– आर.के. सिन्हा
एक खास वर्ग के वोट पाने के खातिर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इतने नीचे गिर जाएंगे, यह शायद ही किसी ने सोचा भी न हो। उन्होंने हाल ही में हरदोई में पार्टी की एक रैली में मोहम्मद अली जिन्ना का महिमामंडन किया। एक तरह से उन्होंने भारत को तोड़ने वाले जिन्ना को स्वतंत्रता आंदोलन का नायक ही बता दिया।
क्या अखिलेश यादव को पता नहीं कि जिन्ना ने ही मुसलमानों से 16 अगस्त, 1946 के दिन से डायरेक्ट एक्शन (सीधी कार्रवाई) का आह्वान किया था? एक तरह वह दंगों की एक योजनाबद्ध शुरुआत थी। उन दंगों में मात्र कोलकाता महानगर में ही पांच हजार मासूम मारे गए थे। मरने वालों में बिहारी और उड़िया मजदूर सर्वाधिक थे। फिर तो दंगों की आग चौतरफा फैल गई। मई, 1947 को रावलपिंडी में मुस्लिम लीग के गुंडों ने जमकर हिन्दुओं और सिखों को मारा, उनकी संपत्ति व औरतों की इज्जत खुलेआम लूटी। रावलपिंडी और लाहौर में सिख और हिन्दू खासे धनी थे। इनकी संपत्ति को निशाना बनाया गया। पर मजाल है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने कभी उन दंगों को रुकवाने की अपील तक की हो। वे एक बार भी किसी दंगाग्रस्त क्षेत्र में भी नहीं गए, ताकि दंगे कुछ हद तक ही सही थम जाएं।
डायरेक्ट एक्शन की आग पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के नोआखाली तक पहुंच गई थी। वहां पर हजारों हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ था। उस कत्लेआम को रुकवाने के लिए महात्मा गांधी नोआखाली गए थे। उनके साथ अखिलेश यादव की पार्टी के राजनीतिक चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया, जे.बी. कृपलानी वगैरह भी थे। गांधीजी नोआखाली 6 नवंबर, 1946 को पहुंचे थे। उनका वहां जाने का मकसद आग में झुलसते नोआखाली में शांति की बहाली करना था। वे और उनके साथ वहां लगातार सात हफ्ते तक रहे और जब वहां से निकले तबतक तो हालात काफी सामान्य हो चुके थे। नोआखाली देश की आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना और पाकिस्तान के दो फाड़ होने के बाद बांग्लादेश का अंग बना।
हैरानी होती है कि जिन्ना को गांधीजी और सरदार पटेल के बराबर रखने वाले अखिलेश यादव को इतना भी नहीं पता कि जिन्ना के कारण ही हिंदुओं का नरसंहार हुआ और हिंदू महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया। गांधीजी की नोआखाली की शांति यात्रा का मुस्लिम लीग के मंत्रियों, कार्यकर्ताओं और स्थानीय मौलवियों ने घनघोर तरीके से विरोध भी किया था। मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने गांधीजी से नोआखाली को छोड़ने के लिए भी कहा था। पर वे और उनके साथी तब तक वहां रहे जब तक हालात बेहतर नहीं हो गए।
जिन्ना का गुणगान करने वाले अखिलेश यादव यह भी याद रख लें कि जिन्ना ने एकबार भी जेल यात्रा तक नहीं की। क्या कोई आजादी के आन्दोलन का इस तरह का नेता होगा, जिसने कभी जेल यात्रा न की हो या पुलिस की लाठियां न खाई हों? जिन्ना साहब दंगे रुकवाने के लिए कभी सड़कों पर नहीं उतरे। इतिहासकार राज खन्ना कहते हैं कि जिन्ना को बेहिसाब मौतों और जनधन की हानि का कोई अफसोस तक नहीं था। इतिहास की इस शर्मनाक त्रासदी ने उनके पाकिस्तान के सपने को सच करने का काम और आसान कर दिया।
अंग्रेजों की गुलामी से निजात पाने के लिए क्रांतिकारी रहे हों या फिर बापू के रास्ते चलने-लड़ने वाले अहिंसक सेनानी। सबकी कुर्बानियों का गौरवशाली लम्बा सिलसिला और इतिहास है। दूसरी ओर जिन्ना को कांग्रेस के मुकाबले खड़ा होने के लिए अंग्रेजों का भरपूर साथ और समर्थन मिला। उन्हें सिर्फ एक काम करना था- हिंदुओं व मुसलमानों के बीच दूरी और नफ़रत बढाना। आजादी की लड़ाई के दौरान जिन्ना ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। दिल्ली से कराची रवानगी की पूर्व संध्या पर 7 अगस्त 1947 को उन्होंने अपने सन्देश में कहा था ,” अतीत को गाड़ दिया जाना चाहिए और हमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान- दो स्वतंत्र संप्रभु देशों के रूप में नई शुरुआत करनी चाहिए। मैं हिंदुस्तान के लिए शांति और समृद्धि की कामना करता हूँ।” देख लीजिए कि जो जिन्ना खुलेआम खून-खराबा करवाता रहा वह पाकिस्तान बनने से चंद रोज पहले भाईचारे का पाठ पढ़ा रहा था।
अखिलेश यादव ही नहीं, बल्कि कुछ कथित इतिहासकार जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष भी बताने लगे हैं। जो इंसान धर्म के नाम पर देश का बंटवारा करवा चुका हो उसे ही धर्मनिरपेक्ष बताया जाता है। ये जिन्ना के 11 अगस्त, 1947 को दिए भाषण का हवाला देते हैं। उस भाषण में जिन्ना कहते हैं- “ पाकिस्तान में सभी को अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता होगी।” 11 अगस्त, 1947 के भाषण का हवाला देने वाले जिन्ना के 24 मार्च, 1940 को लाहौर के बादशाही मस्जिद के ठीक आगे बने मिन्टो पार्क (अब इकबाल पार्क) में दिए भाषण को भूल जाते हैं। उस दिन अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने पृथक मुस्लिम राष्ट्र की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव ही मशहूर हुआ “पाकिस्तान-प्रस्ताव” के नाम से। उस प्रस्ताव में कहा गया था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र का ख्वाब देखती है। वह इसे पूरा करके ही रहेगी।
प्रस्ताव के पारित होने से पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने दो घंटे लंबे भाषण में हिन्दुओं को जमकर कसकर कोसा था। “हिन्दू-मुसलमान दो अलग मजहब हैं। दो अलग विचार हैं। दोनों की संस्कृति, परम्पराएं और इतिहास भी अलग है। दोनों के नायक भी अलग हैं । इसलिए दोनों कतई साथ नहीं रह सकते।” जिन्ना ने अपने भाषण में महान आजादी सेनानी लाला लाजपत राय और चितरंजन दास को अपशब्द तक कहे थे। उनके भाषण के दौरान एक प्रतिनिधि मलिक बरकत अली ने ‘लाला लाजपत राय को राष्ट्रवादी हिन्दू कहा।’ जवाब में जिन्ना ने कहा, ‘कोई हिन्दू नेता राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। वह पहले और अंत तक हिन्दू ही है।’ इसके बावजूद अखिलेश यादव जैसे नेता जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष और गांधी और सरदार पटेल जी के कद का नेता बता देते हैं।
अखिलेश यादव के अलावा भी हमारे यहां बहुत से जिन्ना के चाहने वाले हैं। कुछ समय पहले कांग्रेस के एक नेता ने भी दावा किया था कि सरदार वल्लभ भाई पटेल के मोहम्मद अली जिन्ना से संबंध थे। उन्होंने झूठा दावा किया कि सरदार पटेल तो जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान को सौंपना चाहते थे। यह दावा कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में कांग्रेस के नेता तारिक हामिद करा ने किया था। तो बात यह है कि हमारे यहां कुछ दलों के नेताओं के दिल में जगह बना चुके हैं जिन्ना।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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