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श्रीगणेश को मोदक क्यों सबसे अधिक प्रिय है ?

September 01, 2020

भगवान श्रीगणेश का सबसे प्रिय भोज्य पदार्थ मोदक (लड्डु, लाडू) है । गणेश प्रतिमाओं में उन्हें लड्डु लिए हुए या खाते हुए प्रदर्शित किया गया है । श्रीगणेश के सामने चाहे छप्पन-भोग सजा दो; परन्तु लम्बोदर को मोदक/लड्डु ही चाहिए । श्रीगणेश की सबसे लोकप्रिय आरती में भी उनकी मोदकप्रियता का वर्णन है-

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा ।।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन को भोग लगै, संत करें सेवा ।।

किसी ने व्यंग्य किया-क्या करें बेचारे गणेशजी, दांत तो एक ही है, कैसे चबायेंगे भोजन ? सो लड्डु लिया और गप्प से उदरस्थ कर लिया । लम्बोदर केवल लड्डु खाते ही नहीं हैं, भक्तगण तो उनका श्रृंगार भी लड्डुओं से कर देते हैं । एक तो उनकी विशाल काया उस पर ऊपर से नीचे तक लड्डु-ही-लड्डु और वो भी एक तरह के नहीं; अनेक प्रकार के लड्डु, गिनना भी मुश्किल-बेसन का, मोतीचूर का, मगद का, उड़द की दाल की मोटी बूंदी का, महीन बूंदी का, चूरमे का, आटे का, मलाई का, केसर का, इलायची का, काजू का, बादाम का, खोए का, पिन्नी का, तिल का, नारियल का, गुड़ का, बाजरे का, चावल का-और न जाने किस-किस का । जीवन की सभी विघ्न-बाधाओं को शांत करने की एक ही दवा है-गणेशजी को लड्डुओं का भोग लगा दो ।

श्रीगणेश को मोदक क्यों सबसे अधिक प्रिय है ?

श्रीगणेश पुराण के अनुसार एक बार सभी देवतागण भगवान शिव के पुत्र गजानन (श्रीगणेश) और षडानन (कार्तिकेय) का दर्शन करने कैलास पधारे । अत्यंत सुंदर और तेजस्वी दोनों शिवपुत्रों को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए । देवगणों ने एक दिव्य अमृतपूर्ण मोदक माता पार्वती को दिया । श्रीगणेश और कार्तिकेय दोनों ही उस मोदक को माता से मांगने लगे ।

माता पार्वती ने दोनों बालकों से कहा-‘पहले इस मोदक का गुण सुनो । इस मोदक की गन्ध से ही
अमरता की प्राप्ति होती है । इसे सूंघने या खाने वाला सभी शास्त्रों का ज्ञाता, सभी तन्त्रों में प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञानवान और सभी कुछ जानने वाला (सर्वज्ञ) हो जाता है । मेरे साथ तुम्हारे पिता की भी यही इच्छा है कि जो धर्माचरण में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर देगा, उसे ही यह मोदक मिलेगा ।’

माता की बात सुनकर चतुर कार्तिकेय अपने तेजी से चलने वाले वाहन मयूर पर आरुढ़ होकर त्रिलोकी के तीर्थों की यात्रा पर चल पड़े और थोड़ी ही देर में उन्होंने समस्त तीर्थों में स्नान कर लिया ।

इधर भारी-भरकम श्रीगणेश और उनका वाहन मूषक । उन्होंने सोचा क्या किया जाए जिससे सारी पृथ्वी की परिक्रमा हो जाए ? उन्होंने माता-पिता को आसन पर बिठाकर हाथ जोड़कर उनकी सात परिक्रमा कर दीं और मां से बोले-‘मोदक मुझे दीजिए ।’

माता पार्वती ने कहा-

‘सभी तीर्थों में किया हुआ स्नान, सभी देवताओं को किया गया नमस्कार, सभी यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग, संयम का पालन भी माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर नहीं हो सकते हैं; इसलिए श्रीगणेश सैंकड़ों पुत्रों और सैंकड़ों गणों से भी बढ़कर है । अत: यह देवताओं के द्वारा बनाया गया अमृतमय मोदक मैं गणेश को देती हूँ । माता-पिता की भक्ति के कारण यह सभी यज्ञों में अग्रपूज्य होगा ।’

माता पार्वती ने वह मोदक श्रीगणेश को दे दिया । तब से श्रीगणेश को मोदक बहुत प्रिय हो गया ।

इस कथा से श्रीगणेश की बुद्धिमत्ता सिद्ध हो जाती है । विद्वान और बुद्धिमान व्यक्ति ही सफल होता है तथा सफलता प्रसन्नता (मुद) एवं मंगलमयता का कारण होती है ।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीगणेश की ‘‘मोदक प्रिय मुद मंगलदाता’ छवि की ही वन्दना की है-

‘मोदक प्रिय मुद मंगलदाता’ ।
विद्या-बारिधि बुद्धि-बिधाता ।।

मोदक किसे कहते हैं ?

‘मोद’ का अर्थ है प्रसन्नता (pleasure, delight, joyfulness) । अत: ‘मोदक’ का अर्थ है जो प्रसन्नता दे, मन में खुशी के भाव जगाए । मोदक इन दोनों-प्रसन्नता और मंगलमयता का प्रतीक है ।

श्रीगणेश को मोदक के भोग से शिक्षामोदक हमें यही शिक्षा देता है कि एकता में ही शक्ति और खुशी है । अलग-अलग बिखरी हुयी बूँदी के दानों (समुदाय) को एकत्र करके (बांध करके) मोदक बनाया जाता है जो ग्रहण करने पर श्रीगणेश के साथ-साथ भक्तों को भी प्रसन्नता देता है । व्यक्तियों का सुसंगठित समाज जितना कार्य कर सकता है, उतना एक व्यक्ति से नहीं हो पाता है । अत: मोतीचूर के लड्डु की तरह मनुष्य को परिवार, समाज व राष्ट् की एकता को बनाए रखना चाहिए ।
गणेशजी की मोदक-प्रियता ने मानव जीवन में माधुर्य का संचार कर दिया है । घर में कोई शुभ अवसर हो, चाहें बच्चे का जन्म-उत्सव हो, मुण्डन संस्कार हो, बेटी या बेटे की सगाई, शादी या गौना हो, परीक्षा में सफलता हो, प्रमोशन हो, चुनाव में जीत हो या अन्य कोई खुशी का अवसर हो; सभी में बेसन की बूंदी से बने ‘मोतीचूर के लड्डुओं के बिना हृदय के आह्लाद-खुशी का प्रकटीकरण नहीं होता है । शगुन का कोई भी काम बिना मोदक-लड्डुओं के पूरा ही नहीं होता है । मन की खुशियों को दूसरों से बांटने का सबसे सुन्दर तरीका है लड्डु बांटना । इसी से पता लगता है कि कितने ‘सद्गुण-सम्पन्न’ है हमारे मोदक महारज ।

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