पति-पत्नी (husband wife) का रिश्ता पवित्र होता है, क्योकि यह एक विश्वास की पक्की डोर से बंधा होता है। माना जाता है की पत्नी, पति का आधा अंग होती है, इसलिए इन्हें आर्धांगिनी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी (Brahma ji) के दाएं कंधे से पुरुष और बाएं कंधे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। इसी वजह से महिला को वामांगी कहा गया है।
शादी के बाद आमतौर पर महिलाएं पति के बाईं ओर बैठती हैं, जबकि किसी विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान पत्नी को पति के दाईं तरफ बैठना होता है। वहीं जब स्त्री प्रधान धार्मिक कार्य (major religious work) किए जाते हैं तो पत्नी पति के बाईं ओर भी बैठती है। हिंदू धर्म ग्रंथ (Hindu scriptures) के मुताबिक सिंदूरदान (vermilion), भोजन, शयन और सेवा में के दौरान पत्नी को अपने पति के बाईं ओर रहना चाहिए।
माना जाता है की महिला का बायां और पुरुष का दाहिना हिस्सा शुभ होता है। विज्ञान के अनुसार इंसान के मस्तिष्क (Brain) का बायां हिस्सा रचनात्मक होता है। साथ ही दायां हिस्सा कर्म प्रधान होता है। महिलाओं को पुरुष की बाईं ओर बैठने का एक कारण यह भी है। शास्त्रों के मुताबिक कन्यादान, विवाह, पूजा-पाठ और यज्ञ के दौरान पत्नी को पति के दाईं ओर बैठना शुभ है, वहीं विदाई, आशीर्वाद लेते समय, सहवास के दौरान पत्नी को अपने पति की बाईं ओर रहना शुभ माना गया है।
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