नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों के लिए 07 चरणों की वोटिंग आज यानि 01 जून की शाम खत्म हो जाएगी. इसके बाद फिर देशभर के एग्जिट पोल के नतीजे अब आना शुरू हो जाएंगे. तमाम टीवी चैनल्स और डिजिटल मीडिया एग्जिट पोल के जरिए अनुमान बताना शुरू कर देंगे कि मतदान के बाद कौन सी पार्टी जीत रही है, कहां किसका पलड़ा भारी है.
एग्ज़िट पोल चुनाव के बाद का एक सर्वेक्षण है जो प्रत्याशित विजेताओं और उनकी जीत के अंतर की भविष्यवाणी करता है. ये पूर्वानुमान वोटिंग के बाद सर्वेक्षण एजेंसियों द्वारा एकत्र किए गए वोटर्स फीडबैक पर आधारित होता है. एग्ज़िट पोल के पीछे का विचार वास्तविक परिणाम घोषित होने से पहले जनता की भावनाओं को प्रतिबिंबित करना है, हालांकि उनकी सटीकता पर हमेशा से संशय किया जाता रहा है.
भारत में पहला एग्ज़िट पोल 1957 में आयोजित किया गया था जब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने दूसरे लोकसभा चुनावों के दौरान एक पोस्ट-पोल सर्वेक्षण किया था. सरकारी प्रसारक दूरदर्शन ने 1996 में देश भर में एग्जिट पोल आयोजित करने के लिए सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) को काम पर रखा था. लेकिन इसको लेकर काफी शिकायतें भी हुईं.
पिछले कुछ सालों में भारतीय चुनाव आयोग ने एग्जिट पोल को लेकर नियम कड़े किए हैं. भारत में कुछ साल पहले तक चुनावी चरणों के बीच में मीडिया के एग्जिट पोल दिखाने के बाद जब शिकायतें आने लगीं तो चुनाव आयोग ने इस पर नियम कड़े करके गाइडलाइंस जारी कीं कि एक्जिट पोल का टेलीकास्ट अंतिम चरण के बाद ही होगा, चाहे वो लोकसभा के चुनाव हों या फिर विधानसभा के.
ये तो भारत की बात है लेकिन कई ऐसे देश भी हैं जहां एग्जिटल पोल को ये तो प्रतिबंधित कर दिया गया है या फिर बहुत कड़े नियमों में बांध दिया गया है. यूरोप में 16 देश हैं जहां ओपिनियन पोल की रिपोर्टिंग प्रतिबंधित है. ये प्रतिबंधित चुनावी दिन से 24 घंटे पहले से लेकर एक महीने पहले तक हैं.
दरअसल एग्जिट पोल पर वोटिंग से पहले या वोटिंग चरणों के दौरान प्रतिबंध इसलिए लगाया जाता है, क्योंकि उसके जरिए पूरी वोटिंग प्रक्रिया प्रभावित होती है और वोटर्स पर भी उसका असर पड़ता है.
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