नई दिल्ली। कार्तिक पूर्णिमा(Kartik Purnima) का त्योहार त्रिपुरासुर पर भगवान शिव (Lord Shiva) की जीत की खुशी में मनाया जाता है. इस दिन देवतागण दीपदान करते हैं. यह देवताओं की दिवाली (Diwali of the Gods) कहलाती है. कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान-दान का विशेष महत्व (special importance) है. कार्तिक पूर्णिमा का काशी से खास संबंध है. इस दिन काशी के घाटों को दीपों से रौशन किया जाता है.
इस साल कार्तिक पूर्णिमा का व्रत उदयातिथि के अनुसार 8 नवंबर 2022 को रखा जाएगा. इस तिथि पर दीपदान संघ्याकाल में किया जाता है इसलिए देव दिवाली 7 नवंबर 2022 को मनाई जाएगी. आइए जानते हैं देव दिवाली की कथा.
देव दिवाली की कथा (Dev diwali Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव बड़े पुत्र और देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय (Lord Kartikeya) ने तारकासुर का वध कर दिया था. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तारकासुर के तीनों बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने प्रण लिया. इन तीनों को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. तीनों ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्म देव ने उन्हें यह वरदान देने से इनकार कर दिया और कहा कुछ और मांगो
त्रिपुरासुर को ब्रह्मा जी ने दिया था ये वरदान
त्रिपुरासुर ()Tripurasur ने वरदान मांगा कि हमारे लिए निर्मित तीन पुरियां जब अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में हों और कोई क्रोधजित अत्यंत शांत होकर असंभव रथ पर सवार असंभव बाण से मारना चाहे, तब ही हमारी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया. इसके बाद त्रिपुरासुर बहुत बलशाली हो गए और उनका आतंक बढ़ गया. ये जहां भी जाते समस्त सत्पुरषों पर अत्याचार करते. यहां तक कि देवतागण भी उनके आतंक से पीड़ित थे. उन्हें युद्ध में कोई हरा नहीं पाता था.
शिव ने किया त्रिपुरासुर का वध (Lord Shiv Killed Tripurasur)
अंत में परेशान होकर सभी देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव की शरण में पहुंचे. सभी ने महादेव से अपनी व्यथा कही तो उन्होंने देवताओं को अपना आधा बल देकर त्रिपुरासुर का सामना करने के लिए कहा लेकिन सभी देवता भगवान शिव के बल को संभाल नहीं पाए. इसके बाद स्वंय शंभू ने त्रिपुरासुर का संहार करने का संकल्प लिया. इसके बाद देवतागण ने अपना आधा बल शिव को समर्पित कर दिया.
त्रिपुरासुर के वध के लिए ऐसे हुई तैयारी
पृथ्वी को ही भगवान ने रथ बनाया, सूर्य-चंद्रमा (sun-moon) पहिए बन गए, सृष्टा सारथी बने, भगवान विष्णु बाण, वासुकी धनुष की डोर और मेरूपर्वत धनुष बने. फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार होकर असंभव धनुष पर बाण चढ़ा लिया और अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियों के एक पंक्ति में आते ही त्रिपुरासुर पर आक्रमण कर दिया. प्रहार होते ही तीनों पुरियां जलकर भस्म हो गईं और त्रिपुरासुर का अंत हो गया. तभी से शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध हुआ था. इसकी प्रसन्नता में सभी देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे. फिर गंगा स्नान के बाद दीप दान कर खुशियां मनाई. इसी दिन से पृथ्वी पर देव दिवाली मनाई जाती है.
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