नई दिल्ली। रक्षाबंधन(Raksha Bandhan ), भाई-बहन के प्यार का सबसे बड़ा उत्सव है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष रक्षाबंधन का पर्व श्रावण माह की पूर्णिमा (full moon of shravan month) को मनाया जाता है. इसे राखी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस साल रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त 2022 को मनाया जाएगा. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं. इस दौरान बहन-भाई एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और उपहार देते हैं. यह हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. लेकिन, रक्षाबंधन का त्योहार शुरू कैसे हुआ? इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं(Mythology) प्रचलित हैं. आइये जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से एक ऐसी ही प्रचलित कथा के बारे में, जिसमें बताया गया कि कैसे शुरू हुआ था रक्षाबंधन का त्योहार.
सबसे पहले पति-पत्नी ने बांधी थी राखी
रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में नहीं था. इंद्र और इंद्राणी (Indra and Indrani) की पौराणिक कथा से इसका पता चलता है. पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान इंद्र राजा बलि से हार रहे थे, तब इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया, जिसे उन्होंने इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इसके बाद युद्ध में इंद्र की विजय हुई. वह धागा किसी भी बुराई के खिलाफ उनकी सुरक्षा बन गया.
सिकंदर की पत्नी ने जब भेजी राखी
प्रचलित कहानियों के अनुसार, पूरी दुनिया पर फतह हासिल करने वाले जब सिकंदर का भारत में पुरु से सामना हुआ था. तब युद्ध में सिकंदर पराजित हो गया था. उस दौरान सिकंदर की पत्नी ने उनकी जान बख्शने के लिए राजा पुरु को राखी भेजी थी. कहा जाता है कि उसके बाद पुरु सिकंदर पर हाथ नहीं उठा सके और उसे बंदी बना लिया था. हालांकि, सिकंदर ने पुरु को राज्य वापस कर दिया था.
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