नई दिल्ली। दवा (medicines) को जीभ पर रखने के दौरान ही लोगों को उसका कड़वापन महसूस होने लगता है. कई बार दवा खाने के बाद भी मुंह कड़वा रहता है. सर्दी-खांसी, बुखार (cold, cough, fever) से लेकर सभी बीमारियों की दवाओं का स्वाद कड़वा और अजीबोगरीब होता है. जबकि कुछ दवाएं खाने पर मीठा स्वाद आता है. क्या आपने कभी सोचा है कि अधिकतर दवाएं कड़वी क्यों होती हैं?
नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि दवाओं में कई तरह के केमिकल्स और अन्य कंपाउंड होते हैं, जिसकी वजह से दवाएं कड़वी हो जाती हैं. कई दवाओं में एल्कलॉइड्स जैसे- कोडीन और कैफीन, टेरपीन और कई अन्य कड़वे केमिकल्स होते हैं. ये केमिकल्स दवाओं को कड़वा स्वाद देते हैं और शरीर के विभिन्न अंगों पर असर डालते हैं. कई दवाएं प्लांट कंपाउंड्स से बनाई जाती हैं और कई दवाएं इंडस्ट्रीज में बनाए गए केमिकल्स से बनती हैं. यही वजह है कि दवाएं कड़वी होती हैं.
डॉक्टर राकेश गुप्ता के मुताबिक कुछ दवाओं का स्वाद बेहतर बनाने के लिए उनमें शुगर मिलाई जाती है. कई दवाओं पर शुगर की कोटिंग की जाती है, जिससे इन टेबलेट्स का स्वाद मीठा हो जाता है. इसे शुगर कोटिंग कहा जाता है. हालांकि अधिकतर दवाओं पर यह कोटिंग नहीं होती है और इसकी वजह से स्वाद कड़वा ही रह जाता है. दवा के भीतर मौजूद कड़वे यौगिकों का मेटाबोलिज्म भी इसके स्वाद को प्रभावित करता है. प्राकृतिक हर्बल दवाएं भी अक्सर कड़वी होती हैं क्योंकि इनमें प्राकृतिक यौगिक होते हैं, जिनका स्वाद कड़वा होता है.
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि जो दवाएं हद से ज्यादा कड़वी होती हैं, उन्हें कैप्सूल के फॉर्म में बना दिया जाता है. कैप्सूल की ऊपरी परत सॉफ्ट जिलेटिन की होती है और पेट के अंदर जाकर यह परत घुल जाती है. इसकी वजह से लोग कड़वी से कड़वी दवाओं को आसानी से खा लेते हैं. इससे शरीर में जरूरी कंपाउंड पहुंच जाते हैं और तबीयत ठीक होने लगती है. अगर आप कड़वी दवा नहीं ले पा रहे हैं, तो शहद में मिलाकर खा सकते हैं. पहले के जमाने में कई दवाएं शहद में मिलाकर दी जाती थीं, ताकि लोग उन्हें आसानी से ले सकें.
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