार्थ होता है। इसके इस्तेमाल से उल्टी, बेहोशी, ऐंठन, किडनी फेलियर और दिल से जुड़ी समस्या हो सकती है। जब बच्चों को यह सिरप पिलाई गई तो एक दर्जन से ज्यादा बच्चों की जान चली गई।
बेशक, दोनों मामले बहुत गंभीर और दुखद हैं। इनकी तह तक जाँच भी होनी चाहिए और दोषियों को सख्त सजा भी मिलनी चाहिये। कहना न होगा कि भारत के संबंधित विभागों को सारे मामले की निष्पक्ष जांच करनी होगी। जांच के बाद अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उस पर कठोर एक्शन भी लेना होगा। इन घटनाओं पर लीपापोती नहीं की जा सकती। ये अक्षम्य अपराध है।
भारत का फार्मा क्षेत्र का निर्यात 1.83 लाख करोड़ रुपये से अधिक का माना जाता है। पर यह याद रखना होगा कि हमारे फार्मा सेक्टर की ग्रोथ पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, अगर हमने आगे चलकर अपने उत्पाद विश्वस्तरीय न बनाये। वैसे भी हमारी फार्मा कंपनियों पर आरोप लगता ही है कि वे अनुसंधान पर बहुत कम धन खर्च करती हैं। हां, इस बाबत कुछ ही कंपनियां अपवाद हैं। किसी भी ईमानदार जांच से पता चल जाएगा कि हमारी अधिकतर फार्मा कंपनियां नई दवाओं को ईजाद करने में बहुत कम निवेश करती हैं। याद रखिए कि बड़ी कंपनी वही होती है जो नई-नई दवाओं को ईजाद करती हैं। किसी कंपनी की पहचान इसलिए नहीं होती कि उसका मुनाफा या निर्यात कितना है और कितना बढ़ रहा है। बड़ी कंपनी वही मानी जाती है जो अनुसंधान कर नई-नई असरदार दवायें मार्केट में लाये।
बहरहाल, बच्चों की मौतों के बाद उज्बेकिस्तान और भारत में जांच शुरू हो चुकी है। उत्तर प्रदेश ड्रग कंट्रोलिंग एंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने एक जॉइंट इन्क्वायरी शुरू कर दी है। देखिए, भारत का मित्र है उज़्बेकिस्तान। सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत- उज़्बेकिस्तान के सम्बन्ध लगातार करीब आते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 1993 में उज़्बेकिस्तान की यात्रा की थी। उस दौरान, दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग पर हस्ताक्षर हुए साथ ही ताशकंद के विश्व आर्थिक और कूटनीति विश्वविद्यालय में इंडियन चेयर की घोषणा और ताशकंद में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की गयी। इसी प्रकार भारत और उज़्बेकिस्तान के रिश्तों को मजबूती प्रदान करने के लिए 2006 में 8 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये।
उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति करीमोव द्वारा 1994, 2000, 2005 व 2011 में भारत की यात्रा की गयी। उनकी 2011 में की गयी यात्राएं बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच सामरिक साझेदारी पर हस्ताक्षर हुए, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय सहयोग को गति देना था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में उज़्बेकिस्तान की सफल यात्रा की। यानी भारत- उज़्बेकिस्तान के संबंध लगातार मजबूत होते रहे।
जिस तरह भारत का मित्र है उज़्बेकिस्तान। उसी तरह से अफ्रीकी देश गाम्बिया भी भारत का मित्र देश है। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 2015 में गाम्बिया की यात्रा पर गए थे। उन्होंने वहां पर गाम्बिया की संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि अफ्रीका का भविष्य का आर्थिक अनुमान और भारत का विकास दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। भारत-गाम्बिया के व्यापार और निवेश संबंधों में प्रगति हो रही है। गाम्बिया से युवा शिक्षा, कौशल और डिजिटल क्षेत्र में ज्ञान प्राप्ति के लिए भारत आते हैं। वहां भारतीय मूल के लोग भी हैं।
दरअसल समूचा अफ्रीका भारत का गांधीजी के रंगभेद के खिलाफ किए आंदोलन के कारण आदर करता है। भारत सभी 54 अफ्रीकी देशों से बेहतर संबंध स्थापित करने को लेकर प्रतिबद्ध है। भारत अफ्रीका में बड़ा निवेशक भी है। अफ्रीका में टाटा, महिन्द्रा, भारती एयरटेल, बजाज आटो, ओएनजीसी जैसी प्रमुख भारतीय कंपनियां कारोबार कर रही हैं। भारती एयरटेल ने अफ्रीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डालर का निवेश किया है। भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही है। दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं।
पहले गाम्बिया और अब उज़्बेकिस्तान में भारतीय फार्मा कंपनियां सवालों के घेरे में हैं। हमें मित्र देशों की भावनाओं को समझना होगा और यथोचित सम्मान भी करना होगा। अगर ये हमारी फार्मा कंपनियों पर कोई आरोप लगा रहे हैं, तो उसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। गाम्बिया और उज़्बेकिस्तान की घटनाओं को सारी दुनिया की मीडिया ने जगह दी है। सच में यह एक विकट और गंभीर स्थिति है। भारत सरकार को यहां बनी दवाओं के कारण उपर्युक्त देशों में हुई बच्चों की मौतों के मामलों को गंभीरता से लेना होगा। इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती हैं।
इन दोनों ही मामलों की जांच के नतीजे जल्दी आने चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। अगर हमारी कंपनियां दोषी नहीं हैं तो उनके साथ भी सरकार को खड़ा होना होगा। पर भारतीय फार्मा कंपनियों को अपने अनुसंधान को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत तो है। इसमें तो किसी तरह के विवाद का प्रश्न नहीं है। हमारी फार्मा कंपनियां कैसे विश्वस्तरीय हों यह उनके लिये ही नहीं पूरे देश के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न तो है ही।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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