नई दिल्ली: राहुल गांधी एक छोटे से ब्रेक के बाद दोबारा से भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं. कन्याकुमारी से कश्मीर तक के लिए पदयात्रा पर निकले राहुल गांधी उत्तर प्रदेश पहुंच चुके हैं. दक्षिण भारत के राज्यों में तो राहुल गांधी को विपक्षी दलों का साथ मिला था, लेकिन हिंदी पट्टी वाले राज्यों में आते ही विपक्ष ही नहीं बल्कि सहयोगी दल भी उनकी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने से कन्नी काट रहे हैं. न यूपी में विपक्षी दल के नेता शिरकत कर रहे हैं और न ही बिहार के सह योगी उनकी यात्रा में शामिल होने को तैयार हैं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत करने के लिए सपा के अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, बसपा अध्यक्ष मायावती, सतीष चंद्र मिश्रा और आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी सहित तमाम विपक्षी दलों के नेताओं को न्योता भेजा गया था. ऐसे ही बिहार में आरजेडी और जेडीयू सहित तमाम सहयोगी के नेताओं को शामिल होने का निमंत्रण दिया गया था, पर न तो यूपी के किसी विपक्ष का साथ मिला और न ही बिहार के सहयोगी दल भी उनके यात्रा में शामिल हो रहे हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राहुल गांधी की अगुवाई वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को पूरी तरह से कांग्रेस का आंतरिक मामला बताते हुए मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी जेडीयू ‘पदयात्रा’ में शामिल नहीं होगी. इस तरह से बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के सबसे बड़े घटक लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी ने भी कहा कि पार्टी ने इस यात्रा में शामिल होने को लेकर अभी कोई फैसला नहीं किया है.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में न तो विपक्षी दल खड़े होना चाहते हैं और न ही सहयोगी दल उनके साथ कदमताल कर रहे हैं. वहीं, दक्षिण भारत के राज्य में डीएमके से लेकर तमाम दलों के नेता राहुल गांधी के साथ पदयात्रा करते नजर आए थे. वहीं, महाराष्ट्र में राहुल गांधी की पदयात्रा एंट्री की थी तो शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने यात्रा में शिरकत किया था. इतना ही नहीं शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने दिल्ली में राहुल के साथ पैदल चलती नजर आईं है तो जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कॉफ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला ने भी शिरकत की.
सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है, जिसके चलते हिंदी पट्टी वाले राज्यों विपक्षी और सहयोगी दल के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से दूरी बनाए हुए हैं. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की छवि एक मजबूत नेता के तौर पर बन रही है. यह बात बीजेपी के साथ-साथ उन तमाम विपक्षी दलों के लिए बेचैनी पैदा कर रही है, जो कांग्रेस के कोर वोटबैंक पर काबिज और वहां बड़े भाई की भूमिका में है. ऐसे में वे कांग्रेस को दोबारा से उभरने का मौका नहीं देना चाहते हैं.
उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, आरएलडी उसी वोटबैंक के सहारे सियासत में अहम भूमिका है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था. ऐसे ही बिहार में आरजेडी, जेडीयू और वामपंथी दल भी उसी वोटबैंक पर काबिज है, जिसके सहारे कांग्रेस ने लंबे समय तक राज किया है. भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को सियासी संजीवनी मिली है और उसके कार्यकर्ता व नेता उत्साह से भरे हुए हैं. ऐसे में राहुल गांधी के साथ खड़े होकर कांग्रेस को दोबारा से सियासी पैर पसारने का मौका नहीं देना चाहते हैं.
कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो पूरे देश में हर जगह अपनी उपस्थिति रखती है. केंद्र की सत्ता में दो बार प्रचंड शक्ति के साथ सत्ता में पहुंचने के बाद भी बीजेपी अभी देश के हर हिस्से तक नहीं पहुंच पाई है. इतनी कमजोर हालत में भी कांग्रेस को पूरे देश में वोट मिलते हैं और देश के हर कोने से उसके विधायक-सांसद चुने जाते हैं. कांग्रेस अपने इस सियासी महत्व के सहारे 2024 में विपक्षी एकता की अगुवाई अपने हाथों में रखना चाहती है, लेकिन विपक्ष के कई दल इसी वजह उसके साथ खड़े होने से बच रहे हैं.
ममता बनर्जी से लेकर नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, केसीआर तक 2024 के चुनाव में पीएम मोदी के सामने विपक्षा का चेहरा बनने की कवायद में हैं. सपा किस खेमे के साथ खड़ी होगी, उसने अभी अपना स्टैंड साफ नहीं किया. ममता और केसीआर किसी भी सूरत में कांग्रेस को विपक्षी खेमे में अगुवाई नहीं करने देना चाहते हैं जबकि केजरीवाल खुद अपने चेहरे को आगे बढ़ा रहे हैं. मायावती भले ही इस सारी कवायद से दूर हों, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के अरमान खत्म नहीं हुए हैं. ऐसे में अखिलेश और मायावती कांग्रेस और बीजेपी एक ही सिक्के दो पहलू बता रहे हैं. ऐसे में वह कैसे राहुल गांधी के साथ खड़े हो सकते हैं?
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