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    यूपी में क्‍यों हैं पसमांदा मुस्लिमों की चर्चा जोरों पर, जानिए पूरा सच

  • July 11, 2022

    नई दिल्‍ली। उत्‍तरप्रदेश (UP) के आजमगढ़ और रामपुर (Azamgarh and Rampur) लोकसभा उपचुनाव जीतने के बाद से भारतीय जनता पार्टी गदगद है। केंद्रीय नेतृत्व राज्य में अब नए सिरे से सामाजिक समीकरण (social equation) को साधने की रणनीति बनाने में लगी है। भाजपा नेतृत्व (BJP leadership) अब समाज के हर तबके और राज्य के हर क्षेत्र में नए तरीके से संगठन विस्तार की रणनीति बना रही है। यहां तक कि अब भाजपा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने के लिए रणनीति बना रही है।

    बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों हैदराबाद में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पसमांदा मुस्लिमों के बीच जाने का ऐलान किया था। इसके लिए उन्होंने स्नेह यात्रा निकालने की भी बात कही थी। तब से ही पसमांदा मुस्लिमों की चर्चा जोरों पर है। यहां तक कि उनकी इस पहल का कई राजनीतिक विश्लेषकों ने स्वागत किया है तो वहीं कुछ लोग इसे संदेह की नजर से भी देखते हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में 8 फीसदी मुस्लिम वोट जो भाजपा को मिला था, उसमें पार्टी मान रही है कि इस वर्ग का ही बड़ा मत था। ऐसे में उसकी यह पहल खासतौर पर यूपी में आने वाले दिनों में बड़ा असर दिखा सकती है।



    मुस्लिम मामलों के जानकार और पसमांदा के मुद्दों पर काम करने वाले डॉक्टर फैयाज अहमद फैजी का कहना है कि भाजपा की यह पहल निश्चित तौर पर असर दिखा सकती है। वह कहते हैं, ‘भाजपा की यह पहल अच्छी है और वह वंचित तबके की बात कर रहे हैं। आज तक इस पर किसी ने काम नहीं किया है। भले ही भाजपा इस मुद्दे से राजनीतिक लाभ भी हासिल करेगी, लेकिन यह पसमांदा वर्ग के लिए भी अहम होगा और यदि उसे इसके जरिए प्रतिनिधित्व मिलता है तो क्या गलत है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं और यदि उन्होंने ऐसी पहल की है तो इसे संदेह से देखना सही नहीं होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे वक्त में जब वैमनस्यता का माहौल है, पीएम नरेंद्र मोदी की ऐसी पहल को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए।

    यही नहीं राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से भी वह इसे अहम मानते हैं। डॉक्टर फैजी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में अशराफ मुस्लिमों की आबादी 10 फीसदी ही है, जबकि पसमांदा मुस्लिम 90 पर्सेंट तक है। खासतौर पर मुरादाबाद, अलीगढ़, मेरठ, वाराणसी जैसे शहरों में उनकी बड़ी तादाद है, जो दस्तकारी से जुड़े मुस्लिमों की आबादी वाले इलाके हैं।’

    बता दें कि रामपुर और आजमगढ़ जैसी लोकसभा सीटों पर हाल ही में हुए उपचुनावों में सपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी, जबकि इन्हें उसके गढ़ के तौर पर देखा जाता है। भले ही भाजपा को इस जीत में मुस्लिमों का बड़ा योगदान न मिला हो, लेकिन यह साफ है कि सपा के पक्ष में भी वह उतनी मजबूती से नहीं खड़ा रहा। ऐसे में भाजपा मानती है कि मुस्लिमों के बड़े वर्ग की सपा से दूरी उसके लिए अवसर की तरह हो सकती है।

    हालांकि फैजी कहते हैं कि हमें पसमांदा मुस्लिम कहने की बजाय भारतीय मुस्लिम और विदेशी मूल के मुस्लिम का फर्क समझना चाहिए। वह कहते हैं कि खुद को अशराफ कहने वाले मुस्लिम वर्ग के लोग विदेशी मूल के हैं और वह अपने को शासक वर्ग मानते हैं। वहीं पसमांदा मुस्लिमों में वे लोग हैं, जो किसी दौर में हिंदू ही थे, लेकिन वह मजहब बदलकर मुस्लिम बने तो अपनी जाति और संस्कृति भी लेकर इस्लाम में आए।

    उनमें से बड़ा वर्ग पिछड़े मुसलमानों का है, जिन्हें मुस्लिमों के बीच अजलाफ कहा जाता है और जो हिंदू अनुसूचित वर्ग के समतुल्य हैं, उन्हें अरजाल कहा जाता है, किंतु अशराफ वे हैं, जो शेख सैयद हैं। इनकी आबादी 10 फीसदी के करीब ही है। इन दोनों वर्गों को मिलाकर बने समूह को पसमांदा कहा जा रहा है। पसमांदा शब्द का फारसी में अर्थ पिछड़ जाने से है।

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