– डॉ. प्रभात ओझा
क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी क्वॉड की स्थापना के बाद यह पहली ही बैठक थी और उसके पहले से ही चीन परेशान है। बैठक वर्चुअल माध्यम से सम्पन्न हुई है और उम्मीद जतायी गयी है कि इसी साल क्वॉड में शामिल चारों देशों के नेता एक साथ आमने-सामने बैठ कर बात करेंगे। आम तौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री रास्तों से व्यापार आसान करने के लिए गठित इस समूह की मूल अवधारणा को देखने से चीन की दिक्कतों का अंदाज लगाया जा सकता है। हाल के दिनों में चीन ने पाकिस्तान की मदद से और बहुत कुछ नेपाल में कोशिश करते हुए इस क्षेत्र में अपनी दखल बढ़ाने की कोशिश की। यह भारत के लिए चिंता का विषय था। अलग बात है कि सीमाओं पर तनाव बढ़ाने की कोशिश के बाद चीन की सेनाओं को वापस भी जाना पड़ा है। सन 2007 से ही चीन ने एशिया-प्रशांत के समुद्री क्षेत्र में अपनी दादागीरी शुरू कर दी थी। वह दक्षिण और पूर्वी चीन सागर क्षेत्र में अपने सैन्य अड्डे बढ़ाने लगा था। पहली बार जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने क्षेत्र में चीन के बढ़ते खतरे को महसूस किया था। उन्होंने चीन के दबाव और धमकियों के मुकाबले के लिए इस समुद्री क्षेत्र का उपयोग करने वाले सक्षम देशों का एक संगठन बनाने की पहल की। वैसे शिंजो आबे की यह कोशिश बहुत बाद में आकार ले सकी और 2019 में जापान के साथ भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर यह चतुर्भुज संगठन बनाया। निश्चित ही संगठन के निर्माण के पीछे कहीं से भी चीन का नाम नहीं लिया गया, पर दुनिया इस क्षेत्र के चार सशक्त देशों की एकजुटता का सहज ही अंदाज लगा सकती है।
बहरहाल, निर्माण के बाद कोरोना के कारण पिछले साल इस संगठन की कोई बैठक नहीं हो सकी थी। अब ताजा वर्चुअल बैठक के बाद उम्मीद जतायी गयी है कि इसके नेताओं की आमने-सामने शिखर वार्ता जल्द ही किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय आयोजन के साथ हो सकती है। याद करें कि जून में लंदन में जी7 की शिखर वार्ता होने वाली है। जी 7 के सात सदस्य देशों के अतिरिक्त मेजबान देश ब्रिटेन ने भारत और ऑस्ट्रेलिया को भी निमंत्रण भेजा है। दक्षिण कोरिया को भी इस बैठक में आमंत्रित किए जाने की खबर है। अमेरिका और जापान पहले से ही जी 7 के सदस्य हैं। इस तरह क्वाड के भी चारों नेता जी 7 की बैठक के समय ब्रिटेन में ही रहेंगे। उम्मीद है कि इसी मौके पर अलग से क्वाड की भी बैठक हो सकेगी। तब जी 7 के साथ क्वॉड भी आर्थिक सहयोग के अतिरिक्त आर्थिक हितों के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा पर भी बातचीत करेंगे।
जी 7 की आगामी बैठक के साथ विश्व-पटल पर एक और परिदृश्य उभरने के संकेत मिलने लगे हैं। ग्रुप सेवेन की बैठक में भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को निमंत्रण से दुनिया में ग्रुप टेन (जी 10) का आकार लेने जा रहा है। भले ही इस नाम से कोई नया संगठन खड़ा न किया जाय, एक बात स्पष्ट है कि ये सभी लोकतांत्रिक देश हैं। जी 7 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ रूस को भी शामिल करने की वकालत तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने की थी। हालांकि रूस में लोकतंत्र के अभाव के तर्क पर उसे शामिल करने की बात शुरू में ही खारिज हो गई। अब जो 10 देश लंदन में मिल बैठकर फैसले लेंगे अथवा विचार करेंगे, वे कट्टरपंथी और गैर लोकतांत्रिक चीन पर परोक्ष दबाव की तरह ही होंगे। स्वाभाविक है कि दक्षिण पूर्वी चीन सागर पर एकछत्र आधिपत्य का ख्वाब देखने वाले इस देश के मंसूबों को ये 10 देश काफी हद तक नियंत्रित कर सकेंगे। इतिहास गवाह है कि प्रगति के लिए सहयोग के इरादे जरूरत पड़ने पर सामरिक गठबंधन का भी रूप लेते रहे हैं। चीन की ताजा बौखलाहट इसी संभावना को ध्यान में रखते हुए सामने आयी है। यूं ही नहीं उसने क्वॉड की वर्चुअल बैठक के ठीक पहले कहा है कि देशों के गठबंधन से किसी अन्य पक्ष के हित प्रभावी नहीं होने चाहिए। चीन को याद रखना चाहिए कि दौर बदल गया है और अब देशों के गठबंधन और अधिक व्यापक मकसद से हुआ करते हैं।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार के न्यूज एडिटर हैं)
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