ओटोवा (Ottowa)। कनाडा में खालिस्तानियों (Khalistanis in Canada) की सक्रियता इस कदर बढ़ती नजर आ रही है जिसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते। कनाडा में जस्टिन ट्रुडो सरकार (Justin Trudeau government) की मुसीबतें कम ही नहीं हो रही हैं, पिछले दिनों वह देश में बढ़ती अव्यवस्था और बढ़ती महंगाई को लेकर मीडिया में सफाई दे रहे थे, अब खालिस्तान समर्थकों के आए दिन भारत विरोधी नारे लगने पर भी उनसे जवाब मांगा जा रहा है!
खुलेआम कनाडा समेत कई देशों में राजनयिकों (diplomats in countries) को निशाना बनाने की धमकियां दी जा रही, लेकिन कनाडा की सियासत (Canadian politics) पर इसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। यहां तक कि पीएम जस्टिन ट्रूडो तक चुप हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खालिस्तान का मुद्दा जस्टिन ट्रुडो के सामने उठाया था और तीखी प्रतिक्रिया दी थी, हालांकि सवाल ये है कि खालिस्तानी आंदोलन और इसके अलगाववादी नेताओं के खिलाफ ट्रुडो सरकार कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाती।
इसके जवाब में कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रुडो ने कहा था कि कनाडा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, सभी को अपनी बात रखने का हक है! कनाडा के प्रधानमंत्री के जवाब में भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी! विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्रुडो के बयान का जवाब देते हुए कहा था, “अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल नहीं है.अभिव्यक्ति के नाम पर इसका इस्तेमाल हिंसा, अलगाववाद और आतंकवाद को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है।
कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग रहते हैं. इनमें से करीब 7 लाख सिख हैं. इनकी ज्यादा जनसंख्या एडमोंटन, ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, ब्रिटिश कोलंबिया और कैलगरी में है. कनाडा की राजनीति में सिखों के मुद्दे को काफी तरजीह दी जाती है. वोट बैंक के लिए सरकार खालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ नहीं करती है. यही वजह हो सकती है कि ट्रूडो सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेती है.
कैसे कनाडा पहुंचे सिख ?
1897 में मेजर केसर सिंह को अंग्रेजों ने लंदन में महारानी विक्टोरिया के एक कार्यक्रम में सैनिक के तौर पर शामिल होने के लिए बुलाया था. इसके बाद वह ब्रिटिश कोलंबिया में रुक गए और वहीं के होकर रह गए. उनके बाद सिखों का कनाडा में बसने का सिलसिला जारी रहा.
खालिस्तानी गतिविधियों की शुरूआत?
1940 में मुस्लिम लीग की लाहौर डिक्लेरेशन के जवाब में एक पैप्पलेट छापा गया था, उसमें पहली बार खालिस्तान शब्द का उल्लेख था. 1960 के दशक पंजाब के अकाली दल ने सिखों की स्वायत्तता की बात कही.
इसके बाद 70 के दशक के आखिरी सालों में पंजाब में खालिस्तान की मांग उठी और इसके लिए एक संगठन दल खालसा की बनाया गया. साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या को खालिस्तान से जोड़ कर देखा जाता है. हालांकि ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह से कुछ सिखों में गुस्सा था, जिसकी वजह से कहा जाता है कि इंदिरा गांधी को गोली मार दी गई.
इसके बाद पहली बार 1986 में खालिस्तान की औपचारिक मांग उठी. तब से समय समय पर खालिस्तान का मुद्दा उठता रहा है. विदेशों में खालिस्तान की मांग के लिए सिख फॉर जस्टिस सरीखे कई संगठन है।
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