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    इलाज़ में देरी क्यों?

  • December 21, 2021

    – डॉ. वेदप्रताप वैदिक

    भारत में शिक्षा और चिकित्सा पर सरकारों को जितना ध्यान देना चाहिए, उतना बिल्कुल नहीं दिया जाता। भारत के सरकारी अस्पतालों में न तो नेता लोग जाना चाहते हैं, न साधन संपन्न लोग और न ही पढ़े-लिखे लोग। हमारे सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए जानेवाले लोगों में मध्यम या निम्न मध्यम वर्ग या मेहनतकश या गरीब लोग ही ज्यादातर होते हैं। दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान इस मामले में थोड़ा अपवाद है।

    सरकारी अस्पतालों की दशा पर नीति आयोग ने फिलहाल एक विस्तृत जांच करवाई है। इसके परिणाम चौंकाने वाले हैं। देश के कई महत्वपूर्ण राज्यों के अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या औसत से भी बहुत कम है। यों तो माना जाता है कि भारत में एक लाख की जनसंख्या पर हर जिले में कम से कम 22 बिस्तर या पलंग उपलब्ध होने चाहिए लेकिन पिछले दो वर्षों में हमने देखा कि पलंगों के अभाव में मरीजों ने अस्पतालों के अहातों और गलियारों में ही दम तोड़ दिया। मध्य प्रदेश में प्रति लाख 20 पलंग है तो उत्तर प्रदेश में 13 और बिहार में तो सिर्फ 6 ही हैं। 15 राज्य ऐसे हैं, जिनमें ये न्यूनतम पलंग भी नहीं हैं।

    कुछ राज्यों में कई गुना पलंग है, यह अच्छी बात है लेकिन वहां चिंता का विषय यह है कि उनके आपातकालीन विभागों में भी लगभग अराजकता की स्थिति है। नीति आयोग की एक ताजा रपट से पता चलता है कि आपातकालीन वार्ड में आनेवाले लगभग एक-तिहाई मरीज तो इसलिए मर जाते हैं कि या तो उनका इलाज करने वाले यथायोग्य डाॅक्टर वहां नहीं होते या मरीज़ों के लिए उचित चिकित्सा का कोई इंतजाम नहीं होता।

    यह अप्रिय निष्कर्ष निकाला है, नीति आयोग ने। उसने 29 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 100 बड़े अस्पतालों का अध्ययन करके यह बताया है कि यदि मरीजों को तत्काल और यथायोग्य इलाज दिया जा सके तो उनकी प्राण-रक्षा हो सकती है। कई अस्पतालों में सिर्फ हड्डी के डाॅक्टर या किसी साधारण रोग के डॉक्टर ही आपातकालीन वार्डों में नियुक्त होते हैं। कई बार आवश्यक दवाईयां भी उपलब्ध नहीं होतीं। दुर्घटनाग्रस्त मरीज़ों को अस्पताल तक लाने वाली एंबुलेंस और उनके कर्मचारियों की गुणवत्ता में भी भारी सुधार की जरूरत है। उसके अभाव में मरीज़ कई बार रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।

    आजकल दिल्ली के कई बड़े सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि कई डाॅक्टर डर के मारे अस्पताल ही नहीं आते। खास बीमारियों की देखभाल भी सामान्य डाॅक्टर ही करते हैं। केवल आपातकालीन वार्ड में मरीजों को देखा जाता है। सामान्य मरीज तो यों भी इस महामारी-काल में उपेक्षा के शिकार होते हैं। अब ओमिक्रोन के हमले की भी आशंका फैल रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय से इस बार विशेष सतर्कता की अपेक्षा की जाती है।

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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