महाभारत का युद्व पौराणिक युद्वों के इतिहास में एक अलग ही महत्व रखता है । इससे ही भागवत गीता का जन्म हुआ। अधर्म पर धर्म की जीत की इस महागाथा में हर क्षण कोई ना कोई कहानी या सीख समाहित है। इसी तरह युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) को ही चुनने के पीछे रोचक कहानी है।
पांडवों ने वनवास-
अज्ञातवास पूरा कर धृतराष्ट्र Dhritarashtra() से अपना राज मांगा तो दुर्योधन ने सुई की नोक के बराबर भी देने से मना कर दिया। श्रीकृष्ण भी युद्ध रोकने खुद दूत बनकर पहुंचे, लेकिन दुर्योधन ने युद्ध के बिना कोई समाधान मनाने से इनकार कर दिया। अब युद्ध निश्चित होने के बाद भीष्म ने श्रीकृष्णजी को ही युद्ध के लिए उपयुक्त जमीन खोजने को कहा। चूंकि खुद श्रीकृष्ण जी जानते थे कि यह युद्ध मानव इतिहास का सबसे भयंकर और ऐसा युद्ध होगा, जिसमें सगे संबंधी आमने-सामने होंगे। इसके लिए ऐसी भूमि देखी जाए, जिसका इतिहास (History) बेहद कठोर हो, जिससे युद्ध में अपनों को सामने देखकर सबका मन विमुख हो जाए।
सभी दिशाओं में छोड़े गए गुप्तचरों को ऐसी ही क्रूर और निर्मम धरती की तलाश का जिम्मा सौंपा गया। कुछ समय बाद गुप्तचरों ने बताया कि उन्होंने एक जगह देखी कि दो भाई साथ मिलकर खेती कर रहे थे, तभी बारिश होने लगी। बड़े भाई ने छोटे से खेत में मेढ़ बनाने को कहा, ये सुनकर छोटे भाई ने उसे कहा कि आप काम स्वयं कर लें, मैं दास नहीं हूं। ये सुनकर बड़े भाई को गुस्सा आया और उसने खड़ग से छोटे भाई की हत्या कर उसके शव से ही खेत में मेढ़ बना दी। इतना सुनते ही आश्चर्यचकित कृष्ण ने भूमि का नाम पूछा तो गुप्तचरों ने कुरुक्षेत्र नाम बताया।
कृष्णजी समझ चुके थे कि यही वह भूमि है, जहां भगवान परशुराम (lord parshuram) ने इक्कीस बार क्षत्रियों को मारकर खून से पांच सरोवर बना दिए थे। ऐसी भूमि पर दया उत्पन्न ही नहीं हो सकता और यह महाभारत युद्ध के लिए सर्वोत्तम रहेगी। कुरुक्षेत्र के लिए एक और किवदंती प्रचलित है कि देवराज इंद्र ने भगवान परशुराम जी से कहा था कि जो भी कुरुक्षेत्र में प्राण त्याग करेगा, वो सीधे स्वर्ग जाएगा। श्रीकृष्ण जी (shri krishna ji) भी यही चाहते थे कि सारे महावीर मृत्यु के बाद स्वर्ग जाएं।
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