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संतों को क्‍यों दी जाती है ‘जल समाधि’, दाह संस्कार क्यों नहीं होता? जानें इसका धार्मिक कारण

  • February 15, 2025

    अयोध्‍या। राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास (Acharya Satyendra Das) का हाल ही में निधन हो गया और उन्हें जल समाधि (Water Mausoleum) दी गई। जल समाधि को लेकर अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता होगा कि आखिर जल समाधि क्या होती है और इसे संतों को क्यों दी जाती है, जबकि हिंदू धर्म (Hinduism) में शव का दाह संस्कार करने की परंपरा है।

    क्या होती है जल समाधि?
    दरअसल, सनातन धर्म में अंतिम संस्कार की अलग-अलग प्रक्रिया होती हैं। इनमें से एक है जब किसी साधु संत के पार्थिव शरीर को बिना अंतिम संस्कार के नदी में बहा दिया जाता है। इसे ही जल समाधि कहा जाता है। जल समाधि देने के समय शव के साथ भारी पत्थर बांधे जाते हैं। इसके बाद शव को नदी के बीच में प्रवाहित किया जाता है। इसके अलावा संतों को भू-समाधि भी दी जाती है। इसमें शव को पद्मासन या सिद्धिसन की मुद्रा में बिठाकर जमीन में दफना दिया जाता है।

     

    क्यों दी जाती है जल समाधि?
    भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में प्राचीन काल से संतों को जल समाधि देने की परंपरा रही है। ऐसी मान्यताएं हैं कि जल पवित्र तत्व होता है और इसमें समाधि से जल्द ही मोक्ष मिलता है। माना जाता है कि मनुष्य का शरीर पंचतत्वों यानी- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना होता है। संतों के शव को जल में विलय कर दिया जाता है ताकि वह अपने मूल तत्व में लौट जाए। बता दें कि संतों शरीर आम मनुष्यों से काफी अलग माना जाता है। वह तप, साधना आदि परिपूर्ण होता है। इसलिए उनके शरीर का दाह संस्कार करने के बजाय उसे जल समाधि दी जाती है।



    कौन थे आचार्य सत्येंद्र दास?
    सत्येंद्र दास अयोध्या राम मंदिर के प्रमुख पुजारी थे। उन्होंने 20 वर्ष की आयु में ही संन्यास ग्रहण कर लिया था। वह निर्वाणी अखाड़े से आने वाले अयोध्या के सबसे प्रमुख संतों में से एक थे। 85 साल की उम्र में तीन फरवरी को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया जिसके बाद उन्हें संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में भर्ती कराया गया था। बुधवार को 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

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