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पांडवों के आने की भनक लगते ही क्‍यों बैल बन गए थे शिव? जानें केदारनाथ से जुड़े ये अनूठे रहस्‍य

October 22, 2022

नई दिल्‍ली। शिवपुराण में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirling) का उल्लेख मिलता है, जहां शिव स्वंय प्रकट हुए थे.इन्हीं में से एक है केदारनाथ (Kedarnath) धाम. उत्तराखंड (Uttarakhand) में हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ धान बारह ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) में सम्मिलित होने के साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है. यहां मंदिर का निर्माण पांडव वंश (Pandava dynasty) के जन्मजेय ने कराया था, फिर बाद में इसका जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने कराया. मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं (wishes) पूर्ण होती है. आइए जानते हैं केदारनाथ धाम की रोचक बातें और कथा.

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा (Kedarnath Jyotirlinga katha)
पौराणिक कथा (mythology) के अनुसार महाभारत युद्ध में पांडवों ने विजय प्राप्त कर अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. पाप का प्राश्चित करने के लिए वह कैलाश पर्वत पर महादेव (Shiva) के पास पहुंचे लेकिन शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और अंतर्ध्यान हो गए. पांडवों ने हार नहीं मानी और शिव की खोज में केदार पहुंच गए.


शिव ने क्यों लिया बैल रूप
पांडवों के आने की भनक लगते ही भोलेनाथ (Bholenath) ने बैल का रूप धारण कर लिया और पशुओं के झुंड में मिल गए. पांडव शिव को पहचान न पाए लेकिन फिर भीम ने अपना विशाल रूप ले लिया और अपने पैर दो पहाड़ों पर फैला दिए. सभी पशु भीम के पैर से निकल गए लेकिन बैल के रूप में महादेव ये देखकर दोबारा अंतरध्यान होने लगे तभी भीम ने उन्हें पकड़ लिया. पांडवों की भक्ति देखकर शिव प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर सभी पापों से मुक्त कर दिया. तब से ही यहां बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में शिव को पूजा जाता है.

केदारनाथ धाम के रहस्य (Kedarnath Temple Facts)
सनातन धर्म में केदारनाथ को अद्भुत ऊर्जा (amazing energy) का केंद्र माना गया है. पहाड़ियों से घिर केदारनाथ तीर्थ की महिमा बड़ी निराली है. यहां पांच नदियों मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का संगम होता है. जिसमें अब कुछ नदियों का अस्तित्व खत्म हो गया है.

यहां बाबा के दर्शन से पहले केदारनाथ मार्ग में आने वाले गौरीकुंड में स्नान का विधान है. हर साल भैरव बाबा की पूजा के बाद ही मंदिर के कपाट बंद और खोले जाते हैं. कहते है कि मंदिर के पट बंद होने पर भगवान भैरव इस मंदिर की रक्षा करते हैं. शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसे यात्रा का फल नहीं मिलता. यहां स्थित बाबा भैरवनाथ (Baba Bhairavnath) का मंदिर विशेष महत्व रखता है.

नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सुझाव सिर्फ सामान्‍य सूचना के उद्देश्‍य से पेश की गई है. इन पर हम किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते हैं.

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