– प्रभुनाथ शुक्ल
“मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी।” यह पीड़ा सोनिया गांधी की थी जो उन्होंने अपने पति एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को खोने के बाद व्यक्त की थी। यह एक मां और औरत की पीड़ा थी, क्योंकि राजीव को खोने के बाद सोनिया अकेली पड़ गई थीं। वह डरी और सहमी थीं, क्योंकि पारिवारिक संघर्ष में वह अकेली थीं। उन्हें सबसे अधिक फिक्र दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका गांधी की सुरक्षा की थी। इसकी वजह से वह राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। वह राजनीति की वजह से पति और सास को खो चुकी थीं। इसकी वजह से उन्हें राजनीति से घृणा हो गई थी।
सोनिया के दृढ संकल्प ने उन्हें विषम परिस्थितियों में भी डिगने नहीं दिया। कांग्रेस को संभालने के लिए उन्हें अंततः राजनीति में आना पड़ा। लंबे कालखंड के बाद सोनिया गांधी ने अब सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया है। खराब स्वास्थ्य के चलते अब वह चुनाव नहीं लड़ेंगी और राज्यसभा के माध्यम से कांग्रेस की सेवा करेंगी। उन्होंने रायबरेली की जनता के नाम एक भावनात्मक चिठ्ठी लिखी है। सोनिया गांधी के इस फैसले के बाद अब देखना यह होगा कि रायबरेली की सीट क्या कांग्रेस के लिए सुरक्षित रह पाएगी या अमेठी की तरह उस पर भी भाजपा का कब्जा हो जाएगा।
सोनिया गांधी के इस फैसले पर भाजपा ने तंज कसा है। कांग्रेस ने इसे सोनिया गांधी का निजी फैसला बताया है। कांग्रेस बेहद बुरे दौर से गुजर रही है। इंदिरा गांधी के जाने के बाद राजीव गांधी ने पार्टी को संभाला। राजीव की अनुपस्थिति में सोनिया गांधी ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई, लेकिन राहुल गांधी खरे उतरते नहीं दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के फैलाव से कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है है। सच यह है कि कमजोर कांग्रेस को मजबूत आधार दिलाने वाला कोई राजनेता नहीं दिख रहा है। प्रियंका गांधी से पार्टी को काफी उम्मीद थी, लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्हें जो करिश्मा करना था वह नहीं कर पाईं। ऐसी स्थिति में सक्रिय राजनीति से सोनिया गांधी का अलग होना कांग्रेस को किस दिशा में लेकर जाएगा, यह कहना मुश्किल है। बावजूद इसके कांग्रेस खुद को गांधी परिवार की छत्रछाया से खुद को अलग नहीं कर पा रही ।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की रायबरेली परंपरागत सीट रही है। रायबरेली और अमेठी का नाम आते ही लोगों के सामने गांधी और नेहरू परिवार की तस्वीर तैरने लगती है। कमजोर होती कांग्रेस अपनी बहुचर्चित लोकसभा सीट अमेठी को गंवा चुकी है। राहुल गांधी को विषम राजनीतिक परिस्थितियों में नई सियासी जमीन तलाशने के लिए दक्षिण भारत से चुनाव लड़ना पड़ा। अब यह निश्चित हो गया है कि सोनिया गांधी राज्यसभा के माध्यम से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करेंगी। सवाल उठता है क्या रायबरेली कांग्रेस से हाथ से फिसल जाएगी। कांग्रेस के जो राजनीतिक हालात हैं उस स्थिति में राहुल गांधी क्या अमेठी एवं रायबरेली लौटेंगे।
गांधी परिवार के लिए सबसे सुरक्षित सीट रायबरेली मानी जाती रही है। मगर अब ऐसा लगता है कि गांधी परिवार से उपेक्षित होने के बाद यह सीट अमेठी की तरह फिसल जाएगी। इसी के साथ गांधी परिवार की राजनीतिक पहचान उत्तर प्रदेश से खत्म हो जाएगी। हालांकि अब शिगूफा छोड़ा जा रहा है कि प्रियंका गांधी या राहुल गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़ाया जाएगा। संभव है कि प्रियंका गांधी को अमेठी और राहुल को रायबरेली से मैदान में उतारा जाए।
ऐसे में सवाल यह है कि राहुल गांधी क्या वायनाड को छोड़ देंगे। यह पक्का है कि अगर राहुल ऐसा करते हैं तो दक्षिण के लिए गलत संदेश जाएगा और कांग्रेस वहां कमजोर होगी। ऐसी विषम परिस्थितियों में राहुल गांधी क्या रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय ले पाएंगे। सोनिया ने रायबरेली के लोगों के नाम लिखी चिट्ठी में अपने खराब स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र का हवाला दिया है। उन्होंने लिखा है कि हालांकि मुझे आपकी सीधे सेवा करने का अवसर नहीं मिलेगा, लेकिन मैं मन और प्राण से आपके साथ रहूंगी। रायबरेली की जनता के नाम सोनिया ने बहुत ही भावनात्मक लाइन लिखी है, “मुझे पता है कि आप भी हर मुश्किल में मुझे और मेरे परिवार को वैसे संभाल लेंगे जैसे अब तक संभालते आए हैं।” उन्होंने लिखा है कि “दिल्ली में मेरा परिवार अधूरा है वह रायबरेली आकर आप लोगों से मिलकर पूरा होता है।” चिठ्ठी में ससुर फिरोज गांधी और सास इंदिरा गांधी का भी जिक्र किया है। सोनिया गांधी की इस भावनात्मक अपील का जनता कितना सम्मान करती है फिलहाल यह वक्त बताएगा।
रायबरेली से मुंह मोड़ना गांधी परिवार की सबसे बड़ी भूल होगी। मगर इस चिट्ठी से ऐसा लगता है कि वे रायबरेली से चुनाव स्वयं भले न लड़ें, लेकिन गांधी परिवार से कोई न कोई इस विरासत को जरूर संभालेगा। रायबरेली से कांग्रेस हमेशा चुनाव जीतती आई है। 2004 से लेकर अब तक सोनिया गांधी ने रायबरेली का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया है। इसके अलावा उनकी सास और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, शीला कौल, आरपी सिंह और सतीश शर्मा यहीं से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।
सोनिया का राजनीति में आगमन मुश्किल दौर में हुआ। दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में 1996 में कांग्रेस चुनाव हार गई। उस समय कांग्रेस को गांधी परिवार की जरूरत महसूस हुई। वरिष्ठ नेताओं के आग्रह पर आखिरकार न चाहते हुए भी पार्टी की कमान संभालने को राजी हो गईं। सोनिया ने 1997 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और 1998 में अध्यक्ष चुनी गई। 1999 उन्होंने बेल्लारी व अमेठी से चुनाव लड़ा और रिकार्ड मतों से विजयी हुईं। 2004 में 16 दलों के गठबंधन यूपीए की नेता चुनी गईं। उन्होंने पूरे देश में चुनाव प्रचार किया और यूपीए गठबंधन को सत्ता में वापस ले आईं। 2019 में उन्हें अंतिम बार कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया। सोनिया गांधी ने हर विषम परिस्थितियों में पार्टी को संभाला है। इस सबके बावजूद पिछले दस साल में कांग्रेस को वह न तो बिखरने से बचा पाईं न सिकुड़ने से। अब देखना यह बाकी है कि लोकसभा चुनाव में खड़गे कैसी व्यूह रचना कर डूब रही कांग्रेस को उबारते हैं।
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