नेपाल में चल रहे राजनीतिक संकट के बीच इस मुलाकात की चर्चा काफी हो रही है। इस मुलाकात के बारे में ना तो नेपाल के राष्ट्रपति की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया आई है ना ही विदेश मंत्रालय की तरफ से। नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी ने इस बारे में अपने ट्विटर पर कुछ लिखा है। करीब एक घंटे तक चली इस मुलाकात को नेपाल के आंतरिक मामलों में चीन के दखल के तौर पर भी देखा जा रहा है। आमतौर पर राजनयिक अधिकारी अपनी पोस्टिंग वाले देश की आंतरिक राजनीति से दूर ही रहते हैं। लेकिन चीन की राजदूत हाओ यांकी पहले भी नेपाल के नेताओं के साथ अपनी मुलाकात की वजह से सुर्खियां बटोरती रहीं हैं।
नेपाल में उनके बारे में यहाँ तक कहा जाता है कि वर्तमान में जो राजनीतिक संकट देखने को मिला वो कुछ महीने पहले भी आ सकता था, अगर उन्होंने सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों बड़े नेताओं केपी ओली और कमल दहल प्रचंड के बीच में बीच-बचाव ना किया होता। नेपाल की राजनीति में केपी ओली और कमल दहल प्रचंड के बीच की दूरी पिछले कुछ महीनों में ज्यादा बाहर निकल कर सामने आई है। केपी ओली और कमल दहल प्रचंड के बीच वर्चस्व की लड़ाई है, जिसमें पार्टी पर मजबूत पकड़ रखने वाले प्रचंड से प्रधानमंत्री केपी ओली को जबरदस्त टक्कर मिल रही है। लेकिन 20 दिसंबर को नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने ओली सरकार की सिफारिश के बाद नेपाल की संसद यानी प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और अप्रैल में मध्यावधि चुनाव करने की घोषणा की है। ऐसे समय में नेपाल में चीन की राजदूत और राष्ट्रपति बिद्या देवी की मुलाकात के भारत के लिए अपने मायने हैं।
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