जिनेवा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) की बैठक में श्रीलंका (Sri Lanka) के खिलाफ लगे मानवाधिकारों के उल्लंघन वाले प्रस्ताव पर हो रही वोटिंग से भारत(India) ने किनारा कर लिया है। इस दौरान UNHRC में भारत(India) के प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे। इस प्रस्ताव में जाफना में लिट्टे के खिलाफ अभियान के दौरान श्रीलंकाई सेना पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने और बड़ी संख्या में तमिल लोगों पर अत्याचार (atrocities on Tamils) करने के आरोप लगाए गए थे। भारत के सामने मुश्किल यह थी कि वह श्रीलंका के साथ पड़ोसी होने का धर्म निभाए या फिर तमिल अल्पसंख्यकों की रक्षा के पक्ष में खड़ा हो। जिसके बाद भारत ने इस प्रस्ताव पर आयोजित वोटिंग से अनुपस्थित होने का फैसला किया।
श्रीलंका इस प्रस्ताव पर भारत का साथ चाहता था। इसके लिए वहां के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात भी की थी। बताया जा रहा है कि दोनों ही तरफ अपने ही लोग होने के कारण भारत ने इस प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं करने का फैसला किया। भारत और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के बीच पहले से ही विवाद है। हाल में ही कृषि कानूनों के विरोध में हो रहे आंदोलन को लेकर दिए गए मानवाधिकार परिषद के बयान के खिलाफ भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर भी भारत और यूएनएचआरसी आमने-सामने हैं।
भारत के पास इस मुद्दे पर वोटिंग नहीं करने का ही विकल्प मौजूद था। क्योंकि अगर भारत इसके समर्थन में वोटिंग करता तो श्रीलंका नाराज होता। इससे चीन और पाकिस्तान को श्रीलंका में घुसपैठ करने का एक और मौका मिल जाता। वहीं, अगर भारत इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट करता तो दक्षिण भारत के तमिल नाराज होते। अगले महीने तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में अगर भारत सरकार तमिलों के मुद्दे पर जोखिम न लेते हुए वोटिंग से दूर रहने का फैसला किया है।
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