नई दिल्ली: रायबरेली गांधी परिवार की पारंपरिक सीट है. यहां से सोनिया गांधी, इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी सांसद रहे हैं. गांधी परिवार का इस सीट से बेहद इमोशनल कनेक्शन रहा है. सोनिया गांधी की जगह इस बार जब राहुल ने रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो सोनिया ने चुनाव के प्रचार के दौरान रायबरेली की जनता से कहा था कि मैं अपना बेटा आपको सौंप रही हूं. इसके अलावा यूपी की राजनीति के लिहाज से भी रायबरेली कांग्रेस और राहुल दोनों के लिए बेहद अहम है. इस बार राहुल रायबरेली से चुनाव लड़े तो उसका असर कांग्रेस की परफॉर्मेंस पर भी हुआ. पिछले चुनाव में एक सीट पर सिमटने वाली कांग्रेस ने इस बार यूपी की छह सीटों पर जीत हासिल की और अब कांग्रेस की नजर 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव पर है.
रायबरेली में मिली जीत के बाद धन्यवाद कार्यक्रम में पहुंचे राहुल गांधी ने 11 जून को कहा, “जो मेरी बहन ने यहां मेहनत की, दो-दो घंटे सोकर, जो मेरी बहन ने रायबरेली में चुनाव में काम किया, उसके लिए मैं दिल से धन्यवाद करता हूं, प्रियंका का और आप सबका. एक और आइडिया मेरे पास है, वह मैं आपको बाद में बताऊंगा.” लगता है इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे के घर हुई बैठक में उसी आइडिया पर बात फाइनल हो गई, जिसे कांग्रेस अपने लिए सियासी संजीवनी कह सकती है.
कांग्रेस देश के सबसे बड़े चुनावी राज्य में दो विधानसभा सीट तक सिमट चुकी है, जबकि 10 साल बाद लोकसभा चुनाव में 10 फीसदी के करीब कांग्रेस का वोट शेयर पहुंचा और सीट बढ़कर छह हुईं. अब रायबरेली की सीट के साथ अमेठी जीत चुकी कांग्रेस को लगता है कि अखिलेश यादव के साथ गठजोड़ का मिला फायदा और भी मजबूत करके उस जमीन को हासिल किया जा सकता है, जिसे धीरे-धीरे कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खोती चली गई.
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को इस बार के चुनावी नतीजों के बाद आइडिया यही आया है कि अगर जमीन दिल्ली तक मजबूत करनी है तो यूपी में सीट और जमीन दोनों को बचाना होगा. रायबरेली हो या अमेठी अगर किसी ने प्रचार करके जमीन को मजबूत किया तो वह प्रियंका गांधी हैं. जिन्होंने रायबरेली में नौ दिन और अमेठी में सात दिन प्रचार किया. इस बार पिछले तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में रहा. सीटें बढ़ी, वोट शेयर भी बढ़ा. अब कांग्रेस की रणनीति है कि राहुल रायबरेली सीट रखकर फ्रंट से यूपी में पार्टी को आगे बढ़ाएं, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में अगर समाजवादी पार्टी से गठबंधन रहता है तो मौका बन सकता है.
यूपी में कांग्रेस हाशिए पर है, 80 में छह लोकसभा सांसद यूपी में कांग्रेस के हैं तो 2014 में तो दो और 2019 में सिर्फ एक सांसद थे. देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में कांग्रेस के दो विधायक और 33 राज्यसभा सांसदों में से कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है. यूपी विधान परिषद की 100 सीट में एक भी कांग्रेस का एमएलसी नहीं है. रायबरेली हो या अमेठी किसी ने प्रचार करके जमीन को मजबूत किया तो वो प्रियंका गांधी रहीं, जिन्होंने रायबरेली में नौ दिन और अमेठी में सात दिन प्रचार किया. अब उसी उत्तर प्रदेश की सीट भाई के पास रहेगी और वायनाड से चुनावी आगाज प्रियंका करेंगी क्योंकि कम से कम 15 साल बाद कांग्रेस को लगा है कि यूपी में हाथ के हालात बदले जा सकते हैं.
इस बार राहुल गांधी ने अमेठी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला किया जो सही भी साबित हुआ. राहुल को वायनाड और रायबरेली दोनों ही जगह बड़ी जीत मिली. राहुल ने रायबरेली में 3 लाख 90 हजार से ज्यादा की मार्जिन से चुनाव जीता, जबकि वायनाड में उनकी जीत का मार्जिन 3 लाख 64 हजार से ज्यादा था. राहुल को एक सीट कोई छोड़नी थी, इसलिए उन्होंने वायनाड सीट को छोड़ा. इस बार के चुनाव में राहुल के सामने सीपीआई ने एनी राजा को मैदान में उतारा था. हालांकि सीपीआई इंडिया गठबंधन का हिस्सा है, बावजूद इसके वायनाड में राहुल के सामने एनी राजा ने चुनाव लड़ा. बीजेपी ने केरल यूनिट के अध्यक्ष के सुरेंद्रन पर दाव लगाया था, लेकिन राहुल ने बड़ी जीत हासिल की.
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